रानी अब्बक्का के शौर्य की गाथा

पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकड़ने भेजा, लेकिन उनमें से कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल "डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा" (Dom Álvaro da Silveira) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।

The Narrative World    03-Sep-2023   
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साल था 1555, जब पुर्तगाली सेना कालीकट, बीजापुर, दमन, मुंबई जीतते हुए गोवा को अपना हेडक्वार्टर बना चुकी थी। टक्कर में कोई ना पाकर उन्होंने पुराने कपिलेश्वर मंदिर को ध्वस्त कर उस पर चर्च स्थापित कर लिया।


मंगलौर का व्यवसायिक बंदरगाह अब उनका अगला निशाना था। उनकी बदकिस्मती थी कि वहाँ से सिर्फ 14 किलोमीटर पर 'उल्लाल' राज्य था जहां की शासिका थी 30 साल की रानी 'अब्बक्का चौटा'


पुर्तगालियों ने रानी को हल्के में लेते हुए केवल कुछ सैनिक उसे पकड़ने भेजा, लेकिन उनमें से कोई वापस नहीं लौटा। क्रोधित पुर्तगालियों ने अब एडमिरल 'डॉम अल्वेरो ड-सिलवीरा' (Dom Álvaro da Silveira) के नेतृत्व में एक बड़ी सेना भेजी। शीघ्र ही जख्मी एडमिरल खाली हाथ वापस आ गया। इसके बाद पुर्तगालियों की तीसरी कोशिश भी बेकार साबित हुई।


चौथी बार में पुर्तगाल सेना ने मंगलौर बंदरगाह जीत लिया। सोच थी कि यहाँ से रानी का किला जीतना आसान होगा, और फिर उन्होंने यही किया। जनरल 'जाओ पिक्सीटो' (João Peixoto) बड़ी सेना के साथ उल्लाल जीतकर रानी को पकड़ने निकला।


लेकिन यह क्या ? किला खाली था और रानी का कहीं अता-पता भी ना था। पुर्तगाली सेना हर्षोल्लास से बिना लड़े किला फतह समझ बैठी। वे जश्न में डूबे थे कि रानी अब्बक्का अपने चुनिंदा 200 जवान के साथ उनपर भूखे शेरो की भांति टूट पड़ी।


बिना लड़े जनरल व अधिकतर पुर्तगाली मारे गए। बाकी ने आत्मसमर्पण कर दिया। उसी रात रानी अब्बक्का ने मंगलौर पोर्ट पर हमला कर दिया जिसमें उसने पुर्तगाली चीफ को मारकर पोर्ट को मुक्त करा लिया।


कालीकट के राजा के जनरल ने रानी अब्बक्का की ओर से लड़ाई लड़ी और मैंगलुरु में पुर्तगालियों का किला तबाह कर दिया। लेकिन वहाँ से लौटते वक्त जनरल पुर्तगालियों के हाथों मारे गए।


रानी अबक्का के देशद्रोही पति लक्षमप्पा ने पुर्तगालियों से धन लेकर उन्हें पकड़वा दिया और जेल में रानी विद्रोह के दौरान मारी गई।


क्या आपने इस वीर रानी अब्बक्का चौटा के बारे में पहले कभी सुना या पढ़ा है ? इस रानी के बारे में जो चार दशकों तक विदेशी आततायियों से वीरता के साथ लड़ती रही, हमारी पाठ्यपुस्तकें चुप हैं। अगर यही रानी अब्बक्का यूरोप या अमेरिका में पैदा हुई होती तो उस पर पूरी की पूरी किताबें लिखी गई होती।


आज भी रानी अब्बक्का चौटा की याद में उनके नगर उल्लाल में उत्सव मनाया जाता है और इसवीर रानी अब्बक्का उत्सवमें प्रतिष्ठित महिलाओं कोवीर रानी अब्बक्का प्रशस्तिपुरस्कार से नवाज़ा जाता है।


हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास से जानबूझ कर वन्चित रखा गया है। "रानी अब्बक्का चौटा" के बारे में "कुछ लोग" तो शायद पहली बार ही ये सुन रहे होगे, ये हमारी 1000 साल की दासता अपने ही देशवासियों (भितरघातियों) के विश्वासघात का नतीजा है।


लेख

मनोज कुमार