माओवादियों के मानवता विरोधी, बस्तर विरोधी और जनजाति विरोधी चरित्र को उजागर करने नक्सल पीड़ितों का जो दल दिल्ली पहुँचा था, उसमें एक ऐसा युवक भी शामिल था, जिसकी कहानी ने सभी की आंखों में पानी ला दिया। किसी व्यक्ति की लाचारी, बेबसी और दूसरों पर आश्रित होने की परिस्थिति सबसे बुरा अनुभव कराती है, और ऐसे ही अनुभव को झेल रहा है बस्तर संभाग का नक्सल पीड़ित सोड़ी राहुल।
'बस्तर की अनसुनी कहानी' आलेख शृंखला के इस चौथे भाग में आज सोड़ी राहुल की कहानी, जिसने माओवादी आतंक के कारण अपना हंसता-खेलता परिवार खो दिया। एक ऐसा युवक जो बस्तर का भविष्य था, जिसने कई सपने देखें थे, लेकिन अब वह अपनी ही आंखों से उसी बस्तर को नहीं देख सकता जहां उसने जन्म लिया।
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सुकमा जिले के चिंतागुफा क्षेत्र के भीतर अंदरूनी गांव में एक किसान परिवार का निवास स्थल है, जिसे अब नक्सल पीड़ित परिवार के रूप में लोग जानते हैं। लेकिन पहले ऐसा नहीं था, पहले यह परिवार इस क्षेत्र के किसानी परिवार के रूप में जाना जाता था। यह था सोड़ी परिवार।
पूरा परिवार अपनी पैतृक जमीन पर सामूहिक रूप से खेती-किसानी करता था, जिसमें परिवार का युवक सोड़ी राहुल भी शामिल था। सोड़ी राहुल, एक हष्ट-पुष्ट युवा, जिसके बड़े-बड़े सपने थे, जिसकी नई-नई शादी हुई थी, और जो अपने परिवार के साथ खेती करता था।
इसी बीच सोड़ी परिवार पर भी उसी लाल आतंक का साया पड़ा, जिसने बस्तर को पिछले 4 दशक में नर्क बना दिया है। 14 नवंबर, 2018 को सोड़ी राहुल अपनी सामान्य दिनचर्या के साथ घर के मवेशियों को चराने के लिए जंगल की ओर निकला था। इसी दौरान राहुल माओवादियों के द्वारा लगाए आईईडी विस्फोट की चपेट में आया और फिर उसका जीवन हमेशा के लिए बर्बाद हो गया।
द नैरेटिव की टीम ने जब सोड़ी राहुल से उसके साथ हुई घटना के बारे में पूछा तब उसने बताया कि वह सामान्य रूप से खेती करने के साथ-साथ मवेशियों को चराने के लिए जंगल जाता रहता था, और उसी तरह वो 14 नवंबर, 2018 को भी मवेशी चराने निकला था।
राहुल ने द नैरेटिव की टीम को अपनी कहानी बताते हुए बताया कि मवेशियों को चराते हुए उसे बीच में थकान और प्यास लगी, तो वह एक खेत के मेड़ के पास बैठने के लिए गया और इसी बीच तेज धमाके ने उसे बेहोश और अधमरा कर दिया।
वहीं दूसरी ओर धमाके की आवाज़ सुनकर स्थानीय ग्रामीण भी घटनास्थल पर पहुँचे, जिसके बाद सोड़ी परिवार को घटना की जानकारी दी गई। सोड़ी राहुल का पैर जिस जगह पर पड़ा था, उसके नीचे माओवादी आतंकियों ने आईईडी प्लांट कर रखा था, जिसके चलते यह धमाका हुआ।
दिल्ली में जब राहुल से द नैरेटिव की टीम बातचीत कर रही थी, तब वह अत्यंत भावुक हो गया था। उसने बताया कि जब यह हादसा हुआ था, तब वह 26 वर्ष का था और उसकी नई-नई शादी हुई थी। कम्युनिस्ट आतंकवाद के कारण जहां राहुल ने अपनी आंखों और एक पैर को तो खो ही दिया, वहीं इस माओवादी आतंक ने उसका जीवनसाथी भी राहुल से दूर कर दिया।
आज स्थिति ऐसी है कि राहुल को अपनी दैनिक नित्यकर्मों के लिए भी किसी व्यक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जो राहुल किसानी कर परिवार का सहारा बन चुका था, आज वही राहुल बिना परिवार के सहारे के एक कदम नहीं चल पाता है।
माओवादी आतंक के कारण यह ऐसी विवशता है, जिसे बताते हुए राहुल कई बार भावुक हुआ, कई बार उसके आंखों से आँसू आये और रोते-रोते उसने यह पूछा कि 'मेरा कसूर क्या है ?'