वर्ष 2009 में एक फ़िल्म आई थी, थ्री इडियट्स। इस फ़िल्म में आमिर खान ने एक किरदार निभाया था, 'फुंसुक वांगड़ू' का। यह किरदार सिनेमा पर काफी चर्चित हुआ था, तथा इस किरदार को शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करने वाला एक आधुनिक क्रांतिकारी के रूप में दिखाया गया था।
इसके बाद मुख्यधारा की मीडिया में एक नाम सामने आया, लद्दाख के सोनम वांगचुक का, मीडिया में कहा गया कि थ्री इडियट्स के फुंसुक वांगड़ू का किरदार असल जिंदगी के सोनम वांगचुक से ही प्रेरित था। इसके बाद तो जैसे देशभर के युवाओं के बीच सोनम वांगचुक एक हीरो की तरह पेश किए गए, उन्हें युवाओं के बीच एक प्रेरणास्रोत माना गया।
लद्दाख के निवासी सोनम वांगचुक आज खुद को इनोवेटर, शिक्षाविद और इंजीनियर कहते हैं, साथ ही स्वयं को पर्यावरण कार्यकर्ता के रूप में स्थापित भी कर चुके हैं। हाल ही में सोनम वांगचुक को तथाकथित रूप से पर्यावरण के मामले में प्रदर्शन करने के कारण दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार भी किया था, लेकिन इसकी पूरी कहानी क्या है ? आखिर यह सब कैसे हो रहा है ? चलिए समझते हैं।
सोनम वांगचुक ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद लद्दाख में ही एक एनजीओ शुरू किया, जिसका नाम है स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ लद्दाख (SECMOL), सबसे बड़ा प्रश्न यही उठता है कि इस एनजीओ का कनेक्शन क्या है और कहाँ-कहाँ से है ? सारी कहानी यहीं से निकल कर सामने आती है।
जब इस संस्था की तह पर जाकर इसे देखते और समझते हैं, तो पता चलता है कि इसके तार ऐसी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं जिसने 1970 के दशक में 'डीप स्टेट' के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए प्रोपेगेंडा फैलाया।
1988 में सोनम वांगचुक द्वारा स्थापित SECMOL के संबंध 'फ्यूचर अर्थ नेटवर्क्स' से जुड़े हुए हैं। अब यह फ्यूचर अर्थ नेटवर्क्स ऐसी संस्था है, जिसका फाउंडर वही पॉल श्रीवास्तव है, जो 'द क्लब ऑफ रोम' का को-प्रेसिडेंट है।
द क्लब ऑफ रोम के माध्यम से ही 1970 के दशक में पहली बार 'जलवायु संकट' की बात उठाई गई थी, जो इनकी 1971 की रिपोर्ट 'लिमिट्स ऑफ ग्रोथ' में सामने आई। इसमें दुनिया की अत्यधिक आबादी की बात भी कही गई थी। यह संस्था सीधे तौर पर अमेरिका के रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित एवं स्थापित की गई थी।
दरअसल रॉकफेलर फाउंडेशन उन्हीं संस्थाओं में से एक है जो डीप स्टेट और सीआईए से जुड़ कर कार्य करती हैं, एवं दुनिया के तमाम देशों में अपना प्रोपेगेंडा फैलाने का काम करती हैं।
यह मात्र संयोग ही नहीं हो सकता कि जिस रॉकफेलर और फोर्ड फाउंडेशन का सम्बंध रैमन मैग्सेसे पुरस्कार से जुड़ा हुआ है, वही पुरस्कार 2018 में सोनम वांगचुक को भी दिया गया है।
दरअसल यह वही फोर्ड फाउंडेशन है जो भारत में डीप स्टेट के नैरेटिव को खड़ा करने के लिए प्रतिवर्ष अलग-अलग संस्थाओं को वित्तपोषित करता है। वर्ष 2009 से लेकर अभी तक इस फाउंडेशन ने 162 ग्रांट जारी किए हैं, जिसमें कई संस्थाएं शामिल हैं। इस दौरान फोर्ड फाउंडेशन ने भारत की इन संस्थाओं को 300 करोड़ से अधिक के फंड मुहैया कराए हैं।
क्या आपको लगता है कि इन पैसों से गरीबों का भला किया गया होगा ? जी नहीं! इन्हीं पैसों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से सोनम वांगचुक जैसे लोगों ने अपनी छवि निर्माण की है, और प्रदर्शन कर रहे हैं।
सोनम वांगचुक की संस्था के मुख्य वित्तपोषणकर्ता को देखे तो वो है फ्यूचर अर्थ नेटवर्क्स, जिसका 'स्टार्ट' द्वारा सहयोग किया जाता है। जब 'स्टार्ट' की छानबीन करते हैं तो पता चलता है कि इसे पिछले दरवाजे USAID, ऑक्सफेम और आईआईएचएस द्वारा समर्थन दिया जा रहा है, जिसमें मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे जैसे लोग बोर्ड सदस्य हैं।
यदि आप सोनम वांगचुक से जुड़े सभी तारों को देखने और बारीकी से समझने की कोशिश करेंगे तो इसके तार डीप स्टेट्, सीआईए, फोर्ड फाउंडेशन, रॉकफेलर फाउंडेशन और तो और कांग्रेस पार्टी से भी जुड़े मिलेंगे।
यही कारण है कि सोनम वांगचुक अब देश की राजधानी दिल्ली में आकर प्रदर्शन करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि मीडिया से लेकर आम जनता तक एक नया नैरेटिव खड़ा किया जा सके, और भारत के विकास की यात्रा को रोका जा सके।
हालांकि सोनम वांगचुक के तार जिन संस्थाओं से जुड़े हैं, उनका उद्देश्य केवल भारत के विकास को रोकना ही नहीं, बल्कि अपने मन मुताबिक सरकार को स्थापित करना भी है, तो यह भी समझा जा सकता है कि सोनम वांगचुक डीप स्टेट के 'सत्ता परिवर्त (रिज़िम चेंज)' का एक मोहरा हैं, जिसका इस्तेमाल अब भारत में किया जा रहा है।