IMCWP : कम्यूनिस्टों का अंतरराष्ट्रीय समूह, जिसमें ना लोकतंत्र पर बात होती है ना कम्युनिस्ट देशों के भीतर मानवाधिकार पर चर्चा होती है

दुनियाभर के कम्युनिस्ट समूहों की इस बैठक को IMCWP के द्वारा आयोजित किया जाना है। कम्युनिस्टों के इस समूह ने अपने इस 24वें बैठक के लिए कई तरह के बिंदुओं को सामने रखा है।

The Narrative World    19-Nov-2024   
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दुनिया में केवल
5 ऐसे राष्ट्र हैं जहां वर्तमान में कम्युनिस्ट शासन प्रणाली के तहत शासन चल रहा है, लेकिन दुनियाभर के विभिन्न देशों में कम्युनिस्ट दलों की उपस्थिति है। समूचे विश्व के इन्हीं कम्युनिस्ट दलों के द्वारा एक अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित किया जाता है जिसका नाम है 'इंटरनेशनल मीटिंग ऑफ कम्युनिस्ट एंड वर्कर्स पार्टीज़', जिसके बैनर के तहत दुनिया की लगभग सभी वामपंथी पार्टियां बैठक करती हैं और अपनी आगामी योजनाओं की रणनीति बनाती हैं।


इस वर्ष यह बैठक लेबनन की राजधानी बेरुत में होने वाली थी। इस बैठक के लिए बीते जून में IMCWP की वर्किंग कमेटी की बैठक हुई थी, जिसमें तय किया गया था कि इस वर्ष की इनकी बैठक 24 से 27 अक्टूबर को आयोजित की जाएगी।


दुनियाभर के कम्युनिस्ट समूहों की इस बैठक को IMCWP के द्वारा आयोजित किया जाना है। कम्युनिस्टों के इस समूह ने अपने इस 24वें बैठक के लिए कई तरह के बिंदुओं को सामने रखा है। इन डिफेंस ऑफ कम्युनिज़्म वेबसाइट के अनुसार इस बैठक का मुख्य एजेंडा "राष्ट्रीय और सामाजिक मुक्ति के लिए, प्रगति और समाजवाद के लिए फिलिस्तीनी लोगों और उनके प्रतिरोध के समर्थन में पूंजीवाद, साम्राज्यवादी आक्रमण और फासीवाद के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष को मजबूत करना" था। हालाँकि मध्य पूर्व में युद्ध की स्थिति के चलते यह बैठक स्थगित कर दी गई।


वर्ष 2023 की यह बैठक तुर्की में आयोजित की गई थी। इस बैठक का एजेंडा कर्मचारी वर्ग, युवाओं, महिलाओं एवं बुद्धिजीवियों को कम्युनिस्ट विचार के तहत लाने का है। इसके अतिरिक्त वही पुरानी बातें भी दोहराई गईं थी, जिसमें पूंजीवाद एवं साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ाई की बात कही गई है।


वर्ष 2022 की बैठक में क्या हुआ था ?


वर्ष 2022 की बैठक कम्युनिस्ट राष्ट्र क्यूबा की राजधानी हवाना में आयोजित की गई थी, जिसका आयोजन क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी के द्वारा किया गया था। 27 से 29 अक्टूबर तक चली इस बैठक में 60 देशों से कम्युनिस्ट प्रतिनिधि सम्मिलित हुए थे। इंटरनेशनल मीटिंग ऑफ कम्युनिस्ट एंड वर्कर्स पार्टीज़ (IMCWP) के द्वारा जारी आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार इस बैठक में 78 कम्युनिस्ट एवं श्रमिक दलों के 145 प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया था।


गौर करने वाली बात यह भी है कि इस बैठक में भारत की ओर से दोनों प्रमुख कम्युनिस्ट दलों, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPIM), ने हिस्सा लिया था।


IMCWP की इस 22वीं बैठक के बाद जारी अंतिम घोषणा में रूस और यूक्रेन बीच चल रहे युद्ध की गतिविधियों का भी उल्लेख किया गया था। दुनियाभर के कम्युनिस्ट दलों के द्वारा कहा गया था कि विश्व में साम्राज्यवाद की आक्रामकता बढ़ रही है और भूराजनीतिक बदलाव देखें जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप नाटो (NATO) जैसे संगठनों का विस्तार हो रहा है एवं हथियारों की दौड़ में वृद्धि देखी जा रही है, इसका एक रूप यूक्रेन में देखा जा सकता है।


इसके अलावा कम्युनिस्ट दलों ने अपने पुराने रटे-रटाये शब्दों को एकबार पुनः तथाकथित फांसीवाद का उल्लेख करते हुए कहा गया था कि दुनिया में फांसीवाद का एकबार फिर से पुनरुत्थान हो रहा है, जिसके बाद शीत युद्ध और परमाणु संघर्ष जैसी परिस्थितियों का खतरा बढ़ गया है। इसके अलावा इस बैठक में हर बार की तरह साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, अमेरिका और उसके सहयोगियों की निंदा की गई थी।


“इन कम्युनिस्ट दलों ने अपनी किसी बैठक में एक बार भी लोकतंत्र पर चर्चा नहीं की थी, इन दलों ने यह नहीं कहा कि जनता को अपने जनप्रतिनिधियों को चुनने का अधिकार है, इन दलों ने यह घोषणा नहीं की कि अब किसी जगह पर तानाशाही नहीं होगी। जगह-जगह पर महिला समानता की बात करने वाले वामपंथियों के द्वारा यह नहीं कहा गया कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में महिला नेताओं की उपस्थिति नगण्य है, यह भी नहीं कहा गया कि भारतीय कम्युनिस्ट दलों के द्वारा महिला नेता को पुरस्कृत होने से रोक दिया जाता है लेकिन पुरुष कम्युनिस्ट नेताओं को सभी गतिविधियां करने की स्वतंत्रता है।”


इसके अलावा तमाम मजदूरों, किसानों और श्रमिकों के हितों की बात की गई, लेकिन इस बात का कोई उल्लेख नहीं हुआ था कि कैसे भारत में कम्युनिस्ट आतंकियों (नक्सली-माओवादी) के द्वारा आम श्रमिकों एवं किसानों की हत्या कर दी जाती है, उनके परिवार बर्बाद कर दिए जाते हैं, उनके बच्चों को अनाथ कर दिया जाता है या जबरन नक्सली बना दिया जाता है, उनसे जुड़े क्षेत्रों में विकास नहीं होने दिया जाता है।


दुनियाभर के कम्युनिस्ट दलों ने इस बैठक में उसी लेनिन, स्टालिन, मार्क्स, माओ और कास्त्रो की बातें की जिन्होंने अपने शासन के दौरान लाखों-करोड़ों बेगुनाहों को मौत के घाट उतार दिया, जिनके कारण कई पीढ़ियां बर्बाद हो गईं, जिनके कारण पीढ़ियों ने तानाशाही देखीं, दरअसल यही इन वामपंथियों की सच्चाई है।


इंटरनेशनल मीटिंग ऑफ कम्युनिस्ट एंड वर्कर्स पार्टीज़ (IMCWP)


IMCWP की शुरुआत वर्ष 1998 में हुई थी, जब ग्रीस की कम्युनिस्ट पार्टी ने दुनियाभर के साम्यवादी दलों को एकजुट होकर कार्य करने की योजना से एक सम्मेलन के लिए बुलावा भेजा था और इस बैठक में बड़ी संख्या में कम्युनिस्ट दल उपस्थित हुए थे। इसकी बैठक वार्षिक रूप अलग-अलग देशों में कम्युनिस्ट दलों के द्वारा आयोजित की जाती है।


हालांकि कुछ अवसर में (2009 सितंबर) इसकी विशेष बैठक भी आयोजित की जा चुकी है। सामान्यतः इन बैठकों में दुनियाभर के विभिन्न राष्ट्रों में मौजूद कम्युनिस्ट दलों के प्रतिनिधियों का एक दल हिस्सा लेता है और बैठक के बाद समूहिक रूप से घोषणा जारी की जाती है।


कॉमिन्टर्न से कैसे अलग है यह सम्मेलन


दरअसल सोवियत संघ के द्वारा पूंजीवाद के समर्थक राष्ट्रों के साथ द्वितीय विश्व युद्ध में मिलकर हिस्सा लेने के साथ ही कॉमिन्टर्न (कम्युनिस्ट इंटरनेशनल) का भी पतन हो गया, क्योंकि यह पूरा समूह सोवियत की पूंजीवाद विरोधी विचार के द्वारा पोषित था।


हालाँकि सोवियत के विघटन तक भी तमाम तरह की अंतरराष्ट्रीय वामपंथी बैठके चलती रहीं, लेकिन सोवियत के विघटन के बाद दुनियाभर के कम्युनिस्ट देशों ने कॉमिन्टर्न (कम्युनिस्ट इंटरनेशनल) की तरह की एक संगठन बनाने की योजना बनाई और अंततः 1998 में IMCWP की शुरुआत हुई।


कॉमिन्टर्न और IMCWP में मूल रूप यह भी फर्क है कि कॉमिन्टर्न को पूर्ण रूप से सोवियत की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा पोषित किया जाता था और सोवियत के निर्देशों पर ही दुनियाभर के साम्यवादी दलों की रणनीतियां बनती थी, लेकिन IMCWP में ऐसा नहीं है।वर्तमान सम्मेलनों में क्यूबा और चीन के कम्युनिस्ट दलों का प्रभाव अधिक है, लेकिन यह सोवियत काल की तरह बिल्कुल भी नहीं है।



कॉमिन्टर्न की पहली बैठक 2 मार्च 1919 को मॉस्को के क्रेमलिन में हुई थी, जिसकी शुरुआत कम्युनिस्ट तानाशाह व्लादिमीर लेनिन ने की थी। पहले यह आयोजन बर्लिन या नीदरलैंड्स में करने की योजना थी, लेकिन बाद में इसे सोवियत संघ में ही आयोजित किया गया। पहले सम्मेलन में 22 राष्ट्रों में मौजूद 35 दलों के 51 प्रतिनिधि उपस्थित हुए थे। इसी बैठक के बाद भारत समेत चीन, नेपाल, स्पेन और इटली जैसे देशों में वामपंथी दलों का गठन किया गया था।