23 नवंबर : शरद पवार की हार और प्रकृति का न्याय

23 Nov 2024 15:36:42

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23 नवंबर, और आज महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आ रहे हैं। इन नतीजों में भाजपा नीत महायुती (एनडीए) की बड़ी जीत होती हुई दिखाई दे रही है, लेकिन यदि हम किसी के हार की बात करें तो सबसे बड़ी हार हुई है शरद पवार की। शरद पवार, जिन्हें मराठी मीडिया और लेफ्ट-लिबरल समूह राजनीति का चाणक्य कहता नहीं थकता है, वो आज राजनीतिक रूप से धराशायी हो चुके हैं।


शरद पवार की यह हार जिस 23 को नवंबर को हुई है, उसी 23 नवंबर से जुड़ा एक ऐसा नरसंहार भी है, जो यकीन दिलाता है कि पाप का घड़ा कितना भी बड़ा क्यों न हो, वह भर कर फूट ही जाता है, साथ ही अपने कर्मों का फल व्यक्ति को यहीं मिलता है।


दरअसल हम जिस नरसंहार की बात कर रहे हैं, वो है वर्ष 1994 की। इस दौर में शरद पवार कांग्रेस के बड़े नेता थे और पार्टी ने उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया था। इस दौरान जहां महाराष्ट्र में मुस्लिम तुष्टिकरण अपने चरम पर था, वहीं विदर्भ एवं उसके आसपास के क्षेत्रों एवं वहां रहने वाले वनवासियों को पूरी तरह से नज़रंदाज़ किया जा रहा था।


हालांकि यह कांग्रेस पुरानी परिपाटी रही है कि वो इस्लामिक जिहादियों, ईसाई मिशनरियों और कम्युनिस्ट आतंकियों-उग्रवादियों पर तो विशेष ध्यान देते आए हैं, लेकिन जब बात वनवासियों-जनजातियों एवं समाज के पिछड़े समूहों की आती है, तो कांग्रेस पार्टी इन्हें केवल वोट बैंक बनाकर रखती है।


वर्ष 1994 के समय महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में बहुतायत में रहने वाला गोवारी समाज अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल होने के लिए प्रदर्शन एवं आंदोलन कर रहा था।


गोवारी समाज, जिन्हें वर्ष 1956 से ही अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया था, लेकिन वर्ष 1993 में केंद्र सरकार ने उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल कर दिया था। गोवारी समाज का मानना है कि वो गोंड समाज से जुड़े हुए हैं, और मूल रूप से जनजाति समाज से हैं, इसीलिए उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने चाहिए।

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अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल होने के लिए विदर्भ क्षेत्र के नागपुर नगर में गोवारी समाज द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा था। इसी बीच महाराष्ट्र की विधानसभा का शीत सत्र नागपुर स्थित विधान भवन में होना था, और इसी दौरान गोवारी समाज के लोगों ने विधानसभा घेराव कर प्रदर्शन करने की योजना बनाई।


गोवारी समाज के लगभग 50,000 लोग विधानसभा के सामने प्रदर्शन कर अपनी मांग रखने पहुँच रहे थे, वहीं दूसरी ओर नागपुर पुलिस ने पूरे क्षेत्र में किसी भी प्रदर्शन को रोकने की तैयारी कर ली थी।


हजारों की भीड़ अपनी मांग के लिए विधान भवन के मार्ग में थी, लेकिन शरद पवार के नेतृत्व में चल रही सरकार के किसी भी नेता ने उनकी बात सुननी नहीं चाही। शासन-प्रशासन से किसी ने भी प्रयास नहीं किया कि प्रदर्शनकारियों की बात सुनी जाए, उनके मांगों पर विचार किया जाए और तो और प्रदर्शन कर रहे गोवारी समाज के लोगों के ज्ञापन लिए जाएं।


दिन भर पुलिस-प्रशासन से झूमा-झटकी होने के बाद गोवारी समाज के लोगों ने जब दिन ढलने लगा तभी एक लाल बत्ती की गाड़ी सामने से आती दिखाई दी। गाड़ी को देखते ही प्रदर्शनकारियों को यह लगा कि सरकार से कोई उनकी बात सुनने आया है, लेकिन यह शरद पवार की सरकार थी, जो गोवारी समाज की सभी समस्याओं को अनदेखा कर के चल रही थी।


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गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे प्रदर्शनकारियों पर अचानक पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। चूंकि भीड़ में बड़ी संख्या में महिलाएं भी थीं, जिनके बीच लाठीचार्ज के बाद अचानक हड़कंप मच गया और भीड़ इधर-उधर होने लगी। पुलिस ने भी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज जारी रखा और अंततः वो हुआ, जिसे याद कर गोवारी समाज के जख्म अभी भी ताजा हो जाते हैं।


शरद पवार के मुख्यमंत्री रहते 23 नवंबर 1994 को पुलिस ने गोवारी समाज पर जो लाठीचार्ज किया, उससे ऐसी भगदड़ मची कि इसमें 114 लोग मारे गए। भगदड़ में 500 से अधिक लोग घायल भी हुए। इतनी बड़ी घटना के बाद भी शरद पवार और उनकी कांग्रेस सरकार आंख मूंद कर बैठी रही। यह नागपुर की धरती में हुआ नरसंहार था, जिसकी ज़िम्मेदारी शरद पवार को लेनी थी।


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इस घटना के बाद न्यायमूर्ति एसएस दानी को लेकर एक सदस्यीय आयोग बनाया गया, जिन्हें इस घटना की जांच करनी थी। दिलचस्प बात यह थी कि आयोग ने 114 लोगों की मौत की इस घटना के लिए किसी को भी जिम्मेदार नहीं पाया था। ना पुलिस के मुखिया, ना प्रशासन और ना ही मुख्यमंत्री शरद पवार को। इस दौर में शरद पवार को महाराष्ट्र की राजनीति का सबसे बड़ा नेता माना गया।


हालांकि आज 29 वर्ष के बाद आज उसी 23 नवंबर को शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में एक ऐसी हार देख रहे हैं जिसकी कल्पना खुद पवार ने भी नहीं की होगी।


कभी मुख्यमंत्री रहते हुए उनके कार्यकाल में 1993 के मुंबई बम धमाके हुए, जिसमें इस्लामिक जिहादियों ने हिंदुओं को निशाना बनाया था, और नागपुर में शरद पवार की पुलिस ने नवंबर 1994 में गोवारी समाज पर जो लाठीचार्ज किया, जिसके चलते 114 लोगों की जान गई, उस शरद पवार का आज महाराष्ट्र की जनता ने राजनीतिक अंत कर दिया है।

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