बीते 31 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती के अवसर पर 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' के समीप एक भाषण देते एक बार फिर 'अर्बन नक्सल' शब्द का उल्लेख किया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि 'अर्बन नक्सलियों की पहचान कर उन्हें बेनकाब करने की आवश्यकता है।' नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में कहा कि जैसे-जैसे जंगलों से नक्सलवाद (माओवादी आतंक) खत्म हो रहा है, अर्बन नक्सलियों का एक नया मॉडल अपना सिर उठा रहा है।
प्रधानमंत्री का यह भाषण एक ऐसे समय में आया है जब देश में माओवादी आतंक अर्थात नक्सलवाद अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। केंद्रीय गृहमंत्री जहां एक ओर माओवादियों के खात्मे की डेडलाइन सेट कर चुके हैं, वहीं माओवादियों के सबसे अधिक प्रभावी क्षेत्र छत्तीसगढ़ में 10 महीने के भीतर ही 100 से अधिक माओवादियों को ढेर कर दिया गया है। ऐसे में प्रधानमंत्री द्वारा यह कहना कि 'जैसे-जैसे जंगलों से नक्सलवाद खत्म हो रहा है, अर्बन नक्सलियों का एक नया मॉडल सिर उठा रहा है', देश के लिए एक चिंता का विषय है।
बीते एक दशक में हमने देखा है कि कम्युनिस्ट विचारक एवं परोक्ष रूप से माओवादी समर्थकों के एक बड़े धड़े ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। कांग्रेस जहां कमजोर होती जा रही है, वहीं अब इस पार्टी में कम्युनिस्ट विचारकों की पकड़ मजबूत हो चुकी है। ऐसे में प्रधानमंत्री का कहना और सांकेतिक रूप से कांग्रेस की ओर इशारा करना, इस बात की पुष्टि करता है कि कांग्रेस अब कम्युनिस्टों और अर्बन नक्सलियों की कठपुतली बन चुकी है।
बीते एक दशक में यदि हम कांग्रेस नेताओं और विचारकों की गतिविधियां देखें, तो यही दिखाई देता है कि कांग्रेस अब 'कॉमरेड' बन गई है। राहुल गांधी जिस तरह से बीते वर्षों में पहले जेएनयू में 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' के समर्थन में खड़े हुए, उसके बाद देश में रोहित वेमुला के नाम पर अनुसूचित जाति को लेकर 'विभाजनकारी विमर्श' चलाया गया और फिर 2019 के बाद इस्लामिक तुष्टिकरण की नीति अपनाई गई, यह सबकुछ माओवादियों की 'रणनीति' का ही हिस्सा था, जिसे कांग्रेस पार्टी द्वारा जमीन पर उतारा गया।
सिर्फ इतना ही नहीं, वर्ष 2018 के चुनाव में छत्तीसगढ़ पहुँचे कांग्रेस नेता ने माओवादियों को 'क्रांतिकारी' बताया था, दिग्विजय सिंह पहले भी माओवादियों के लिए 'विनम्र' भाषा का उपयोग कर चुके हैं, वहीं छत्तीसगढ़ में चली कांग्रेस की 5 वर्ष की सरकार तो पूरी तरह कम्युनिस्ट विचारकों की 'सलाह' से चलाई जा रही थी। इसी का परिणाम था कि छत्तीसगढ़ में माओवादी आतंक के विरुद्ध कोई ठोस सफलता नहीं मिली, जिसके चलते छत्तीसगढ़ माओवादी आतंक से अभी तक मुक्त नहीं हो पाया है।
इसी वर्ष अप्रैल माह में जब फोर्स ने बस्तर संभाग के कांकेर में 29 माओवादियों का एनकाउंटर किया था, तभी यह आशा जग चुकी थी कि माओवादियों का सफाया अब निकट ही है। सुरक्षाबलों की छत्तीसगढ़ में यह माओवादियों के विरुद्ध सबसे बड़ी सफलता थी। लेकिन कांग्रेस पार्टी इस मामले को लेकर भी माओवादियों का पक्ष लेती नजर आई।
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने एनकाउंटर में मारे गए माओवादियों को जहां 'शहीद' बताया, वहीं तेलंगाना की कांग्रेस सरकार में मंत्री और कांग्रेस की वरिष्ठ नेताओं में शुमार अनुसुइया दनसारी उर्फ सीताक्का ने मारे गए माओवादी आतंकी कमांडर शंकर राव के घर जाकर उसे श्रद्धांजलि दी थी। गौरतलब है कि माओवादी आतंकी शंकर राव प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन में उत्तर बस्तर डिविजनल कमेटी का खूंखार माओवादी था, जिसे मुठभेड़ में फोर्स ने मार गिराया।
वहीं इस मामले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने भी सुरक्षाबल के जवानों पर ही प्रश्नचिन्ह खड़े किए थे। कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मुठभेड़ को फर्जी बताने में लगे थे और फोर्स की सफलता को नकार रहे थे।
यह माओवादियों की उसी रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत माओवादी पुलिस एनकाउंटर के बाद मारे गए माओवादियों को स्थानीय ग्रामीण-जनजाति-किसान-मजदूर बताते हैं।
कांग्रेस पार्टी बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से कम्युनिस्ट विचारकों के चंगुल में फंसी हुई है, इससे यह कहना गलत नहीं होगा कि अर्बन नक्सलियों ने अब कांग्रेस पार्टी और पूरे संगठन पर कब्जा कर लिया है, साथ ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्वकर्ता मोदी विरोध में कम्युनिस्टों की हर उस बात का समर्थन कर रहे हैं, जो भारत के हित में नहीं है।