बीते गुरुवार (12 दिसंबर, 2024) फोर्स को एक बड़ी सफलता हाथ लगी थी, जिसमें सुरक्षा बल के जवानों ने दंतेवाड़ा-नारायणपुर जिले के सीमावर्ती क्षेत्र में 40 लाख रुपये के इनामी 7 माओवादियों को ढेर किया था। माओवादियों को ढेर करने के बाद फ़ोर्स ने भारी मात्रा में हथियार भी बरामद किए थे।
अबूझमाड़ क्षेत्र में हुई इस मुठभेड़ में माओवादियों को इसलिए भी बड़ा झटका लगा क्योंकि इसमें मारे गए माओवादियों में से एक हार्डकोर माओवादी स्टेट कमेटी मेंबर रामचंद्र उर्फ कार्तिक भी था, जिस पर 25 लाख रुपये का इनाम घोषित था। यह माओवादी आतंकी बीते कुछ वर्षों में ओडिशा से निकलकर अबूझमाड़ के क्षेत्र में सक्रिय हुआ था।
लेकिन इस मुठभेड़ से एक स्थिति यह भी निकल कर आ रही है कि माओवादियों के गढ़ में घुसकर फोर्स द्वारा एनकाउंटर किए जाने के बाद माओवादी स्थानीय ग्रामीणों को अपनी ढाल बना रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि माओवादियों ने ग्रामीणों को पहली बार ढाल बनाने का काम किया है, लेकिन अब मुठभेड़ के बीच में बचने के लिए इन गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं। गत 12 दिसंबर को हुई मुठभेड़ में भी यही देखने को मिला कि कैसे माओवादियों ने स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों को ढाल बनाकर मुठभेड़ से बचने की कोशिश की, और इसी के चलते 4 नाबालिग बंदूक की गोली से घायल हो गए।
सिर्फ इतना ही नहीं, माओवादी इन बच्चों को ढाल तो बना ही रहे थे, लेकिन गोली लगने के बाद भी उनका उपचार भी नहीं करने दिया। माओवादियों के आतंक के कारण घायल हुए नाबालिग बच्चे गांव के भीतर ही जड़ी-बूटी से उपचार कराने को मजबूर थे।
इस बीच बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक सुंदरराज पी. ने बताया कि मुठभेड़ के 6 दिनों बाद पुलिस को नाबालिगों के घायल होने की जानकारी मिली, जिसके बाद तत्काल प्रभाव से उन्हें गांव से निकाल कर अस्पताल लाया गया है, जहां उनका उचित उपचार जारी है।
वहीं उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि माओवादी आतंकियों ने अपने आतंकी नेता रामचंद्र उर्फ कार्तिक को बचाने के लिए ग्रामीणों और बच्चों को आगे कर दिया था, जिसके चलते इन नाबालिगों को गोलियां लगी थी।
इस मुठभेड़ में माओवादियों ने जिस तरह से स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों एवं बच्चों को ढाल बनाने का काम किया है, यही उनके वास्तविक चेहरे को उजागर करता है। माओवादी एक ओर जल-जंगल-जमीन बचाने का झूठा नैरेटिव गढ़ते हैं, वहीं दूसरी ओर उनका लक्ष्य केवल इन क्षेत्रों में अपनी सत्ता, अपनी पकड़, अपना प्रभाव बनाये रखना मात्र है।
यदि बात जनजातियों के हितों के रक्षा की हो, तो भी माओवादियों का वास्तविक चेहरा उजागर होता है, क्योंकि माओवादी ये तो कहते हैं कि वो जनजातियों की रक्षा के लिए कार्य कर रहे हैं, लेकिन इसकी सच्चाई यही है कि वो इन्हीं जनजातियों को मार रहे हैं, उनका शोषण कर रहे हैं, उनके जीवन को नर्क बना रहे हैं।
अबूझमाड़ में हुई मुठभेड़ एक बड़ा उदाहरण है कि कैसे माओवादी अपनी सुरक्षा, अपने स्वार्थ और अपने संगठन के लिए बस्तर के मासूम जनजातियों को ना सिर्फ ढाल बना रहे हैं, बल्कि एक ऐसे युद्ध में झोंक रहे हैं, जिसका बस्तरवासियों से कोई लेना-देना नहीं है। यही माओवादी आतंकवाद की सच्चाई है और यही उनकी कायरता भी है।