महाराष्ट्र की विधानसभा में शीतकालीन सत्र के दौरान बीते बुधवार को 'महाराष्ट्र विशेष सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक' पेश किया गया, जिसके बाद इस बिल को संयुक्त सलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाएगा।
अब विषय यह है कि इस बिल में ऐसा क्या है कि कांग्रेस और कम्युनिस्ट इकोसिस्टम इससे बौखलाया हुआ है। तो बात यह है कि यह बिल महाराष्ट्र में शहरी माओवादियों या हम कहें कि अर्बन नक्सलियों के लिए काल साबित होने वाला है।
जिस तरह से छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और ओडिशा में पहले से ही इन अर्बन माओवादियों से निपटने के लिए इस तरह का कानून मौजूद है, ठीक उसी तरह से अब महाराष्ट्र में भी कानून बनने की संभावना है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा पेश किए गए बिल के अनुसार किसी संदिग्ध संगठन को सरकार गैरकानूनी घोषित कर सकती है, वहीं चार ऐसे अपराध भी शामिल किए गए हैं, जिसके लिए सजा भी हो सकती है। जैसे किसी गैरकानूनी संगठन का सदस्य होना, या उक्त संगठन के लिए धन एकत्रित करना या ऐसे संगठन की मदद करना, इन तरह गतिविधियां इसमें शामिल है।
दरअसल हाल ही में इसी शीतकालीन सत्र के दौरान देवेंद्र फडणवीस ने राहुल गांधी के द्वारा निकाले गए भारत जोड़ो यात्रा के 'माओवादी कनेक्शन' पर सवाल उठाए थे। फडणवीस ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में कई 'अर्बन नक्सल' संगठन शामिल थे।
वहीं फडणवीस ने यह भी कहा कि इनकी एक बैठक काठमांडू में भी हुई थी, जिसका उद्देश्य भाजपा शासित सरकारों को अस्थिर करना था। महाराष्ट्र एटीएस की जांच की शुरुआती आशंकाओं को इंगित करते हुए फडणवीस ने कहा कि चुनावों में आतंकवादी धन का उपयोग और विदेशी हस्तक्षेप के प्रमाण भी मिले हैं।
फडणवीस की बातों को यदि हम बारीकी से समझे और भारत जोड़ो यात्रा को समझने का प्रयास करें तो यह तो दिखता ही है कि इसमें जॉर्ज सोरोस जैसे भारत विरोधी शक्तियों से जुड़े लोग शामिल थे, जो राहुल गांधी की परछाई बने घूम रहे थे।
जॉर्ज सोरोस के फाउंडेशन के वाइस प्रेसिडेंट सलिल शेट्टी भारत जोड़ो यात्रा में दिखाई दिए थे। भारत जोड़ो यात्रा में माओवादियों के मानवाधिकार की बात करने वाली मेधा पाटकर जैसे कम्युनिस्ट भी शामिल थे। ऐसे में देवेंद्र फडणवीस के आरोप गंभीर दिखाई देते हैं, जो उन्होंने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पर लगाए हैं।
वहीं हम महाराष्ट्र में अर्बन माओवादियों की गतिविधियों की बात करें तो वर्ष 2018 में प्रदेश में भाजपा की सरकार रहने के दौरान ही माओवादियों-शहरी नक्सलियों के गठजोड़ ने एक ऐसा दंगा कराया था, जिसके जख्म अभी भी ताजा हैं।
भीमा कोरेगांव में हुए इस दंगे के बाद देश भर से कई शहरी माओवादियों को गिरफ्तार किया गया था। वरवर राव, सुधा भारद्वाज, स्टेन स्वामी, गौतम नवलखा, वर्नोन गोंजाल्विस जैसे कई अर्बन नक्सली पुलिस के हत्थे चढ़े थे। प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का भी खुलासा हुआ था।
इन शहरी माओवादियों के गिरफ्तार होने के बाद इस पूरे विषय पर कम्युनिस्टों के अंतरराष्ट्रीय इकोसिस्टम ने हाथ-पैर मारना शुरू कर दिया, कांग्रेस का पूरा तंत्र तिलमिला उठा, जंगल में बैठे माओवादी बौखला गए, वहीं भारत की जनता ने पहली बार बुद्धिजीवियों के भेष में बैठे 'अर्बन नक्सलियों' को देखा।
ऐसी परिस्थिति में अब जब महाराष्ट्र सरकार इन अर्बन नक्सलियों को दबोचने के लिए एक ऐसा कानून बनाने जा रही है, जो इनकी पूरी रणनीति को फेल कर इन्हें सलाखों के पीछे डाल देगा, तो यह ना सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देश में माओवादी आतंक और माओवादी विचार के विरुद्ध एक कड़ा प्रहार होगा।