मनमोहन सिंह भारत के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री थे जिनके लिए कहा जाता था कि उनका रिमोट कंट्रोल कहीं और है। वे अपनी स्वतंत्र छवि बनाने में 10 साल तक नाकामयाब रहे परन्तु विश्व में ऐसा वातावरण बनाने में कामयाब रहे कि भारत का अपना कोई मजबूत वजूद दुनिया में नहीं है।
उनके कार्यकाल में भारत में इतने बम धमाके होते थे कि हर समय हर स्थान शक के घेरे में रहता था कि कहीं यहाँ बम धमाके न हो जाएं। राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हुए सभी सार्वजनिक स्थानों पर जो एक बात कॉमन थी वह यह कि वहाँ लिखा होता था, "अनजान वस्तुओं को न छुएं।"
120 करोड़ लोगों के देश में मनमोहन सिंह की कैबिनेट के साइकिएट्रिस्ट गृहमंत्री बड़े-बड़े बम धमाकों के बाद कहते थे कि लोगों की याददाश्त कम होती है, इसके अलावा मनोविज्ञान के शोधार्थी शहजादे ने भी महंगाई को एक स्टेट ऑफ माइंड कहकर भारतीयों के मनोबल को ऊंचा उठाया था। ऐसी सफलता स्वतंत्र भारत में शायद उन्हें ही हासिल हुई है।
घोटालों का विशेष रूप से उनकी सरकार में वर्चस्व था। 2जी, कोयला, कॉमनवेल्थ से लेकर विभिन्न प्रकार के घोटाले जनता को उचित मूल्य पर उपलब्ध करवाए गए थे। इनकी कीमत केवल जयपुर काशी दिल्ली मुम्बई जैसे सीरियल ब्लास्ट्स में गयी लोगों की जान होती थी।
इसी सन्दर्भ में उनके कार्यकाल में कहा गया था,
"मातम पसरा शहर में
भरा भीड़ से है श्मशान
कोई पूछे तो कह देना
हो रहा भारत निर्माण"
इतनी बेहतर डील के लिए पूरे मीडिया द्वारा उन्हें ईमानदार प्रधानमंत्री की उपाधि भी दी गयी थी।
इसके अतिरिक्त फ्रीडम ऑफ स्पीच उनके कार्यकाल की तीसरी बड़ी उपलब्धि थी। जहाँ बाबा रामदेव को टेंट जैसी बन्द जगह से रात के 2 बजे हटाकर रोड जैसे खुले स्थान से आंदोलन करने को कहा गया था। इसके लिए लाठियों का सांकेतिक प्रयोग किया गया, जिसमें केवल एक महिला की जान गई, बनिस्पत इसके कि बम ब्लास्ट्स में 50 से कम जानें नहीं जाती थीं।
मनमोहन सिंह को सांप्रदायिक लक्षित हिंसा विरोधी अधिनियम जैसे कानूनों के लिए भी जाना जाएगा, जिसके माध्यम से दंगों में बहुसंख्यकों की जमीनें छीनने जैसी सुविधाएं मानवाधिकारों के तहत अल्पसंख्यकों को उपलब्ध करवाई जानी थीं। परन्तु कट्टरपंथियों के दबाव के कारण ऐसा नहीं हो सका।
पर इससे मनमोहन सिंह सरकार इरादों से डिगी नहीं और अपनी सरकार के रहते लाखों एकड़ जमीनें अल्पसंख्यकों को वक्फ एक्ट के तहत ट्रांसफर कीं। बहुत कम लोग जानते हैं कि मनमोहन सिंह अपनी जुबान के पक्के थे और उन्होंने विदेश की धरती पर कहा था कि भारत के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है, इसीलिए ऐसे कठोर निर्णय लेने से भी वह नहीं चूके।
लेख
मुदित अग्रवाल
स्वतंत्र टिप्पणीकार