कम्युनिज़्म का विचार और इससे निकले माओवाद का आतंक कैसा होता है, यदि इसे देखना है तो बस्तर में हुई घटना इसका बड़ा उदाहरण है। बस्तर में माओवादियों ने अपने विदेशी वैचारिक पुरोधा मार्क्स और माओ की विचारधारा का पालन करते हुए दो ऐसे ग्रामीणों की हत्या की है, जो इनके देश विरोधी विचार को नकार कर राष्ट्रवादी विचार से जुड़े हुए हैं।
जिन्हें हम नक्सली कहकर यह सोच लेते हैं कि वो बस्तर में 'जल-जंगल-जमीन' की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन वास्तव में वो कम्युनिस्ट आतंकी हैं, माओवादी आतंकी, और इनकी मूल विचारधारा में केवल और केवल हिंसा और रक्तपात है।
दरअसल माओवादियों ने कल गुरुवार (5 दिसंबर, 2024) को बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के अलग-अलग क्षेत्र से अपहृत दो पूर्व सरपंचों के शव को खुली सड़क में फेंका है, जिसमें शव के साथ माओवादियों ने पर्चा भी जारी किया है।
जिन लोगों को माओवादियों ने मौत के घाट उतारा है, वो दोनों बीजापुर जिले के स्थानीय जनजातीय ग्रामीण थे और पूर्व में जनप्रतिनिधि रह चुके हैं। दोनों ग्रामीणों का माओवादियों ने बुधवार (3 दिसंबर, 2024) को अपहरण किया था, जिसके बाद उनकी हत्या कर शव को फेंक दिया है।
माओवादियों के आतंक का शिकार बने जनजातीय ग्रामीणों की पहचान सुखलु फरसा और सुखराम अवलम के रूप में हुई है। बुधवार की शाम सुखलु फरसा अडवाड़ा के समीप से गुजरते हुए एक अंतिम संस्कार में शामिल होने जा रहे थे, इसी दौरान नकाबपोश माओवादियों ने उनका अपहरण कर लिया था। इस दौरान फरसा की पत्नी भी उसके साथ थी, जिन्होंने परिजनों को इस घटना की जानकारी दी।
माओवादियों द्वारा फरसा का अपहरण किए जाने के बाद उनकी बेटी ने एक वीडियो बनाकर पिता की रिहाई के लिए अपील की थी और भावुकता से निवेदन किया था। लेकिन वो बेटी भूल गई थी कि माओवादी तंत्र में लोकतंत्र नहीं होता है, कम्युनिस्टों के विचार तंत्र में किसी की सुनवाई नहीं होती है, वहां केवल और केवल तानाशाही होती है।
माओवादियों ने अंततः फरसा की हत्या कर दी और उसके शव को सड़क किनारे छोड़ दिया। शव के पास एक पर्चा भी छोड़ा और उसमें लिखा था 'भाजपा से संबंध रखने के कारण फरसा की हत्या की गई।'
पर्चा में माओवादियों ने यह भी लिखा कि उन्होंने सुखलु को कई बार चेतावनी दी थी कि वो भाजपा से दूरी बना ले, लेकिन उसने माओवादी संगठन की बात नहीं मानी। सुखलु फरसा पूर्व में सरपंच थे और फिर भैरमगढ़ में भाजपा के किसान मोर्चा के ब्लॉक के प्रमुख थे। फरसा बीते दो दशक से क्षेत्र में भाजपा कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय थे।
वहीं दूसरी ओर सुखराम अवलम का शव माओवादियों ने नैमेड़ थाना क्षेत्र के भीतर कादर गांव के समीप सड़क में फेंका था। माओवादियों ने अवलम का भी बुधवार को अपहरण कर लिया था। अवलम भी भाजपा का कार्यकर्ता था।
माओवादी केवल भाजपा से जुड़े नेताओं को निशाना बना रहे हैं, वो भी केवल इसलिए क्योंकि उक्त व्यक्ति भाजपा से केवल जुड़ा हुआ है। क्या ऐसा है कि केवल भाजपा ही वो दल है जो माओवादियों को खत्म करना चाहती है ? अन्य दलों का रुख इसमें नरम है ? हालांकि इसके कुछ संकेत हमें छत्तीसगढ़ में पिछली कांग्रेस सरकार में देखा है, जहाँ माओवादियों के विरुद्ध पुलिस ऑपरेशन लगभग नगण्य हो गए थे।
माओवादियों ने पिछले 2 वर्षों में जिस तरह से लगभग एक दर्जन भाजपा नेताओं की हत्या की है, यह कुछ और नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से टारगेट किलिंग है, जिसे माओवादियों ने इस हत्या के बाद छोड़े गए पर्चे में स्वीकार भी लिया है।
माओवादी जिस तरह से इन हत्याओं को अंजाम दे रहे हैं, उससे यह स्पष्ट है कि वो उसी कम्युनिस्ट विचार का पालन कर रहे हैं, जो कार्ल मार्क्स और माओ-त्से-तुंग ने प्रतिपादित किया था। जिस तरह से माओ ने कम्युनिस्ट विरोधियों को मारने और उनकी हत्या करने का कार्य किया था, वही कार्य माओवादी बस्तर में कर रहे हैं।