लोकसभा चुनाव 2024 वैसे तो एक तरफा माना जा रहा है लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि एनडीए इस चुनाव में कितनी सीटों पर विजयी होती है। उत्तराखण्ड में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने निर्णायक जीत हासिल के लिए कमर कस ली है, वहीं इण्डियन नैशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायन्स (इण्डी गठबंधन) अपनी विवादित नीतियों और अप्रभावी घोषणा पत्र की वजह से फिर हार का स्वाद चखेगी।
बीजेपी ने इस बार अपने घोषणापत्र में विकास, इंफ्रास्ट्रक्चर और सामाज कल्याण की योजनाओं को शामिल कर के मतदाताओं के साथ सीधा संवाद स्थापित किया है। वहीं दूसरी ओर इण्डी गठबंधन के घोषणापत्र में अस्पष्टता और दूरदृष्टि की कमी नज़र आती है जिससे उत्तराखण्ड की जानता बिलकुल भी प्रभावित नहीं हो पायी है।
इण्डी गठबंधन के अभियान को इसकी विवादित नीतियों ने और बिगाड़ दिया है। इस बार के चुनाव में इण्डी गठबंधन का कृषि और शिक्षा सहित विभिन्न मुद्दों पर जो रुख रहा है वह उत्तराखंड के हित के लिए बहुत हानिकारक है।
इस चुनावी दौर में इण्डी गठबंधन की भ्रष्ट नीतियों और दूषित विचारधारा को उत्तराखण्ड के लोगों स्पष्ट रूप से ख़ारिज कर दिया है। बीजेपी की आगामी जीत उत्तराखंड की भलाई के लिए उसकी प्रतिबद्धता और उसके वादे पूरा करने की क्षमता का प्रमाण साबित होगा।
बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने कहा है कि जिस प्रकार पिछले दस सालों में बीजेपी की सरकार ने उत्तराखंड के लोगों से किया हुआ वादा पूरा किया है, वह इस बार भी अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और राज्य में प्रगति और समृद्धि का नया युग लाएंगे।
आँकलन किया जाये तो 2024 लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने कुछ प्रमुख वादे किए जिनमें से उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता (यूसीसी) कानून लागू कर दिया गया है।
इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए), एक देश एक चुनाव, पेपर लीक के खिलाफ कानून, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत अगले पांच वर्षों के लिए गरीबों को मुफ्त राशन प्रदान करना, आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीब परिवारों को 5 लाख रुपये तक की मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना, प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत गरीब परिवारों को मुफ्त बिजली प्रदान करना, तीन करोड़ ग्रामीण महिलाओं को ‘लखपति दीदी’ बनने के लिए सशक्त बनाना जैसे घोषणा पर भी कार्य चल रहा है।
जबकि 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए उत्तराखंड में कांग्रेस के घोषणापत्र में जरा भी स्पष्टता नहीं है। दिखावे मात्र के लिए पांच न्याय के स्तंभ के नाम से अपने घोषणापत्र को सजाने की कोशिश की है। इनमें युवा न्याय, नारी न्याय, किसान न्याय, श्रमिक न्याय, हिस्सेदारी न्याय को शामिल किया है। जो गठबंधन अपने चुनावी मुद्दों और सीट के बटवारों के साथ न्याय नहीं कर पा रहा है उनका ये घोषणापत्र तो किसी अन्याय से कम नहीं है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि इण्डी गठबंधन की नीतियाँ साम्यवादी विचारों, विरोधाभासी बयानों और सीधे तौर पर हानिकारक प्रस्तावों का मिश्रण हैं। यही तो सबसे बड़ा षड्यंत्र है कि जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करने वाले दलों का गठबंधन ऐसी विनाशकारी नीतियों का प्रस्ताव जनता को परोस रहा है।
इण्डी गठबंधन की आर्थिक नीतियाँ ऐसी हैं कि यह पूंजी के पलायन और निवेश में गिरावट का कारण बनेगा। सरकारी खर्च बढ़ाने की उनकी योजना बिना किसी स्पष्ट राजस्व उत्पन्न करने की योजना के केवल बजट घाटे में वृद्धि और भविष्य की पीढ़ियों पर कर्ज का बोझ बढ़ाएगी।
इण्डी गठबंधन की सामाजिक नीतियाँ तो उससे भी ज़्यादा चिंताजनक हैं। इसमें तो स्पष्ट साम्यवाद की विनाशकारी विचारधारा नज़र आती है। गठबंधन द्वारा यूनिवर्सल बेसिक इनकम लागू करने की योजना जैसी अन्य कई योजना केवल भ्रम को बढ़ाती है। इसके अलावा, सरकारी नौकरियों में महिलाओं और अल्पसंख्यकों के लिए 50% आरक्षण करने का उनका वादा केवल विभाजनकारी है।
इतना तो स्पष्ट है कि उत्तराखण्ड की जानता ने मतदान के दिन ही कांग्रेस और इण्डी गठबंधन की कम्युनिस्ट विचारधारा और विभाजनकारी नीतियों को फिर से धूल चटा दिया है और विकसित भारत की ओर ले जाने वाली एनडीए को वापस चुनाव में विजयी बनाकर एक नये उभरते भारत का लेख लिख दिया है। इस बार पुनः उत्तराखंड के लोकसभा चुनाव में बीजेपी विजेता के रूप में उभरेगी। बीजेपी के नए कार्यकाल के शुरू होते ही उत्तराखंड फिर से उज्जवल भविष्य की गतिमान होगा।
लेख
रोहित उपाध्याय
यंगइंकर
शोधार्थी, नैनीताल विश्वविद्यालय