वामपंथ की जिहादी सांठगांठ को पहचानना जरूरी है

22 May 2024 13:43:26

Image

अमेरिका के एक प्रतिष्ठित संस्थान प्रिंसटन के परिसर में एक पोस्टर काफी चर्चा में है जिसमें हमास के आतंकी जैसी एक आकृति छपी हुई है। पोस्टर में छपे व्यक्ति का सिर और चेहरा कपडे में लिपटा हुआ और उसके हाथ में क्रांतिकारी मुद्रा में एक गुलेल है। पोस्टर की पृष्ठभूमि में एक विशाल तरबूज का लाल और हरा रंग दिखाई दे रहा है। यह पोस्टर लगा है 'प्रिंसटन गाजा एकजुटता शिविर' द्वारा चललए जा रहे प्रदर्शन में यह पोस्टर डिजिटल पेंटब्रश की कलाकारी के साथ, कलाकार और उसके संचालकों ने वामपंथी-इस्लामवादी नैरेटिव में एक मास्टरस्ट्रोक दिया है।

Image


हमास के हथियारों को जिनमें रॉकेट लांचर, मशीनगन, तलवारों, चाकू, छुरियों के साथ साथ सामूहिक बलात्कार भी शामिल है, उन हथियारों को एक हानिरहित गुलेल से बदलने का मतलब साफ है - 7 अक्टूबर के नरसंहार को हवा देना।


इस पोस्टर में तरबूज के हरे रंग को कम महत्व दिया गया है और लाल रंग को बड़ी चतुराई से युवा पश्चिमी शिकारों के लिए खोल दिया गया है। ये रंगों का खेल उनके लिए है, जो मार्क्सवादी और माओवादी अराजकता के साथ तो मनमानी कर रहे हैं, लेकिन कट्टरपंथी जिहादी प्रदर्शन के लिए अभी तक तैयार नहीं हैं।


हमास और हिजबुल्लाह जैसे आतंकवादी समूहों की गुमनामी बनाये रखने में मुख्य सहयोगी है ये चेहरा ढकने वाला कपड़ा, जिसे आजकल पश्चिमी देशों में बारीक तरीके से सामान्यीकृत किया जा रहा है। और इस बात में कोई संदेह नहीं है कि एक बार प्रयोग सफल होने पर यह हथकंडा भारत में भी खेला जाने वाला है।


इस पोस्टर में आतंकी का उठा हुआ हाथ, इनके लोगों की शक्ति, लम्बे चलना वाले विरोध का प्रतीक है जोकि लोगों का ध्यान हमास जैसे आतंकी संगठन की दुष्टता से ध्यान भटकाने वाला है। इस्लामी आतंक को "शोषितों" द्वारा किये जा रहे 'प्रतिरोध' के रूप में प्रचारित करने के लिए दुनिया भर में अरबों डॉलर खर्च किए जाते हैं, चाहे वह अमरीका हो, लंदन हो तेल अवीव हो, पेरिस हो या नई दिल्ली में हो।


अमरीकी शैक्षणिक परिसरों में विरोध प्रदर्शन इस बात का एक उदाहरण है कि वामपंथी-इस्लामवादी गठजोड़ कैसे काम करता है। यह साँठ-गाँठ कैसे एक दुर्दांत सच्चाई को नष्ट कर देती है और यहां तक कि सामूहिक नरसंहार पर भी अपना पल्ला झाड़ देता है, जबकि अपराधी होते हुए भी वैश्विक सहानुभूति और बौद्धिक क्रेडिबिलिटी दोनों को आकर्षित करने की पूरी व्यवस्था करता है।


वैश्विक सहयोगियों के रूप में, इस्लाम और कम्युनिज़्म एक-दूसरे के पूरक हैं, हालाँकि दोनों कभी भी एक ही स्थान पर साथ नहीं रह सकते हैं। कम्युनिज़्म इस्लाम को प्रचार, बौद्धिक रक्षा, बर्बरता करने कि आजादी और सहानुभूति देता है जिसकी उसके खुद के पास कमी है, और इस्लाम इस नाकाम कम्युनिज़्म को "स्ट्रीट पावर" वाली सरकार देता है।


चाहे वह आईएसआईएस के कालखंड के दौरान सीरिया और इराक से यूरोप में माइग्रेशन के लिए एक मजबूत केस बनाने के लिए तीन वर्षीय बालक एलन कुर्दी की तस्वीर का उपयोग करना हो, या सिर से पैर तक बुर्का पहने कर्नाटक की लड़की की छवि को शत्रुओं के खिलाफ लड़ रही 'बाघिन' बताना हो। एक सामाजिक विद्रोही के रूप में, वामपंथियों ने हिंसक अतिक्रमण या कट्टर तोड़फोड़ के परिणामों की परवाह किए बिना इस्लाम के लिए लुभावने रोमांटिक जनाधार ही बनाए हैं।


“कम्युनिस्टों ने प्रचार और सूचना फ़ैलाने की ऐसी उत्कृष्ट कला विकसित कर ली है कि यह बुरे से बुरे अपराधों को भी शांत और न्यायसंगत घोषित कर सकती है। उदाहरण के लिए, वेब सीरीज मनी हीस्ट में, मुख्य किरदार एक प्रोफेसर है, जो अक्सर शिक्षण संस्थानों में अपनी वैचारिक पकड़ को देखते हुए वामपंथी कल्पना का केंद्रीय व्यक्ति होता है। उसमें देखा जा सकता है कि कैसे एक दाढ़ी वाले उपदेशक को बैंक लूटने का जुनून सवार हो गया है, क्योंकि जब वह एक बैंक लूट रहा था तो पुलिस ने उसके पिता को गोली मार दी थी!इसमें बैंक लूट को रोकने की कोशिश करने वाला पूरा सिस्टम ही खलनायक है। निस्संदेह, लुटेरे ढेर हो जाते हैं और हीरो बन जाते हैं, बिलकुल कश्मीरी आतंकी बुरहान वानी की तरह।”


अब पुनः भारत की स्थिति को देखते हैं, "रंग दे बसंती" गाना वामपंथी प्रचार का एक अद्भुत नमूना था। उसमें अतुल कुलकर्णी का किरदार एक असभ्य हिंदुत्व कार्यकर्ता का दिखाया है। इस किरदार को भारत में पूरे राष्ट्रवादी समाज का प्रतिनिधि माना जाता है। वह अंततः अपने सभी सांस्कृतिक मूल्यों को छोड़कर अपने पश्चिमी, उदार साथियों के सामने 'आत्मसमर्पण' करके खुद को आजाद महसूस करता है।


इस सब को देखते हुए एक सवाल उठता है, अगर भारत को भी कभी इजराइल के खिलाफ छेड़े गए जैसे नैरेटिव युद्ध का सामना करना पड़ा तो वह क्या करेगा? क्या भारत इसके लिए तैयार है? उत्तर स्पष्ट है, नहीं, हम तैयार नहीं है।


हमारा सोशल मीडिया समूह हास्यास्पद मीम्स, पैरोडी वाले सत्य उजागर करने में उत्कृष्ट हो सकता है, लेकिन वैश्विक सहानुभूति प्राप्त करने के मामले में हम कच्चे हैं। पिछले करीब एक हजार साल से हम अपने समुदाय के साथ हो रहे नरसंहार को झेलने का बावजूद, हमारे देश के टुकड़े करवाने के बावजूद नरसंहार करने वाले "शोषित" और "पीड़ित" बने हुए हैं।


उनका हिन्दुस्तान का "किसी के बाप का थोड़े ही है" कहना पूरी दुनिया में स्वीकार किया जाता है और हमारा अपनी ही मातृभूमि को अपनी मां कहना अन्धविश्वाश, पिछड़ापन और साम्प्रदायिक करार किया जाता है। भले ही शब्दों और चित्रों की अत्याधुनिक बुनाई में लिपटे बेशर्म झूठ के माध्यम से हो, भारत को वामपंथ द्वारा उड़ा दिया जाएगा।


"भारत को वाम-जिहादी गठजोड़ से सीखने की जरूरत है। कभी-कभी बुरे से सीखना अच्छा होता है।" – न्यूज 18, 17 मई, 2024

लेख

Image

सूरज भान शर्मा
स्तंभकार - Writers For The Nation

सामजिक कार्यकर्ता, पत्रकार
Powered By Sangraha 9.0