27 मई की देर रात जब तारीख बदल बदल कर 28 मई हो चुकी थी, और समय था 1 बजे का। इस दौरान हावड़ा-मुम्बई रेलमार्ग पर चलने वाली ट्रेन ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर के पास से गुजर रही थी, इसी दौरान इस ट्रेन के 13 कोच पटरी से अचानक उतर गए।
तेज गति से चल रही ट्रेन के डिब्बे उतरने से उसमें बैठे यात्री बड़ी संख्या में मारे गए, और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए। इस हादसे में मरने वालों की संख्या थी 148। लेकिन क्या यह कोई हादसा था ? क्या यह कोई ट्रेन एक्सीडेंट (ट्रेन दुर्घटना) था ? या इसके पीछे कोई साजिश थी ?
दरअसल यह कोई दुर्घटना या घटना नहीं बल्कि एक सोची समझी आतंकी वारदात थी, जिसे कम्युनिस्ट आतंकियों ने अंजाम दिया था। कम्युनिस्ट आतंकियों (माओवादियों-नक्सलियों) ने आम जनता को निशाना बनाते हुए भारतीय रेल पर हमला किया, और इस आतंकी हमले के चलते 148 लोग मारे गए।
ट्रेन पूरी तरह सोये हुए यात्रियों से भरी हुई थी, प्रत्येक बोगी में लगभग 70 यात्री थे। हमले के बाद मलबे से शव लटक रहे थे और राहतकर्मी संभावित जीवित लोगों तक पहुंचने के लिए गैस कटर की मदद ले रहे थे। तत्कालीन सरकार में स्थिति इतनी बदतर थी कि नाराज़ यात्रियों ने बताया कि हमला होने के लगभग 3 घंटे के बाद किसी तरह की सहायता शुरू हुई थी।
इस आतंकी हमले को कुछ ऐसे अंजाम दिया गया था कि हावड़ा से कुर्ला के लिए निकली ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस एवं एक अन्य मालगाड़ी झारग्राम के पास से गुजर रही थी, इसी दौरान माओवादियों ने पैसेंजर गाड़ी को निशाना बनाया, जिसके बाद दोनों गाड़ियों में भिड़ंत हुई।
हमले को अंजाम देने के लिए माओवादियों ने रेल ट्रैक के एक हिस्से को ही गायब कर दिया था, साथ ही रेल ट्रैक को जोड़ने के लिए उपयोग किए जाने वाले 'फिशप्लेट्स' के नट-बोल्ट को इतना ढीला कर दिया था कि ट्रेन गुजरते ही पटरी ही खिसक जाए। जांच में पटरी के पास एक टीएमटी विस्फोटक भी बरामद हुआ था।
इस माओवादी आतंकी हमले की भयावहता का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि घटना के बाद रेस्क्यू टीम को केवल 26 शव ही बरामद हो पाए थे, इसके बाद भारतीय वायुसेना को तत्काल बुलाया गया ताकि घायलों को एयरलिफ्ट कर अस्पताल पहुंचाया जा सके, साथ ही नेशनल कैडेट कॉर्प्स की टीम को भी रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाया गया। तत्काल हमले की जगह पर एक मेडिकल ट्रेन भी भेजी गई।
गौरतलब है कि माओवादी आतंकियों ने इस घटना को अपनी उस घोषणा के ठीक 90 घंटे के बाद अंजाम दिया था, जिसमें उन्होंने (भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी -माओवादी) 4 दिवसीय बंद का आह्वान किया था। इस घटना के दौरान यह भी समझ आया कि कैसे तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए की सरकार ने माओवादी आतंकियों के विरुद्ध किसी भी कड़ी कार्रवाई से खुद को रोक रखा था।
वहीं इस आतंकी घटना की सीआईडी द्वारा की जा रही जांच में कम्युनिस्ट आतंकी संगठन 'सिद्धू कान्हू जन मिलिशिया', जो कि पीसीपीए की सशस्त्र इकाई था, के माओवादी आतंकी समीर महतो को गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा मुख्य आरोपी खगेन महतो को भी सीआईडी ने गिरफ्तार किया था। वह भी कम्युनिस्ट आतंकी संगठन का सदस्य था, जिसने इस पूरे घटना को अंजाम दिया था।
इस हमले को माओवादियों ने जब अंजाम दिया, उससे पहले ये कम्युनिस्ट आतंकी वर्ष 2010 के पहले छः माह में ही बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम दे चुके थे। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में अप्रैल 2010 में 76 जवानों का नरसंहार हो या मई के माह में ही सुकमा के करीब आम यात्रियों से भरी बस में बैठे 44 यात्रियों का नरसंहार करना हो, इन सभी बड़ी घटनाओं में माओवादी सक्रिय थे।
इन घटनाओं से यह भी स्पष्ट हो रहा था कि माओवादी आम नागरिकों से भरे वाहनों एवं यातायात के साधनों पर हमला कर रहे हैं, लेकिन इन सब के बावजूद तत्कालीन कांग्रेस नीत यूपीए सरकार ने माओवादियों को खत्म करने की दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। पैसेंजर ट्रेन में हमला कर 148 लोगों की जान लेने के बाद भी माओवादियों के विरुद्ध जंगलों में विशेष अभियान की अनुमति नहीं दी गई। इस घटना के बाद जहां तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने दुःख जताया, वहीं पीड़ितों एवं मृतकों को केवल मुआवजा देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
सबसे हैरानी की बात यह थी कि इतना बड़ा आतंकी हमला होने के बाद भी कम्युनिस्ट पार्टी एवं ममता बनर्जी राजनीतिक लड़ाई में उलझे रहे। दोनों पार्टियों को इस हमले से अधिक चिंता बंगाल में होने वाले निकाय चुनाव की थी।
यह हमला उन समूहों के लिए भी आंखें खोलने वाला था जो कहते थे कि 'माओवादियों-नक्सलियों का विरोध सरकार से है, वो जल-जंगल-जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं।' लेकिन वास्तविकता यही है कि माओवादियों ने अपने प्रभावी क्षेत्रों में केवल और केवल रक्तपात किया है। माओवादियों की इस कम्युनिस्ट विचारधारा ने केवल 2004 से 2024 तक में ही 20,000 से अधिक लोगों की जान ली है।
माओवादियों के इस विचार की सच्चाई यही है कि ये ना ही किसी 'जल-जंगल-जमीन' की लड़ाई लड़ रहे हैं, ना ही वो किसी 'जनजाति, शोषित, वंचित या पीड़ित' की लड़ाई लड़ रहे हैं। माओवादी केवल और केवल भारत को अस्थिर करने एवं पैसों की लूट में लगे हुए हैं, जिसके लिए उन्हें भारत के विदेशी शत्रुओं से भी सहायता मिलती है।