सामाजिक सौहार्द एवं शांतिप्रिय क्षेत्र के रूप में पहचाने जाने वाले छत्तीसगढ़ में सोमवार (10 जून, 2024) को एक ऐसी घटना हुई, जिसने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया। प्रदेश के बलौदाबाजार जिले में सतनामी समुदाय द्वारा किए गए प्रदर्शन ने पूरे राज्य को स्तब्ध कर दिया है। इस प्रदर्शन के दौरान उपद्रवियों ने इस स्तर पर हिंसा की है कि कलेक्टर और जिला पुलिस अधीक्षक के कार्यालयों को आग लगाकर फूंक दिया गया है।
प्रदर्शन को अंजाम दे रहे उपद्रवियों ने कलेक्ट्रेट में खड़ी गाड़ियों में तोड़फोड़ किया, और फिर यहां आगजनी कर दी, जिससे कई महत्वपूर्ण दस्तावेज जलकर खाक हो गए। सतनामी समुदाय के लोगों द्वारा किए इस प्रदर्शन में शामिल उपद्रवियों ने पुलिस पर पथराव भी किए, जिसके चलते कई पुलिसकर्मी घायल हुए।
इस हिंसक प्रदर्शन को लेकर जिला प्रशासन द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार इस दौरान करीब 7-8 हजार प्रदर्शनकारी मौजूद थे, जिसमें उपद्रवी भी शामिल थे। इन्होंने कलेक्ट्रेट परिसर में मौजूद 100 से अधिक दुपहिया वाहनों में तोड़फोड़ की, वहीं 30 से अधिक चारपहिया वाहनों को भी निशाना बनाया।
सुनियोजित तरीके से शहर में लगे सीसीटीवी कैमरों को तोड़ा गया, और पुलिस बल पर पथराव भी किया गया। मामले की गंभीरता देखते हुए 16 जून तक क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी गई है। वहीं घटना के तुरंत बाद मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने उपद्रवियों को गिरफ्तार करने के आदेश भी जारी किए हैं। सतनामी समाज के द्वारा किया गया यह प्रदर्शन, हिंसा का रूप धारण कर लेगा, ऐसा कोई अनुमान नहीं था।
जिस तरह के संगठन एवं उसके पदाधिकारी उग्रता से इन आंदोलन के पहले रणनीति बना रहे थे, वहीं आंदोलन के दौरान भी जिस तरह इसे पेश कर रहे हैं, उससे ऐसा प्रतीत होता है कि यह एक पड़े षड्यंत्र का हिस्सा है। हालांकि यह षड्यंत्र कैसा है और इसके तार कहाँ-कहाँ से जुड़े हैं, उसे समझने से पहले यह जानना आवश्यक है कि यह प्रदर्शन क्यों किया जा रहा था।
दरअसल बीते 15 मई को सतनामी समाज के पवित्र स्थल गिरौदपुरी धाम से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मानकोनी क्षेत्र में अवस्थित जैतखाम को कुछ असामाजिक तत्वों ने क्षतिग्रस्त कर दिया था।
इसके बाद से ही क्षेत्र के सतनामी समाज के लोगों ने सरकार से कार्रवाई की मांग की, जिसके बाद पुलिस ने मामला दर्ज करते हुए 3 आरोपियों को गिरफ्तार किया, जिन्होंने नशे की स्थिति में इन घटना को अंजाम दिया था। तीनों आरोपी बिहार के मजदूर हैं, जिन्होंने क्षेत्र में चल रहे कार्य के बाद ठेकेदार द्वारा पैसे नहीं दिए जाने से नाराज़ थे और नशे की स्थिति में उन्होंने जैतखाम को नुकसान पहुंचाया।
घटना के 4 दिन बाद ही आरोपियों की गिरफ्तारी होने के बाद भी, सतनामी समाज का कहना था कि असली दोषियों की गिरफ्तारी नहीं की गई है, हालांकि समाज ने आरोप लगाने के दौरान यह नहीं बताया कि उनके अनुसार इस घटना को किसने अंजाम दिया है।
9 जून, रविवार को उपमुख्यमंत्री एवं गृहमंत्री विजय शर्मा ने घटना कि न्यायिक जांच कराने के निर्देश दिए। कुल मिलाकर देखें तो समाज के द्वारा की जा रही जांच की मांग को भी सरकार ने मान लिया था, बावजूद इसके 10 जून की रैली के लिए प्रशासन से अनुमति मांगी गई, जिसमें कहा गया कि यह प्रदर्शन पूरी तरह से शांतिपूर्ण तरीके से होगा।
लेकिन सोमवार को बलौदाबाजार के दशहरा मैदान में चल रहा यह आंदोलन दोपहर के बाद उग्र हो गया, जिसके बाद हजारों की भीड़ ने कलेक्टर परिसर में तोड़फोड़ और आगजनी शुरू कर दी।
इस घटना के पीछे की संभावनाओं एवं षड्यंत्रों को भी समझना आवश्यक है। पुलिस ने 15 मई की घटना के ठीक 4 दिनों के बाद ही सबसे पहले आरोपियों की गिरफ्तारी कर दी थी, लेकिन समाज के कुछ लोगों ने इसे अपर्याप्त माना और गिरफ्तार आरोपियों को असली आरोपी मानने से ही इंकार कर दिया।
इस घटना को पर्दे के पीछे से हवा देने का काम किया 'भीम आर्मी' जैसे संगठनों ने, जिसके पदाधिकारी खुलेआम सोशल मीडिया में आग उगलते रहे। 9 जून को जब गृहमंत्री विजय शर्मा ने घटना की न्यायिक जांच के लिए भी निर्देश दे दिए, तब भी सतनामी समाज का गुस्सा शांत नहीं हुआ। आखिर क्या कारण है कि 'न्यायिक जांच' के आदेश के बाद भी प्रदर्शन करना जरूरी हुआ ?
वहीं 10 जून के आंदोलन के लिए जो पोस्टर 'भीम आर्मी' के पदाधिकारियों ने प्रसारित किया, उसमें 'जैतखाम की घटना' को नया मोड़ देकर 'समाज के साथ अन्याय और अत्याचार' का एंगल दिया गया, ताकि भावनात्मक रूप से समाज के लोगों को भड़काया जा सके।
इस दौरान भीम आर्मी का सारंगढ़-बिलाईगढ़ जिला प्रभारी 'मनिंदर सिंह आज़ाद' एवं इसी क्षेत्र के अभिषेक सिंह आज़ाद जैसे सोशल मीडिया हैंडल इस आंदोलन में काफी उग्रता से सामने आए हैं। इस दौरान ऐसे हैंडल्स ने धमकी भरे लहजे में लिखा है कि 'यह आंदोलन केवल झांकी है, आगे सतनामी समाज के स्वाभिमान के साथ छेड़खानी हुई तो अंजाम और भयावह होगा।'
वहीं इस प्रदर्शन के दौरान कांग्रेस नेता देवेंद्र यादव और बिलाईगढ़ की विधायक कविता प्राण लहरे की गतिविधियां भी संदेहास्पद रहीं हैं। ऐसा माना जाता है कि कविता प्राण लहरे ईसाई हैं। कुछ समय पहले इन्होंने जालंधर के एक ईसाई पादरी की सराहना करते हुए कहा था कि उन्हीं के वजह से वो विधायक बनी हैं। वहीं देवेंद्र यादव ने भी इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।
कांग्रेस नीत इंडी गठबंधन से जुड़े तमाम सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर समूह ने भी इस घटना को सोशल मीडिया में भड़काने का काम किया। हंसराज मीणा और ट्राइबल आर्मी जैसे कांग्रेस समर्थक हैंडल ने #ChhattisgarhBurning का हैशटैग ट्रेंड कराने का प्रयास किया, जिसमें कहा जा रहा था कि 'मणिपुर के बाद छत्तीसगढ़ जल रहा है।' यह कुछ वैसा ही था, जैसा #ManipurBurning ट्रेंड कराकर दिखाने का प्रयास किया गया था।
वहीं इंडी गठबंधन के लिए सोशल मीडिया में प्रोपेगेंडा फैलाने वाले विशाल ज्योतिदेव ने लिखा कि 'कुछ दिन पूर्व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के पति और विख्यात अर्थशास्त्री परकला प्रभाकर जी ने कहा था कि अगर भाजपा जीतती है तो मणिपुर जैसे हालात देश के हर राज्य में होंगे। कल नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार शपथ ली है और आज छत्तीसगढ़ जल उठा है।'
इसके अलावा सोशल मीडिया में 'मणिपुर और छत्तीसगढ़' की तुलना करते हुए ऐसे कई पोस्ट देखने को मिले जो छत्तीसगढ़ की स्थिति को मणिपुर की तरह दिखाने का प्रयास कर रहे थे।
वहीं एक एंगल यह भी है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा नीत एनडीए ने तीसरी बार लगातार सरकार बनाई है, जिसके चलते कम्युनिस्ट-कांग्रेस और देशविरोधी लॉबी एक बार फिर सत्ता से अगले 5 वर्षों के लिए बाहर रहने वाला है।
यही कारण है कि बार-बार ऐसा नैरेटिव पेश किया जा रहा है कि 'भाजपा बहुमत से दूर है, तो उन्हें सरकार बनाने का अधिकार नहीं है। यह सरकार असंवैधानिक है।' इसी नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए समाज के अलग-अलग वर्गों के द्वारा असंतोष एवं आतंकी घटनाएं कराकर यह संदेश दिया जा रहा है कि वर्तमान सरकार सक्षम नहीं है।
सबसे पहले किसान आंदोलन से जुड़े मामले को उठाया गया, जिसके तहत एक सीआईएसएफ की महिला जवान ने भाजपा सांसद 'कंगना राणावत' पर हमला किया और उन्हें एयरपोर्ट में सुरक्षा के दौरान थप्पड़ मार दिया। इस घटना के बाद एक बार फिर किसान आंदोलन और मोदी सरकार से असंतुष्ट वर्ग की चर्चाएं शुरू हो गई।
इसके बाद शपथग्रहण के ही दिन अर्थात 9 जून, रविवार को जम्मू कश्मीर में वैष्णोदेवी के तीर्थयात्रियों से भरी बस में इस्लामिक आतंकियों ने हमला किया जिसमें 10 लोग मारे गए। यह घटना पूरे षड्यंत्र के साथ 9 जून को की गई थी, जिस दिन प्रधानमंत्री समेत नये मंत्रिमंडल का शपथग्रहण होना था। वहीं शपथ ग्रहण के ठीक एक दिन बाद 10 जून को ही छत्तीसगढ़ में एक मुद्दा उठाकर 'अनुसूचित जाति' समाज को मोबिलाइज करने का काम किया गया।
चूंकि छत्तीसगढ़ में हुए इस प्रदर्शन में भीम आर्मी, भीम क्रांतिवीर छत्तीसगढ़, भीम रेजिमेंट छत्तीसगढ़ भीम आर्मी भारत एकता मिशन जैसे संगठन सक्रिय रूप से शामिल हैं, तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस घटना के पीछे भी वामपंथी शक्तियों का हाथ हो।
गृहमंत्री द्वारा न्यायिक जांच का निर्देश देने के बाद भी जिस तरह से 10 जून को आंदोलन कर हिंसा की गई एवं उत्पात मचाया गया, उससे यह संकेत मिलते हैं कि इसके पीछे एक बड़ा षड्यंत्र काम कर रहा है, जिसने ना सिर्फ आंदोलन को हवा दी, बल्कि युवाओं को दिग्भ्रमित कर उन्हें हिंसा के लिए उकसाने का काम किया।
कुल मिलाकर देखा जाए तो इस पूरी घटना को केवल 'बलौदाबाजार' में हुई घटना के रूप ना देखकर, राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय नेक्सस के 'लैब टेस्ट' की तरह देखना चाहिए, जिसके माध्यम से देश के अलग-अलग समूहों को 'आइडेंटिटी पॉलिटिक्स' के माध्यम से भड़काया जा रहा है, ताकि समाज में भेद पैदा कर वोट बैंक की राजनीति की जा सके।
यह भी संभव है कि जब छत्तीसगढ़ की सरकार उपद्रवियों पर कोई कड़ा एक्शन ले, तब भीम आर्मी दोबारा प्रदर्शन करने लगे या इसके मुखिया चंद्रशेखर आज़ाद भी बलौदाबाजार पहुंच कर मामले को और बड़ा कर दे।