संसद में विपक्ष का रवैया: एक चुनौती या संविधानिक अपमान?

11 Jul 2024 13:32:08

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भारत एक लोकतांत्रिक मूल्यों पर स्थापित देश है, जहां इसकी विविधताओं को एकता का आकार इसका संविधान देता है। संविधान के मानकों पर आधारित चुनाव प्रक्रिया ने भारतीय लोकतंत्र की महत्वपूर्णता को पुनः साबित किया है।
 
भारतीय लोकतंत्र में संसद एक महत्वपूर्ण स्थान धारण करती है, जो देश की राजनीतिक प्रक्रियाओं और नीतियों को निर्धारित करती है। इसलिए, संसदीय कार्य की गरिमा और संविधानिक नियमों का पालन महत्वपूर्ण है।
 
हाल ही में, विपक्षी पार्टियों द्वारा संसद में किए गए कुछ कृत्य संसदीय गरिमा पर सवाल उठाते हैं, जिन्हें गैर संवैधानिक रवैया के रूप में देखा गया है।
 
विपक्ष का यह रवैया मुख्य रूप से शपथ ग्रहण समारोह के दौरान उनके द्वारा उठाए गए अनुचित नारे और व्यवहार के आधार पर उभरा है।
 
इन घटनाओं ने न केवल संसद की मान्यता पर प्रश्न खड़े किए हैं, बल्कि देश की राजनीतिक संगठना और संविधानिक व्यवस्था को भी खतरे में डाला है।
 
हाल ही में विपक्ष द्वारा संसद में किए गए विवादास्पद बयान और असभ्य व्यवहार इस गैर संवैधानिक रवैये का स्पष्ट उदाहरण हैं।
 
उनके द्वारा संसद में अपनाए गए बयानों और कार्यों ने न केवल उनकी स्वयं की गरिमा को ठेस पहुँचाई है, बल्कि उन्हें लोकतंत्र के मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति भी सवालजनक बना दिया है।
 
कुछ विपक्षी सदस्यों का व्यवहार अक्सर असंविधानिक और गैर-संसदीय रहा है, जिसमें अनुचित नारेबाजी, व्यवधान उत्पन्न करना और अन्य सांसदों का अनादर करना शामिल है।
 
इस प्रकार के अव्यवहारिक और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार न केवल संसदीय संरचना को कमजोर करते हैं, बल्कि जनता के विश्वास को भी ठेस पहुंचाते हैं, जो उनके द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों पर होता है।
 
इस प्रकार का व्यवहार न केवल संसदीय गरिमा को ठेस पहुंचाता है, बल्कि संविधान की मूल आत्मा के खिलाफ भी जाता है।
 
विपक्ष के कुछ सदस्यों को हाल ही में मिली सफलता ने उन्हें एक प्रकार का अति आत्मविश्वास दिया है। इसके परिणामस्वरूप, वे जनता के प्रतिनिधि होने के बावजूद उनके कल्याण की बात करने के बजाय केवल राजनीति में उलझे हुए हैं।
“यह रवैया दर्शाता है कि उनकी प्राथमिकता जनता की सेवा करने की बजाय राजनीतिक लाभ उठाने की है। इस प्रकार के अव्यवहारिक और गैरजिम्मेदाराना रवैये से न केवल संसदीय संरचना कमजोर होती है, बल्कि जनता का विश्वास भी टूटता है, जो अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से सेवा और समाधान की उम्मीद रखते हैं।”
 
जनता ने विपक्ष को महत्वपूर्ण भूमिका सौंपी है, जिससे वे सरकार की नीतियों की समीक्षा कर सकें और जनता के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठा सकें। लेकिन, विपक्ष के कुछ सदस्यों का व्यवहार इस विश्वास को धूमिल कर रहा है।
 
अति आत्मविश्वास और संसद में अनुचित व्यवहार दर्शाते हैं कि कुछ नेता जनता के कल्याण की बात करने के बजाय केवल राजनीति करने में अधिक रुचि रखते हैं।
 
यह रवैया लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और मूल्यों के प्रति अनादर को दर्शाता है। संसद का मंच जनता के मुद्दों को सुलझाने और नीतिगत बहस के लिए है, न कि व्यक्तिगत राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए।
 
संसद की गरिमा और संविधानिक नियमों का पालन करना हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की मजबूती के लिए अनिवार्य है। यदि विपक्ष इस दिशा में अपनी भूमिका को सही ढंग से निभाए, तो यह न केवल संसद की कार्यक्षमता को बढ़ाएगा, बल्कि जनता का विश्वास भी मजबूत करेगा।
 
विपक्ष को यह समझना चाहिए कि उनकी भूमिका केवल विरोध करने की नहीं, बल्कि जनता के प्रतिनिधि के रूप में उनकी समस्याओं को सुलझाने की भी है।
 
विपक्ष का रवैया केवल राजनीतिक लाभ उठाने के दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि देश की समग्र प्रगति के मार्ग में भी एक बड़ी बाधा है।
 
उन्हें यह समझना होगा कि संसद में उनकी भूमिका केवल सरकार की आलोचना करने तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकार की नीतियों की सकारात्मक और रचनात्मक समीक्षा करना भी उनकी जिम्मेदारी है।
 
विपक्ष के सदस्यों द्वारा संसद में जो दृश्य उत्पन्न किए जाते हैं, वे न केवल संसदीय कार्यवाही को बाधित करते हैं, बल्कि देश के सामने मौजूद गंभीर मुद्दों से ध्यान भी भटकाते हैं।
 
यह जनता की सेवा करने के बजाय, केवल राजनीतिक नाटक और अराजकता उत्पन्न करता है। यह दृष्टिकोण न केवल संसदीय परंपराओं के खिलाफ है, बल्कि जनता के प्रति उनकी नैतिक जिम्मेदारी का भी उल्लंघन है। संसदीय व्यवहार का प्रभाव जनता के विश्वास और देश की प्रगति पर पड़ता है।
 
विपक्ष की जिम्मेदारी है कि वह न केवल सरकार को जवाबदेह बनाए, बल्कि सकारात्मक और रचनात्मक योगदान देकर लोकतंत्र को सशक्त बनाए। यही सच्चे लोकतंत्र की पहचान है, और यही हमारे संविधान की आत्मा है।
 
समाज को एकजुट करने और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने के लिए, संसदीय नेताओं को अपने कर्तव्यों का पूरा सम्मान करते हुए संविधान का पालन करना चाहिए।
 
इस संदर्भ में, संविधान के मानकों के पालन पर सख्ती से अमल करना हमारे लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक है। विपक्ष के प्रति संविधानिक संबंध और नैतिक जिम्मेदारी के पालन की मांग करना अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि भारतीय लोकतंत्र की गरिमा और शक्ति बनाए रखी जा सके।
 
लेख
 

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दीपक कुमार
स्तंभकार - Writers For The Nation
समाजसेवी एवं लेखक
पटना, बिहार
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