1989 में चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने हजारों मासूम बेगुनाहों को तियानमेन चौक में मौत के घाट उतारा था। लोकतंत्र की मांग कर रहे युवाओं और बीजिंग की जनता का तत्कालीन वामपंथी सरकार ने नरसंहार किया था। इस घटना की पूरी दुनिया में आलोचना हुई थी। वैश्विक मीडिया समेत दुनिया के तमाम बड़े नेताओं ने इस घटना की निंदा की थी।
इस नरसंहार के ठीक 10 साल बाद चीन ने फिर से एक अमानवीय कृत्य किया था। नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, नागरिक अधिकार और मानवाधिकार को चीन की कम्युनिस्ट सरकार द्वारा पूरी तरह कुचल दिया गया था।
चीन में जनता के बीच अत्यधिक लोकप्रिय आध्यात्मिक संस्था फालुन गोंग (फालुन दफा) को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार द्वारा 20 जुलाई, 1999 को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रतिबंधित करने के बाद इस संस्था पर एक "शैतानी संस्था" या "शैतानी धर्म" होने का आरोप लगाया गया।
एक ऐसी आध्यात्मिक संस्था जो पूरे चीन में सुप्रसिद्ध हो चुकी थी, अपने अध्यात्म की वजह से जिसने चीन की जनता में एक अटूट विश्वास बना लिया था, जो एक धर्म का रूप ले चुका था, उसे चीन की वामपंथी सरकार में खतरा मानते हुए पूरी तरह खत्म करने का फैसला किया।
आज इस नरसंहार के ढाई दशक बाद भी जुलाई माह में फिर से पूरी दुनिया में इस धर्म के अनुयाई इकट्ठा होकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किए गए जुल्मों को बता रहें हैं। दुनिया भर में चीन सरकार के खिलाफ तरह तरह के प्रदर्शन किए जा रहे हैं। भारत में भी फालुन गोंग से जुड़े लोग चीन के खिलाफ लगातार प्रदर्शन करते रहते हैं।
आखिर क्या है फालुन गोंग ?
फालुन गोंग (जिसे फालुन दफा भी कहा जाता है) 80 के दशक के अंतिम वर्षों में चीन की प्राचीन आध्यात्मिक परंपरा "Qigong" से प्रेरणा लेकर समाज में उत्पन्न हुआ था। "Qigong" सामान्य व्यायाम, मेडिटेशन और श्वास को रेगुलेट करने वाले प्राणायाम के लिए एक शब्द में कहे जाने वाला चीन का प्राचीन आध्यात्मिक शब्द है।
अध्यात्म, मेडिटेशन और व्यायाम के तमाम पहलुओं को अपनाने के बाद जीवन में बदलाव और सकारात्मकता आने की वजह से चीन की जनता में इसका काफी ज्यादा प्रभाव बढ़ता गया। पूरे देश के हजारों लाखों शहरी और ग्रामीण बुजुर्ग इसकी तरफ अधिक आकर्षित हुए।
फालुन गोंग ने काफी कम समय में ही पूरे चीन में अत्यधिक लोकप्रियता हासिल कर ली थी। इसमें नैतिक और आध्यात्मिक शिक्षा को साथ-साथ शामिल कर लोगों को प्राचीन चीन और बुद्ध धर्म से जुड़े हुए प्रसंगों को जनता तक पहुंचाया गया।
चीन में ली होंगज़ी नामक एक आध्यत्मिक गुरु थे जिन्होंने ही मई 1992 में फालुन गोंग की संगठनात्मक रूप से शुरुआत की। उन्होंने ही इस कथित धर्म की नैतिक शिक्षा और आध्यात्मिक शिक्षाओं का संदेश देने वाली किताब की रचना भी की।
ली होंगज़ी कौन थे ?
ली होंगज़ी ने इस कथित धर्म की स्थापना की। ली के अनुसार जब वह 8 वर्ष के थे तो उन्हें बौद्ध और ताओ धर्म के अति विशेष गुरुओं के सानिध्य में रहकर अध्ययन करने का मौका मिला। इसके बाद ही उन्होंने फालुन गोंग की स्थापना की।
उनके अनुसार इस धर्म में दी जा रही सभी शिक्षाएं चीन की प्राचीन विरासत है। यह सभी शिक्षाएं सदियों पुरानी परंपरा का हिस्सा रही है।
फालुन गोंग धर्म में कोई प्रशासक या अधिकारी नहीं है। सदस्यता लेने की कोई आधिकारिक या कोई महत्वपूर्ण व्यवस्था नहीं है। इस धर्म के अनुयायियों का कोई पूजन स्थल भी नहीं है। यह धर्म पूरी तरह अध्यात्म और नैतिक शिक्षा के साथ-साथ ली होंगज़ी के नेतृत्व पर टिका हुआ था।
कैसे होते हैं फालुन गोंग के अनुयायी ?
इस धर्म के अनुयाई मुख्यतः अध्यात्म कि शिक्षा से जुड़े होते हैं। नैतिक शिक्षा इनके जीवन में अहम रोल अदा करती है। अनुयायियों को बंधन में नहीं रखा जाता। उन्हें किसी भी तरह के काम करने, अपनी पसंद की नौकरी करने, इस धर्म के बाहर के लोगों से दोस्ती करने और धर्म के बाहर के लोगों से शादी करने में भी कोई रोक-टोक नहीं है।
समलैंगिकों को भी इस धर्म का पालन करने की अनुमति दी गई है। नैतिक शिक्षा के रूप में इस धर्म के उपदेशों में शराब पीना, धूम्रपान करना और अपनी शादी के बाहर यौन संबंध बनाना निषेध किया गया है।
चीन को फालुन गोंग से डर क्यों लगा ?
यह बात सोचने वाली है कि जो धर्म सभी को आजादी दे रहा है, किसी तरह का रोक-टोक नहीं है, कोई बंदिश नहीं है, अध्यात्म और मेडिटेशन धर्म का केंद्र है, उसके अनुयायियों का चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने नरसंहार क्यों किया?
दरअसल इस धर्म की शुरुआत होने के बाद से लगातार इससे जुड़ने वाले लोगों की संख्या में इजाफा हो रहा था। इसकी प्रसिद्धि 90 के दशक में इतनी अधिक हो चुकी थी कि एक समय में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 6 करोड़ सदस्य थे और फालुन गोंग धर्म के सात आठ करोड़ से अधिक सदस्य थे।
धर्म की बढ़ती लोकप्रियता से घबराकर चीन की स्टेट मीडिया ने एक लेख प्रकाशित किया जिसमें फालुन गोंग की जमकर आलोचना की गई। लेख में फालुन गोंग को सामंती अंधविश्वास की तरह खतरा बताया गया।
इस लेख के प्रकाशित होने के बाद धर्म के अनुयायियों की आलोचना होने लगी। इससे आक्रोशित होकर अनुयायियों ने शिकायत करने के लिए विरोध प्रदर्शन किए और समाचार पत्रों को अपनी शिकायतें लिखनी शुरू की।
इसी दौरान बीजिंग के एक टीवी न्यूज़ चैनल के टॉक शो में उपस्थित मेहमान ने फालुन गोंग धर्म को नीचा दिखाते हुए आलोचनात्मक हमला किया तो फालुन गोंग धर्म के अनुयायियों ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया जिसके बाद टीवी मीडिया से जिम्मेदार प्रोड्यूसर को नौकरी से बाहर निकालने में यह समूह सफल रहा।
इसी दौरान धर्म के अनुयायियों ने तियांजिन के एक अन्य समाचार पत्र के बहार 1999 में प्रदर्शन किया तो कम्युनिस्ट सरकार द्वारा 300 पुलिसकर्मियों को प्रदर्शन को खत्म करने के लिए भेजा गया और पुलिसकर्मियों ने 45 लोगों को गिरफ्तार किया।
इसके बाद 25 अप्रैल को फालुन गोंग धर्म के अनुयायियों के उत्पीड़न के खिलाफ 10,000 लोगों ने बीजिंग के एक सरकारी परिसर के पास विरोध प्रदर्शन किया। तियानमेन चौक नरसंहार की घटना के बाद चीन में यह पहला मौका था जब इतनी बड़ी संख्या में सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को अंजाम दिया गया।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने कैसे किया नरसंहार ?
नागरिक स्वतंत्रता और धार्मिक स्वतंत्रता की मांग कर रहे लोगों में कम्युनिस्ट पार्टी को खतरा नजर आने लगा। तत्कालीन कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव जियांग जेमिन ने इस पूरे मामले को जड़ से खत्म करने की बात कही।
20 जुलाई 1999 को आधिकारिक तौर पर फालुन गोंग धर्म और इस के अनुयायियों को जड़ से खत्म करने की प्रक्रिया को शुरू किया गया। सुरक्षाबलों ने सभी तरफ से घेराबंदी शुरू की। फालुन गोंग पर अंधविश्वास फैलाने, लोगों को गुमराह करने, लोगों को उकसाने और सामाजिक स्थिरता को खतरे में डालने जैसे गंभीर आरोप लगाकर अवैध घोषित कर दिया गया।
हजारों लाखों अनुयायियों को गिरफ्तार किया गया। उनके घरों में तोड़फोड़ की गई। इस पूरे मामले पर शोध करने वाले इथन गुटमैन के अनुसार "री-एजुकेशन" के नाम पर यातना देने के लिए बने लेबर कैंप में 15% लोग फालुन गोंग धर्म से जुड़े हुए हैं।
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नरसंहार के शुरुआती चरणों में तात्कालिक रूप से 2000 से अधिक बेगुनाहों को चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने मार डाला था।
दुनियाभर के तमाम मानवाधिकार संगठनों के अनुसार चीन की कम्युनिस्ट पार्टी इन बंदीगृहों में कैदियों से जबरन श्रम करवाती है, उन्हें यातना देती है और उनके अंगों को अवैध रूप से निकाल कर बेचती भी है।
वर्तमान में क्या स्थिति है ?
फालुन गोंग धर्म पर लगाए गए प्रतिबंध के बाद से ही चीन लगातार इसके अनुयायियों को प्रताड़ित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ फालुन गोंग धर्म के अनुयाई दुनिया भर में मुहिम छेड़े हुए हैं। प्रत्येक वर्ष 20 जुलाई को सभी अनुयाई दुनिया भर में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को अंजाम देते हैं।
दुनिया भर में गोंग धर्म के पहले लाखों अनुयायियों को लगता है कि किसी दिन चीन में वामपंथी तानाशाही सत्ता खत्म होगी और वहां लोकतांत्रिक सत्ता की स्थापना होगी जिसमें मानव मूल्य नागरिक स्वतंत्रता धार्मिक स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों को जगह दी जाएगी। और इस परिवर्तन में फालुन गोंग धर्म एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।