बांग्लादेश की अशांति से हम क्या सीख लें ?

18 Aug 2024 13:04:41

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आज जो बांग्लादेश में हो रहा है, कल किसी भी देश में हो सकता है। अपने इतिहास और वर्तमान में हमारे पड़ोसी देशों में हो रही लगातार घटनाओं से सीख लें और तैयार रहे भारत। बांग्लादेश में अभी जो घटित हो रहा है, उसे किसी एक कारण के आधार पर नहीं समझा जा सकता। आरक्षण के कारण यदि यह विद्रोह हुआ तो आरक्षण वापस हो चुका था, अब इतने बड़े आंदोलन का कोई कारण नहीं था, यह तो मात्र एक बहाना था, इसके पीछे जिहादी कट्टरपंथी शक्तियों, विदेशी षड्यंत्र और सेना के विश्वासघात इन तीनों का मिश्रण है।


बांग्लादेश पिछले पंद्रह वर्षों में आर्थिक रूप से आगे बढ़ रहा था, लेकिन यह बात उन लोगों को अच्छी नहीं लग रही थी जो मजहबी जाहिलियत को ही अपने मजहब का उद्देश्य मानते हैं। जिसे छात्र आंदोलन कहा जा रहा था, उसका स्वरूप जिहादी आंदोलन के रूप में प्रकट हुआ। वहाँ के प्रधानमंत्री के आवास से लेकर सरकारी सम्पत्तियों की लूटपाट ऐसे हुई जैसे माल--गनीमत की जिहादी विजेता किया करते हैं। हिन्दुओं के घरों पर आक्रमण, मंदिरों में तोड़-फोड़, हिंसा-आगजनी इन सभी का न तो शेख हसीना के तथाकथित तानाशाही से कोई लेना-देना था और न ही आरक्षण से।

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दरअसल शेख हसीना सरकार द्वारा जमात--इस्लामी पर प्रतिबंध से वे अंदर-अंदर बौखला गए थे, इधर चीन और अमेरिका दोनों ही बांग्लादेश को भारत के विरुद्ध प्रयोग करने के प्रयास में लगे थे। बांग्लादेश के मोंगला बंदरगाह के लिए चीन दबाव बना रहा था, लेकिन पिछले वर्ष चीन के दबाव को नकारते हुए शेख हसीना ने भारत के साथ समझौता कर लिया। भारत बांग्लादेश के चटगांव और सिलहट बंदरगाह का पहले से ही प्रयोग कर रहा है।

कुछ दिन पहले शेख हसीना चीन गई थी। शेख हसीना चीन से बीच यात्रा में ही खिन्न होकर वापस लौट आइ थी। चीन ने तीस्ता नदी परियोजना को लेकर बांग्लादेश को धोखा दिया था, 4 लाख करोड़ लोन देने का वादा किया, लेकिन दे रहा था केवल 900 करोड़। इसके बाद शेख हसीना ने ऐलान कर दिया कि हम तीस्ता नदी परियोजना भारत को देना चाहते हैं। शेख हसीना की भारत से निकटता चीन को रास नहीं आ रही थी, इसलिए वह उनके सरकार को अस्थिर करना चाहता था। यही हाल अमेरिका का भी था।


अमेरिका की पिछले सरकार के दौरान ही बांग्लादेश में दिलचस्पी बढ़ी है। इसकी दो बड़ी वजहें थीं। पहली यह कि बांग्लादेश की चीन से करीबी बढ़ रही थी और दूसरी तरफ़ वो बांग्लादेश को हर तरीक़े के हथियार दे रहा है। अमेरिका बांग्लादेश को अपनी 'स्पेशल पोस्ट' बनाने की फ़िराक़ में था, जहां से वो चीन और भारत पर एक साथ नज़र रख सके। इसके लिए अमेरिका ने बांग्लादेश को क्वाड में सीट भी ऑफर की थी, जिसे शेख़ हसीना से स्वीकार नहीं किया। अमेरिका बांग्लादेश के सेंट मार्टिन द्वीप पर अधिकार चाहता था, जिससे वह वहाँ अपना सैनिक अड्डा बनाकर इस क्षेत्र में अपना दबादबा बना सके, लेकिन पिछले जून में ही शेख हसीना ने उसके इस प्रस्ताव को नकार दिया था।


चीन और अमेरिका इन दोनों शक्तियों की नजर बांग्लादेश के प्रति टेढ़ी थी। उन्होंने इसके बाद मजहबी कट्टरपंथियों का प्रयोग कर छात्रों के नाम पर आंदोलन खड़ा किया। प्रधानमंत्री के अंतर्वस्त्र को हाथों में पकड़ कर उसका प्रदर्शन करने वाले यह छात्र कम और जिहादी अधिक हैं। सेना में भी भीतरघात हुआ और शेख़ हसीना की सत्ता को पलट दिया गया। बांग्लादेश का यह घटनाक्रम मजहबी कट्टरपंथ, सेना के विश्वासघात और चीन एवं अमेरिका के षड्यंत्र का सह परिणाम है।


57 इस्लामिक देशों में से अधिकतर आज नर्क बन चुके हैं और इन्हें नर्क बनाने में अमरीका, ब्रिटेन समेत सभी यूरोपीय देश शामिल हैं, इन्होंने इन सभी देशों में आतंकियों को फंडिंग कर वहां की लोकतांत्रिक सरकारों को ध्वस्त कराया और फिर गृह युद्ध कराकर नर्क बना दिया। मात्र बांग्लादेश ही ऐसा देश था जो शेख हसीना के नेतृत्व में पिछले 11 वर्षों से भारत के साथ मित्रता का लाभ उठाते हुए तेज़ी से विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा था और लोकतंत्र भी मजबूत हो रहा था, लेकिन ये ना तो इस्लामिक जिहादी देशों को बर्दास्त हो रहा था, ना ही अमेरिका को और आखिर वो बांग्लादेश को बर्बाद करने में कामयाब हो गए।


मूलतः यह कोई आंदोलन नहीं था, बल्कि जिहाद के बारूद पर कुछ शांतिदूत लोगों द्वारा लगाई गई आग थी। यह दुनिया के किसी भी कोने में, कहीं भी फैल सकती है, जहाँ मजहब मौजूद है। आज बांग्लादेश में उथल-पुथल मचाने वाली जितनी भी डीप स्टेट ताकत है, वह सभी डीप स्टेट शक्तियाँ भारत में भी उथल-पुथल मचाने के लिए पूरी तरह से सक्रिय थी और अभी भी हैं।

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दुख्तरान--मिल्लतआतंकवादी कृत्यों को प्रोत्साहन देने वाला इनका एक महिला संगठन है। एक अर्थ में हम इसको एक नरम आतंकवादी संगठन कह सकते हैं। जम्मू-कश्मीर की आसिया अंद्राबी इनकी मुखिया है। सिर्फ औपचारिक रुप से नहीं बल्कि भारत में कई ऐसे पत्रकार हैं, जो इस संगठन के एक तरह से अघोषित सदस्य हैं। इनमें से एक एक्सपर्ट ने लिखा है किहम लोग भारत में 20 करोड़ हैं और भारत में 20 से 30 करोड़ एसे लोग हैं जो नॉन-संघी हिन्दू हैं, और अगर हम मिल जाए तो बांग्लादेश जैसी स्थिति को यहा भी लागू कर सकते हैं।इससे आपको समझ जाना चाहिए की इनकी योजना क्या है। एसे सार्वजनिक रूप से लोगों को उकसाने और देशद्रोह की अपील करने वाले कट्टरपंथियों के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा क्यो नहीं चलाया जा सकता ?


अगर आपको ज्ञात हो तो, हिंदुओं को हिंसक बताने वाले विदेशी बीज ने एक बार कहा था कि, भारत बारूद की ढेर पर बैठा है, बस माचिस जलाने की देर हैं। 'सलमान खुर्शीद' कांग्रेस के एक नेता, जिन्होंने बांग्लादेश की इस घटना के बाद बयान देते हुए भारत को एक तरीके से धमकी दी कि, बांग्लादेश में अभी जो कुछ हो रहा है वो भारत में भी हो सकता है। अब आप इन गंभीर धमकियों के बारे में जरा सोचिए। ये हमारे लिए बहुत बड़ा संकेत माना जा सकता है कि आने वाले समय में क्या होने वाला है। इन कट्टरपंथियों और देश के ग़द्दारों के रहते भारत के लिए आने वाले समय में समस्या और अधिक बढ़ने वाली है। हमारे यहाँ सरकार लोकतांत्रिक है, वह बदलती रहेगी, बदलते शासकों की अपनी कूटनीति होती है, अपना सिस्टम होता है, उसका काम वह अपने लाभ व नुकसान को देखकर करेंगे।


भारत में लोकतंत्र तब तक जिंदा है, जब तक भारत में हिंदू बहुसंख्यक है, जिस दिन भारत में हिंदू कम हुए उस दिन भारत से लोकतंत्र खत्म हो जाएगा, भारत का संविधान खत्म हो जाएगा। यह हमारी और आपके आंखों के सामने की कड़वी सच्चाई है कि जिस-जिस देश में मुस्लिम ज्यादा हुए उस देश में संविधान खत्म हो गए, उस देश में लोकतंत्र खत्म हो गया और उस देश में अल्पसंख्यक समूहों को खत्म कर दिया गया, उनके धार्मिक अधिकार खत्म कर दिए गए। शांतिदूतों के कारण आज विश्व में फ्रांस, आयरलैंड, लंदन, इस्राइल जैसे कई देशों में अशांति फैली हुई है।


इस्लामिक कट्टरपंथियों की थोड़ी सी संख्या क्या कर सकती है, यह आपको बांग्लादेश के साथ कई देशों में देखने को मिल रहा है। भारत में भी ऐसा करने का प्रयास बार-बार किया जा रहा है। किसान आंदोलन, दिल्ली का हिंदु विरोधी दंगा, शाहीन बाग धरना, मणिपुर में फैली अशांति, ये सब विदेशी ताकतों के इशारों, पैसों और भारत में बैठे गद्दारों के सहयोग से हुआ और ये अब भी चुप नही बैठे हैं, ये केवल मौका ढूंढ रहे हैं।

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आपको अगर ज्ञात हो तो कुछ साल पहले किसान आंदोलन के समय स्वीडन में बैठी ग्रेटा थनबर्ग ने गलती से पूरा टूलकिट ट्वीट कर दिया था, जिसमें स्टेप बाय स्टेप सब कुछ लिखा था कि भारत की मौजूदा सरकार को गिराने के लिए हमें कब क्या-क्या करना है।


इसके अलावा हमने यह भी देखा कि कैसे भारत में कोई भी आंदोलन होता है तो अचानक मियां खलीफा, स्वरा भास्कर से लेकर रिहाना जैसे इनके मोहरे मैदान में कूद पड़ते हैं। यह पूरा एक इकोसिस्टम है जो मिलकर काम करता है, और इसी इकोसिस्टम का निशाना बांग्लादेश के बाद अब भारत है।

लेख

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हिरेनकुमार वी॰ गजेरा

यंगइंकर
सूरत, गुजरात


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