बस्तर में कम्युनिस्ट आतंकियों ने की एक और जनजाति ग्रामीण की हत्या

25 Aug 2024 13:53:28


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कम्युनिस्ट आतंकवाद अर्थात माओवाद भारत में अब अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है
, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में अभी भी इन माओवादी आतंकियों का खूनी खेल जारी है।


माओवादियों ने अपने इसी खूनी खेल को अंजाम देते हुए शनिवार (24 अगस्त, 2024) को बस्तर क्षेत्र के बीजापुर जिले में एक जनजातीय ग्रामीण की हत्या कर दी है। माओवादियों ने इस घटना को जिले के गंगालूर थाना क्षेत्र के अंतर्गत पूसनार गांव के समीप अंजाम दिया है।


अभी तक सामने आई जानकारी के अनुसार माओवादियों ने जिस जनजाति ग्रामीण की हत्या की है, उसकी पहचान पूसनार गांव के लांचा पुनेम के रूप में हुई है। कम्युनिस्ट आतंकियों द्वारा किए गए इस कृत्य के बाद से ही पूरे क्षेत्र में भय का माहौल बन चुका है, स्थानीय ग्रामीण अपने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं।


माओवादी आतंकियों ने जनजाति ग्रामीण की हत्या के बाद उसके शव के पास एक पर्चा भी फेंका है। इस पर्चे में माओवादियों ने लांचा पुनेम की हत्या की घटना को स्वीकार किया है, जिसमें उन्होंने कहा है कि पुलिस मुखबिरी के शक में लांचा पुनेम की हत्या की गई है।

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माओवादी आतंकी संगठन सीपीआई-माओवादी की गंगालूर एरिया कमेटी ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली है। हालांकि इस मामले को लेकर पुलिस का आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन क्षेत्र में भय की स्थिति बनी हुई है।


वहीं यह जानकारी भी सामने आई है कि माओवादियों ने जिस कथित पुलिस मुखबिरी के शक में इस हत्या को अंजाम दिया है, उसके लिए पहले भी लांचा पुनेम को धमकी दी जा चुकी थी।


माओवादियों ने अपनी फर्जी जन अदालत लगाकर 4 बार जनजाति ग्रामीण लांचा पुनेम को धमकी थी। इसके बाद अंततः कम्युनिस्ट आतंकियों ने धारदार हथियारों से हमला कर लांचा की हत्या कर दी।


यह पहले भी देखा गया है कि माओवादी आतंकियों ने किसी भी स्थानीय जनजातीय ग्रामीण की हत्या के बाद उसके ऊपर पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाकर हत्या की घटना को सही ठहराने की कोशिश की है।


हाल ही में माओवादियों ने सुकमा के पूवर्ती गांव में एक ही परिवार के दो किशोरों की हत्या कर दी थी, जिसमें से एक बालक तो नाबालिग था। ऐसा कहा गया कि माओवादियों ने उनकी हत्या मुखबिरी के शक में की थी, लेकिन यह सोचने वाली बात है कि क्या एक स्कूल जाने वाले 16 वर्षीय बालक से माओवादी इतना डर गए कि उसकी हत्या कर दी गई।

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वहीं माओवादियों ने ऐसे ही मुखबिरी के शक में कोंडागांव में भी एक जनजाति व्यक्ति की हत्या की थी, जिसका नाम दिनेश मंडावी था। दिनेश एक शादी के समारोह में शामिल होकर अपने गृह ग्राम, जो धनोरा थाना क्षेत्र अंतर्गत तिमड़ी गांव, में लौट रहा था। इसी दौरान माओवादियों ने उस पर हमला कर दिया था, जिसके बाद अस्पताल ले जाते हुए उसकी मौत हो गई थी।


माओवादी आतंकियों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में बार-बार ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जाता है, जिससे इन क्षेत्रों में उनका प्रभाव और भय बना रहे। इसी भय के कारण स्थानीय जनजातीय ग्रामीण ना सिर्फ माओवादियों की बातों को मानने के लिए मजबूर हो जाते हैं, बल्कि उनके द्वारा शोषित भी होते हैं।



वहीं माओवादी आतंकी जो अपनी कम्युनिस्ट विचारधारा के माध्यम से यह कहते हैं कि वो जल-जंगल-जमीन और जनजातियों-वनवासियों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो उनके इन दावों की असलियत भी सामने आ जाती है।


माओवादी जिस तरह से जनजाति ग्रामीण परिवारों एवं ग्रामीणों को निशाना बनाते हैं, उससे यह तो स्पष्ट है कि वो जनजातियों का भला करने के लिए नहीं आये हैं। माओवादी केवल और केवल जनजातियों के नाम पर हिंसा, आतंक और लूट-पाट कर रहे हैं, जिसका अंत अब निकट ही है।


लेकिन इन सब के बीच जो इन कम्युनिस्ट विचार के आतंकियों को क्रांतिकारी कहते हैं, या इनके लिए मानवाधिकार की बात करते हैं, उनसे यह प्रश्न पूछा जाना चाहिए कि वो इन आतंकियों का विरोध कब करेंगे और जनजातियों के लिए कब आवाज़ उठाएंगे ?


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