माओवादी आतंक से मुक्ति की मांग को लेकर दिल्ली जा रहा नक्सल पीड़ितों का दल, राष्ट्रपति और गृहमंत्री से करेगा मुलाकात

18 Sep 2024 12:08:58
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माओवादी हिंसा की पीड़ा को साझा करने तथा बस्तर को माओवाद से मुक्त कराने की मांग लेकर नक्सल हिंसा से पीड़ित 50 से अधिक बस्तरवासी आज बुधवार (18 सितंबर, 2024) दिल्ली रवाना होने वाले हैं। बस्तर शांति समिति के बैनर तले दिल्ली जा रहे नक्सल पीड़ित बस्तरवासी राष्ट्रपति एवं केंद्रीय गृहमंत्री से मुलाक़ात करेंगे।
 
बस्तर शांति समिति ने बताया कि बस्तर से दिल्ली जा रहा यह समूह जंतर-मंतर में प्रदर्शन कर देश को अपनी पीड़ा से अवगत कराएगा। उन्होंने बताया कि नक्सल पीड़ितों के समूह द्वारा देश की राजधानी में एक प्रेस वार्ता भी की जाएगी, जिसमें राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया के सामने वे अपनी व्यथा सुनाएंगे।
 
नक्सल पीड़ितों ने दिल्ली यूनिवर्सिटी और जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में भी जाने की योजना बनाई है। पीड़ितों का कहना है कि वे इन विश्वविद्यालयों में जाकर बताना चाहते हैं कि कैसे माओवादियों ने उनके जीवन को नर्क बना दिया है।
 
'केंजा नक्सली - मनवा माटा' (सुनो नक्सली - हमारी बात) कहते हुए इन पीड़ितों ने अपनी आवाज़ दिल्ली में उठाने का निर्णय लिया और यह मांग की है कि बस्तर को माओवाद-नक्सलवाद से मुक्त किया जाए।
 
बस्तर शांति समिति का कहना है कि बीते 4 दशकों से बस्तर माओवाद का जो दंश झेल रहा है, वह अब एक कैंसर बन चुका है, जिसका जल्द से जल्द इलाज आवश्यक है। इस माओवाद-नक्सलवाद ने न केवल बस्तर की पीढ़ियों को बर्बाद किया, बल्कि बस्तर के विकास की गति को भी लगभग रोक दिया है। माओवादी आतंक के कारण बस्तर के युवाओं का भूत-भविष्य-वर्तमान आतंक के साये में रहा, वहीं बस्तर की पहचान भी लाल आतंक और रक्तरंजित भूमि के रूप में होने लगी।
 
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समिति ने बताया कि बीते ढाई दशकों में इस भूमि में माओवादियों ने 8000 से अधिक ग्रामीणों की हत्या की है, और हजारों ऐसे लोग हैं जो माओवादियों द्वारा बिछाए गए बारूद के ढेर की चपेट में आने के कारण दिव्यांग हो गए। बस्तर के हजारों ऐसे जनजातीय ग्रामीण हैं जो नक्सल आतंक के कारण अपने शरीर का कोई न कोई अंग गंवा चुके हैं। किसी ने अपना पैर खोया है, तो किसी ने हाथ; किसी की आंखों की रोशनी चली गई है, तो किसी के कानों में आवाज़ आनी बंद हो गई है। और यह स्थिति बस्तर के केवल युवाओं या पुरुषों की ही नहीं है, बल्कि वहां की महिलाओं, बुजुर्गों, और नाबालिग बच्चों की भी है।
 
बस्तर शांति समिति का कहना है कि इन्हीं सब कारणों को लेकर बस्तरवासी न्याय की गुहार लगाने दिल्ली जा रहे हैं और अपनी आवाज़ उठा रहे हैं। बस्तरवासी चाहते हैं कि देश उनके दुःख, दर्द और पीड़ा को भी समझे, उसका भी समाधान निकाले और बस्तरवासियों को बारूद के ढेर की नहीं, बल्कि आज़ादी की सांस लेने दें।
 
बस्तर शांति समिति के बैनर तले दिल्ली जा रहे इन पीड़ितों की स्पष्ट मांग है कि बस्तर को अब माओवादी आतंक से मुक्त किया जाए। उनकी मांग है कि जैसे देश के अन्य हिस्सों में सभी नागरिक आज़ादी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वैसे उन्हें भी बस्तर में स्वतंत्रता से जीवन जीने का अवसर मिले। बस्तर में माओतंत्र पूरी तरह से खत्म हो और भारत के संविधान के अनुसार बस्तर के हर गांव में लोकतंत्र का दीपक जले।
 
गौरतलब है कि नक्सल पीड़ित आज दिल्ली जाने से पहले छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा से भी मुलाक़ात करेंगे।
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