एमनेस्टी इंटरनेशनल: भारत विरोधी अभियान की वैश्विक सरगना

22 Sep 2024 07:22:52
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वैसे यह युद्ध कोई नया नहीं है, सत्य और असत्य का संघर्ष सदियों से चला आ रहा है। हर पक्ष के अपने-अपने तर्क होते हैं, किंतु भारतीय वांग्मय, अपने संपूर्ण अध्ययन के साथ, इसी निष्कर्ष पर पहुँचता है कि विजय सत्य की ही होती है।
 
यह सत्य संघर्ष के दौरान भले ही परेशानी में दिखे, परंतु अंततः जीत उसी की होती है। भारत के वर्तमान संदर्भ में भी एक युद्ध चल रहा है, जिसे हम 'नैरेटिव वॉर' कहते हैं।
 
इस युद्ध में भारत-विरोधी अनेक मुखौटे हैं—ये मुखौटे देश के अंदर भी हैं और बाहर भी। ये अनेक रूपों में काम कर रहे हैं।
 
गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) में भी कई संस्थाएं हैं, जो वैश्विक स्तर पर भारत को हर तरह से कमजोर करने में जुटी हुई हैं। इन्हीं में से एक संस्था 'एमनेस्टी इंटरनेशनल' है।
 
कहने को यह मानवाधिकार संरक्षण के लिए कार्य करती है, किंतु इसका मुख्य उद्देश्य भारत की छवि को खराब करना है।
 
भारत विरोधी नैरेटिव गढ़ने का ताजा उदाहरण
 
अब ताजा उदाहरण ही ले लें। जम्मू और कश्मीर में कुल 90 विधानसभा सीटें हैं। वहाँ तीन चरणों में विधानसभा चुनाव हो रहा है।
 
पहले चरण में 24 सीटों पर 18 सितंबर को चुनाव हुए। जैसे ही घड़ी में रात के बारह बजे 17 सितंबर समाप्त होकर 18 सितंबर शुरू होती है, एमनेस्टी इंटरनेशनल भारत के विरोध में एक रिपोर्ट प्रकाशित करती है।
 
यह रिपोर्ट अंग्रेजी, हिंदी और उर्दू में थी, जिसका शीर्षक था: "भारत: सरकार को जम्मू-कश्मीर में असहमति का दमन रोकना चाहिए"। सवाल यह उठता है कि उसने इस दिन को ही क्यों चुना? उसे पता था कि जम्मू-कश्मीर जैसे वर्षों से संवेदनशील राज्य में चुनाव हो रहे हैं।
 
दूसरे चरण में 26 सीटों पर 25 सितंबर को और तीसरे चरण में 40 सीटों पर 1 अक्टूबर को वोटिंग होनी है। यह स्पष्ट रूप से भारत विरोधी नैरेटिव गढ़ने का प्रयास है।
 
जम्मू-कश्मीर में हो रहे विकास को नकारती है एमनेस्टी इंटरनेशनल
 
एमनेस्टी इंटरनेशनल ने एक सिरे से यह बात नकार दी है कि पिछले वर्षों में केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद जम्मू-कश्मीर में भारी विकास हुआ है। यह विकास हर क्षेत्र में दिखता है। आतंकवाद के सफाए में मोदी सरकार की नीतियाँ प्रभावी सिद्ध हुई हैं।
 
पिछले कुछ वर्षों में कई नए उद्योगपति, खिलाड़ी और अन्य प्रतिभाशाली लोगों का इस राज्य से उभरना संभव हुआ, क्योंकि शांति और विकास के द्वार जो वर्षों से अवरुद्ध थे, अब खुल चुके हैं।
 
किंतु एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या कह रही है? उनका कहना है कि केंद्र सरकार यहां के लोगों को प्रताड़ित कर रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियां यहाँ की जनता की स्वतंत्रता को दबाने का काम कर रही हैं।
 
यह संस्था अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुलेआम यह आरोप लगाती है कि, "जब से भारत ने राज्य की विशेष स्वायत्तता रद्द की है, तब से सरकार द्वारा मानवाधिकारों का दमन बढ़ता जा रहा है।
 
इसके परिणामस्वरूप लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया गया, पासपोर्ट निरस्त किए गए, और अपारदर्शी 'नो फ़्लाइंग लिस्ट' बनाई गई।" जबकि यह कितना बड़ा झूठ है, यह हाल ही में सामने आए पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री के बयान से समझा जा सकता है।
 
वर्ष 2014 में केंद्र की भाजपा सरकार से पहले, सुशील कुमार शिंदे भारत के गृह मंत्री थे। शिंदे ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि जब वह गृह मंत्री बने थे, तब जम्मू-कश्मीर के हालात बहुत खराब थे, लेकिन आज की स्थिति इससे बिल्कुल अलग है।
 
धारा 370 हटने से जम्मू-कश्मीर में बदलाव
 
अगर सच कहें तो अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर ने पिछले कुछ वर्षों में बड़ा बदलाव देखा है। कश्मीर में अब पत्थरबाजी की घटनाएँ नहीं होतीं।
 
शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, निर्बाध ऑनलाइन सुविधाएं, बिजली उन्नयन, सड़क नेटवर्क, और पाइप जलापूर्ति जैसी बुनियादी सुविधाएं अब घाटी की जनता को मिल रही हैं। पहले जहाँ स्कूल अधिकतर दिन बंद रहते थे, अब वे अधिकतर दिन खुले रहते हैं।
 
पहले जिस लाल चौक पर पाकिस्तान के झंडे लहराए जाते थे, वहाँ अब तिरंगा लहराता है। यह दृश्य दिखाता है कि 5 अगस्त 2019 के बाद से कश्मीर वैसा नहीं रहा जैसा पहले था।
 
स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत श्रीनगर के घंटाघर को एफिल टॉवर जैसा रूप दिया गया है। जम्मू-कश्मीर में शांति लौटने का सबसे बड़ा फायदा पर्यटन उद्योग में दिखता है। आतंकवाद के कारण जो फिल्म इंडस्ट्री और सिनेमा संस्कृति खत्म हो गई थी, वह वापस लौट आई है।
 
डल झील देर रात तक आबाद रहती है। नाइट लाइफ वापस लौट आई है। मैदानों में देर रात तक लोग खेल का आनंद ले रहे हैं। पहली बार इस राज्य में विदेशी निवेश भी हुआ है, और हजारों करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स पर काम हो रहा है।
 
एमनेस्टी इंटरनेशनल: झूठ के नाम पर सुरक्षा का ढोंग
 
एमनेस्टी इंटरनेशनल सुरक्षा का हवाला देकर उन तथ्यों को छुपाती है, जिनका खुलासा होना चाहिए। जो नाम वह भारत विरोधी नैरेटिव गढ़ने के लिए इस्तेमाल करती है, उनके असली नाम तक वह उजागर नहीं करती। लेकिन हम उन लोगों की बात करें, जिनके नाम भी असली हैं और पहचान भी।
 
वे लोग खुलकर मीडिया के सामने बता रहे हैं कि केंद्र में मोदी सरकार के रहते हुए विकास की नई कहानी लिखी गई है। शिक्षा, किसानों, युवाओं, महिलाओं, और उद्यमियों समेत सभी वर्गों का ध्यान रखा गया है।
 
श्रीनगर में रहने वाले अशाक हुसैन का कहना है, "हमारे पास अब बेहतर सड़कें हैं, अधिक व्यवसाय खुल रहे हैं, और सामान्य स्थिति लौट आई है।"
 
श्रीनगर के डाउनटाउन निवासी बसारत के अनुसार, "यह ताज़ी हवा के झोंके जैसा है। इन सड़कों पर जो डर और तनाव कभी हावी रहता था, वह अब खत्म हो गया है।
 
लोग अब स्वतंत्र रूप से घूम रहे हैं, कारोबार बढ़ रहा है और शांति का ऐसा अहसास है, जो हमने सालों से महसूस नहीं किया था। यह वही कश्मीर है जिसकी हमें हमेशा उम्मीद थी।"
 
सी-वोटर सर्वे की पुष्टि
 
सी-वोटर ने जुलाई-अगस्त 2024 के बीच जम्मू और कश्मीर में सर्वे किया था। इसमें जनता की राय हर पहलू से जानी गई।
 
सर्वे का निष्कर्ष यह बताता है कि अब जम्मू-कश्मीर के लोग आतंकवाद के बारे में नहीं, बल्कि विकास के बारे में बात कर रहे हैं।
 
यहाँ की अर्थव्यवस्था अब ₹2.25 लाख करोड़ के आंकड़े तक पहुँच चुकी है, जो 2014-15 में मात्र ₹98,366 करोड़ थी।
 
अपराधियों में खोज रही है हिन्दू-मुस्लिम एंगल
 
एमनेस्टी इंटरनेशनल मुस्लिम बहुल श्रीनगर और हिंदू बहुल जम्मू के बीच अपराध के मामलों में अंतर दिखाने की कोशिश करती है।
 
वह यह भूल जाती है कि जहाँ अपराध ज्यादा होते हैं, वहीं अधिक मामले दर्ज होते हैं। इसमें हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या से क्या लेना-देना है?
 
अंततः, यह साफ है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल का मुख्य उद्देश्य भारत को बदनाम करना है। यह संस्था लगातार भारत विरोधी नैरेटिव गढ़ने में जुटी हुई है।
 
अब समय आ गया है कि भारत सरकार इसकी संपूर्ण गतिविधियों का संज्ञान ले और इसे देश से बाहर का रास्ता दिखाए।
 
लेख
डॉ. मयंक चतुर्वेदी
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