भारतीय संस्कृति का स्वर्णिम इतिहास, जो विश्व भर में ज्ञान प्रवाह का स्रोत रहा जिस कारण भारत राष्ट्र को विश्व- गुरु की उपाधि से सुशोभित किया गया। भारतीय संस्कृति के धार्मिक अनुष्ठानों में अनेकों प्रकार की पूजा पद्धतियां है , जिसमें से एक कुंभ स्नान है। मकर संक्रांति 2025 को प्रथम राजसी स्नान के साथ प्रयागराज में महाकुंभ का प्रारंभ होगा।
पौराणिक दृष्टिकोण
मत्स्य पुराण अनुसार अमृतत्व प्राप्ति के लिए असुर (नकारात्मक शक्ति) और देव (सकारात्मक शक्ति)के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला। जो धरती के 12 वर्षों के बराबर है। अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन का निर्णय हुआ। जिसके लिए वासुकी नाग को रस्सी बनाया गया, मंदराचल पर्वत को मथानी बनाया गया तथा समुद्र को कलश (कुंभ)बनाया गया। मंथन दौरान वासुकी नाग की गति से मंदराचल पर्वत स्थिर ना रह सका इसलिए भगवान विष्णु ने स्वयं को कूर्म (कछुआ) रुप में अवतरित कर पीठ पर मंदराचल पर्वत को स्थिर किया ताकि मंथन उचित ढंग से किया जा सके।
समुद्र मंथन द्वारा निकले 14 दिव्य रत्न इस प्रकार है -
लक्ष्मीः कौस्तुभपारिजातकसुरा, धन्वन्तरिश्चन्द्रमा, गावः कामदुघाः सुरेश्वरगजो, रम्भादिदेवांगनाः।
अश्वः सप्तमुखः सुधा हरिधनुः, शंखो विषं चाम्बुधे, रत्नानीति चतुदर्श प्रतिदिनं, कुवर्न्तु वो मंगलम्।।
भाव- लक्ष्मी, कौस्तुभ मणि, पारिजात (कल्पवृक्ष), वारुणी (सूरा), धन्वन्तरि कलश, चन्द्रमा, कामधेनु गाय, ऐरावत हाथी,रम्भा, सात मुखों वाला अश्व, विश, विष्णु का धनुष शारंग, शंख, अमृत।
अमृत कलश से कुछ बूंदें जिन स्थानों पर गिरी उन्हीं स्थानों पर नियमित समय पश्चात कुंभ का आयोजन किया जाता है। वह स्थान है- हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक और उज्जैन।
अमृत कलश रक्षा के दायित्व हेतु सूर्य चंद्र और गुरु बृहस्पति जब संरचन करते हैं, तब उस समय कुंभ पर्व का आयोजन होता है। समुद्र मंथन, ध्यान योग की एक क्रिया को दर्शाता है जिसमें प्राणायाम योग द्वारा इड़ा, पिंगला नाड़ी को सम किया जाता है। इस क्रिया से सुषुम्ना नाडी जागृत होती है, जिससे साधक को आध्यात्मिक बल मिलता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
खगोल शास्त्र अनुसार बृहस्पति ग्रह सूर्य की परिक्रमा को 12 वर्षों की अवधि में संपूर्ण करता है। ठीक उसी प्रकार बृहस्पति परिक्रमा के दौरान जब वृषभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के साथ चन्द्रमा मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब कुंभ पर्व का आयोजन होता है। इन सभी ग्रहों की स्थिति को धर्मशास्त्रों में कुछ इस प्रकार लिखा गया है -
मकरे च दिवानाथे वृषराशिगते गुरौ। प्रयागे कुम्भयोगौ वै माघमासे विधुक्षये।।
यदि पृथ्वी को मानचित्र अनुसार देखे तो भूमध्यरेखा यानी शून्य डिग्री अक्षांश और 30 डिग्री अक्षांश के बीच धरती के घूमने से पैदा होने वाला अपकेन्द्रीय बल ज्यादातर लम्बवत रूप में काम करता है। जैसे जैसे उत्तर की तरफ जाया जाए वैसे ही यह बल अपनी दिशा बदल लेता है। 11 डिग्री अक्षांश वह स्थान है जब पूरी तरह से अपकेन्द्रीय बल लम्बवत होता है।
इसी तरह शून्य डिग्री से लेकर 30 डिग्री अक्षांश के बीच की जगह को काफी पवित्र माना गया है क्योंकि यह योग साधना के लिए शुभ है, कयोंकि कुछ खास समय पर इन स्थानों पर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा का संगम महसूस किया जा सकता है। जिन चार स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है वह स्थान है - हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक। इस इन चारों स्थानों को मानचित्र पर देखा जाए तो यह शून्य डिग्री और 30 डिग्री अक्षांश के मध्य उपस्थित हैं।
हरिद्वार - 29.945°N. 78.163°E
प्रयागराज - 25°26'09" N 81°50'47"E
उज्जैन - 23 17°N. 75.78°E
नासिक - 19°59'51.0"N 73°47'23.3" E
अपकेन्द्रीय बल का लम्बवत प्रभाव मुख्यतः उत्तर दिशा की तरफ से देखा जाता है।
कुंभ स्नान का महत्त्व
आयुर्वेद अनुसार मनुष्य शरीर मुख्यतः पांच महाभूतों से निर्मित है। मनुष्य शरीर की संरचना में 72% पानी, 12% पृथ्वी, 6% वायु, 4% अग्नि और 6% आकाश है। किसी मनुष्य को सवस्थ रहने का मुख्य कारण पानी है जो शरीर में सबसे अधिक मात्रा में है।
भौतिक शास्त्र के तरल विज्ञान अनुसार पानी की स्मृति यानी याद्दाश्त होती है, जैसा व्यवहार पानी के साथ किया जाए वैसा ही प्रभाव शरीर पर होगा क्योंकि पानी एक अच्छा संचालक है। प्राचीन समय की धारणा अनुसार 48 दिनों के मण्डल के दौरान कुंभ में पानी में साधना करें तो मनोवैज्ञानिक तंत्र को अपने ऊर्जा तंत्र द्वारा रूपांतरित कर सकते हैं ताकि आध्यात्मिक प्रगति महसूस की जा सके।
जहाँ कहीं पानी के दो निकाय एक खास बल के साथ मिलते हैं वहां पानी का मंथन होने लगता है। जो किसी निर्धारित समय पर शरीर के लिए काफी लाभदायक है। कुंभ आयोजन के चारों स्थानों पर भी इस प्रकार संगम से ऊर्जा संचार होता है। हरिद्वार में गंगा, प्रयागराज में गंगा यमुना सरस्वती का त्रिवेणी संगम, उज्जैन में शिप्रा नदी, नासिक में गोदावरी नदी।
मनुष्य शरीर के साथ सारी सृष्टि पंचतत्वों का ही संगम है। हमारा सौरमंडल और सृष्टि का अरबों- खरबों सालों का स्वरूप केवल पांच तत्वों पर ही आधारित है। इसी कारणवश योग के मूलभूत अंग भूतशुद्धि से ऐसा माना जाता है कि यदि इन पांच तत्वों पर अधिकार कर ले तो स्वास्थ्य, कल्याण और समृद्धि जैसी सभी चीजों को ग्रहण किया जा सकता है। मूलतः मनुष्य शरीर को शुद्ध करने में कुंभ स्नान की उत्पन्न ऊर्जा को सुचारु रूप से प्रयोग करना आवश्यक है।
कुंभ पर नैरेटिव
भारतीय संस्कृति की पूजा पद्धति का मुख्य भाग कुंभ संपूर्ण भारत राष्ट्र को जोड़े रखा है। कुंभ स्नान में सारे भारत से श्रद्धालु आते हैं। प्रयागराज में महाकुंभ आयोजन में लगभग 40-50 करोड श्रद्धालुओं के आने की आशंका है। इतने विशाल जन आयोजन को संभालने में सरकार पूरा योगदान देती नजर आ रही है और हर सुविधा मुमकिन सुविधा प्रदान करने की कोशिश कर रही है।
परंतु फिर भी कई राजनीतिक दलों द्वारा षडयंत्र कर कुंभ आयोजन को लेकर अक्सर झूठा नैरेटिव फैलाया जाता रहा है और ऐसे तुच्छ मानसिकता के लोग आगे भी ऐसे काम करते रहेंगे। इन सभी विचारों को जन साधारण तक पहुंचाने में भारतीय सिनेमा का भी भरपूर प्रयोग किया जाता है।
अक्सर भारतीय चलचित्रों में कुंभ आयोजन पर एक पंक्ति प्रसिद्ध है," कुंभ के मेले में बिछड़े दो भाई।" इस पंक्ति से कुंभ में श्रद्धालु एकत्रीकरण का नकारात्मक प्रभाव समाज में परोसा जाता रहा है ताकि समाज में कुंभ आयोजन की छवि को धूमिल कर तथा समाज का भारतीय संस्कृति पर अविस्वास करवाया जा सके।
सारांश
इस बार प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर लगने वाला कुंभ एक महाकुंभ है, जिसका संयोग 12 पूर्ण कुंभ के बाद भाव 144 वर्षों के बाद बना है। "वसुधैव कुटुंबकम्" के वैदिक विचारों से प्रेरित संस्कृति के पर्व महाकुंभ में भारी मात्रा में विदेशी श्रद्धालु स्नान कर आध्यात्मिक अनुष्ठान करते है परंतु किसी भी धार्मिक और सामाजिक संगठन द्वारा इनका मतांतरण का प्रयास नहीं किया जाता।
"एकं सद् विप्रा बहुधा वदंति " जैसे वैदिक मंत्रों को आधार मानकर भारतीय संस्कृति सर्वोच्च ऊर्जा तक संबंध बनाकर नर से नारायण बनने की शिक्षा देती है लेकिन यह भी स्वीकार करती है कि उस ऊर्जा तक पहुंचने के मार्ग अर्थात पूजा पद्धति भिन्न हो सकती है। ऐसी उच्च विचारों वाली भारतीय संस्कृति से भावी युवा पीढ़ी को जोड़ना आवश्यक है ताकि भारत राष्ट्र की जड़ें राष्ट्रभक्ति से भरपूर हो, इसी कार्य से भारत राष्ट्र समृद्ध बन विश्व गुरु की उपाधि को पुन: प्राप्त कर सकेगा।