बीते गुरुवार को छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने एक ईसाई व्यक्ति की याचिका को खारिज करते हुए उसके मृत पिता के शव को पैतृक भूमि में दफनाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया।
न्यायाधीश विभु दत्ता गुरु ने कहा कि शव दफनाने से ग्रामीणों में अशांति और असामंजस्य पैदा हो सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि गांव से 20-35 किलोमीटर की दूरी पर ईसाइयों के लिए अलग से कब्रगाह उपलब्ध है।
ईसाई याचिकाकर्ता ने कोर्ट में कहा था कि वह अपने मृत पिता का अंतिम संस्कार ईसाई रिलीजन के अनुसार करना चाहता है, हालांकि कोर्ट ने कहा कि वह नजदीकी ईसाई कब्रिस्तान में यह कर सकता है, लेकिन गांव में इसकी अनुमति नहीं दी जाएगी। यह याचिका छिंदवाड़ा गांव के रमेश बघेल नामक ईसाई व्यक्ति ने लगाई थी।
वहीं दूसरी ओर याचिकाकर्ता के विरोध में स्थानीय ग्रामीणों ने मृतक को ईसाई रीति-रिवाज से गांव के भीतर स्थित श्मशान में दफनाने का विरोध किया था, साथ ही गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी थी। ग्रामीणों ने ईसाई परिवार द्वारा गांव के भीतर निजी जमीन में भी शव दफनाने का विरोध किया था, जिसके बाद मामला उच्च न्यायालय तक गया।
दरअसल यह पहला मामला नहीं है जब ईसाइयों द्वारा हिंदुओं के गांव में जबरन शव दफनाने को लेकर विवाद की स्थिति निर्मित की जा रही है। दो सप्ताह पूर्व जगदलपुर में भी ऐसी स्थिति निर्मित हुई थी, जिसके चलते विवाद काफी बढ़ गया था।
जगदलपुर के समीप बड़ेबोदल गांव में एक ईसाई महिला की मौत के बाद गांव में ही जबरन शव दफनाने को लेकर मारपीट और हिंसा की स्थिति बनी थी। गांव के सरपंच गंगाराम रामेत 8 लोग इस घटना में घायल हुए थे। पुलिस ने 5 लोगों को तत्काल गिरफ्तार भी किया था।
जगदलपुर मेडिकल कॉलेज में ईसाई महिला के उपचार के दौरान हुई मृत्यु के बाद उसके परिजन मृतका को गांव के ही श्मशान में दफनाना चाहते थे, जो हिंदुओं के लिए बना हुआ है।
ऐसे में स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों ने इसका विरोध किया, लेकिन ईसाइयों की संख्या अधिक होने के कारण उन्होंने मारपीट की। बीच बचाव करने पहुंचे सरपंच के साथ भी हाथापाई की गई।
पुलिस की कार्रवाई के बाद मसीह समाज के लोगों ने यह कहना आरंभ किया कि सार्वजनिक श्मशान घाट में शव दफन करना क्यों जुर्म है ? लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि वह सार्वजनिक शमशान घाट केवल सनातनी जनजातियों के लिए है, ईसाइयों के लिए नहीं।
इन दोनों प्रश्नों का उत्तर है, नहीं! दोनों मजहबों में इसकी ना ही अनुमति है, और ना ही इसके लोग कभी ऐसा करने देंगे। लेकिन इसी समूह के लोग सनातनी जनजातियों के साथ यही करने के लिए क्यों दबाव बना रहे हैं?
जनजातीय भूमि पर ईसाइयों द्वारा ज़बरन ईसाई रीति-रिवाज से शव दफ़नाने की ज़िद क्यों की जा रही है? यह पूरा षड्यंत्र सनातनी जनजातियों के विरुद्ध क्यों किया जा रहा है?
मिशनरियों की गतिविधियों में जनजातीय क्षेत्रों में 'जनजाति समाज की भूमि' पर ईसाइयों के अंतिम संस्कार का षड्यंत्र भी शामिल है, जिसके चलते अब इस क्षेत्र में सामाजिक ताना-बाना पूरी तरह से बिखरता हुआ दिखाई दे रहा है।
विभिन्न गांवों में यह विवाद देखा जा रहा है कि कन्वर्टेड समूह जनजातियों की भूमि पर ही शव दफनाने को लेकर अड़ा हुआ है, और इसके लिए तमाम तरह के षड्यंत्रों को अंजाम दे रहा है।
इन सब के बीच शव दफनाने को लेकर पूर्व में नारायणपुर जिले के बेनूर थाना अंतर्गत कलेपाल गांव से एक मामला सामने आया था, जहां एक ईसाई व्यक्ति की शनिवार 10 अगस्त को मौत हुई, जिसके बाद ईसाई व्यक्ति के परिजनों एवं क्षेत्र के ईसाई समूह का कहना था कि वो उसी स्थान पर शव दफनाना चाहते हैं, जहां गांव के अन्य जनजातियों के शव को दफनाया जाता है।
वहीं दूसरी ओर स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों का कहना था कि मृतक ईसाई बन चुका था और ईसाई रीति-रिवाजों का पालन करता था, अतः उसका शव जनजातियों के स्थल में नहीं दफनाया जा सकता। इस मामले को लेकर पूरे क्षेत्र में तनाव बन चुका था।
हालांकि ग्रामीणों का कहना था कि मृतक ईसाई के लोग नारायणपुर के ईसाई कब्रिस्तान में जाकर उसका अंतिम संस्कार कर लें, लेकिन उनके शव को गांव में नहीं दफनाने दिया जाएगा। अंततः स्थानीय सनातनी जनजातीय ग्रामीणों के विरोध के कारण प्रशासन को ईसाई व्यक्ति के शव को नारायणपुर के ईसाई क़ब्रिस्तान में ले जाना पड़ा और वहीं उसका अंतिम संस्कार किया गया।
जुलाई के माह में बस्तर जिले के परपा थाना क्षेत्र के अन्तर्गत एक गाँव में ईसाई महिला की मृत्यु के बाद उसके ईसाई परिजन भी जनजातियों की भूमि पर ईसाई रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार के लिए अड़े हुए थे, जिसका ग्रामीणों ने पुरज़ोर विरोध किया था। इसके अलावा भाटपाल, सुकमा, कांकेर जैसे स्थानों से भी ऐसे मामले सामने आ चुके हैं।
स्थानीय ग्रामीण एक प्रश्न पूछते हैं कि यदि किसी क्षेत्र में किसी मुस्लिम की मौत हो जाए तो क्या उसके शव को ईसाई कब्रिस्तान में, मुस्लिम रीति-रिवाज से दफनाने दिया जाएगा ? वो फिर यह भी पूछते हैं कि क्या किसी ईसाई की मौत पर उसका शव मुस्लिम कब्रिस्तान में ईसाई रीति-रिवाज से करने दिया जाएगा ? ऐसे में किसी ईसाई के शव को सनातनी जनजातियों के शव दफनाने के स्थल पर जबरन क्यों दफनाया जा रहा है ?
एक तरफ जहां जनजाति समाज अपनी संस्कृति, परंपरा का पालन करते हुए आ रहा है, ऐसे में वहां शव दफनाने से लेकर अवैध कन्वर्जन तक के षड्यंत्रों को अंजाम देकर ईसाई मिशनरी ने समूह पूरे क्षेत्र के माहौल को तनावपूर्ण बना दिया है।