फरवरी 2023 में अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस ने एक बयान दिया था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकतांत्रिक नहीं हैं। सोरोस ने कहा था कि हिंडनबर्ग के दावों के बाद अडानी के साम्राज्य में उथल-पुथल मच गई है, मोदी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं, यह भारत की संघीय सरकार पर मोदी की पकड़ को कमजोर कर देगा और भारत में एक लोकतांत्रिक परिवर्तन होगा।
यह पहला मौका नहीं था जब जॉर्ज सोरोस इस तरह से भारत के प्रधानमंत्री के विरोध में बयान दे रहे थे, इससे पहले वर्ष 2020 में भी वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के पटल पर सोरोस ने मोदी पर तानाशाही बढ़ाने का आरोप लगाया था, साथ ही अनुच्छेद 370 में संशोधन का एवं सीएए लागू करने का विरोध किया था।
इस तरह के बयानों के बाद देश में एक चर्चा शुरू हुई कि बाहरी शक्तियां मिलकर भारत की लोकतांत्रिक एवं शक्तिशाली सरकार को अस्थिर करना एवं गिराना चाहती हैं। इसके पहले भारत में हुए विभिन्न आंदोलनों एवं घटनाओं को लेकर भी यही कहा गया, जिसके तार अंततः 'डीप स्टेट' से जुड़े हुए दिखाई दिए।
'डीप स्टेट', जिसका एक मोहरा जॉर्ज सोरोस भी है। ऐसे ही अरबपतियों, मीडिया समूहों, गैर शासकीय संगठनों एवं विभिन्न माध्यमों में 'डीप स्टेट' की पकड़ है, जो भारत को अस्थिर करने में लगा हुआ है।
2018 में स्टरलाइट के विरोध में हुए प्रदर्शनों की बात हो या 2020 का दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगा हो, 2020-21 में शाहीन बाग और तथाकथित किसान आंदोलन हो या कोई और घटना, इन सभी में कुछ एनजीओ और मीडिया समूह की भूमिका स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
वर्ष 2023 में जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसायटी फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित एक संस्था ने रिपोर्ट प्रकाशित की जिसके चलते 'पेगासस' विवाद हुआ, जिसमें कहा गया कि भारत सरकार विपक्षी नेताओं एवं पत्रकारों की जासूसी करवा रही है, जो खबर बाद में झूठी निकली।
इस रिपोर्ट को OCCRP नामक एक संस्था ने 'खोजी पत्रकारिता' के नाम पर जारी किया था। इस संस्था को लेकर बाद में फ्रांसीसी पब्लिकेशन मीडियापार्ट ने एक रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि यह तथाकथित खोजी पत्रकारिता की संस्था अमेरिकी डीप स्टेट से वित्तपोषित है। इसके द्वारा अमेरिका का विरोध करने वाले देशों पर 'खोजी पत्रकारिता' के तहत रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है।
इसी संस्था के माध्यम से अडानी समूह को भी निशाना बनाया गया था। जब डीप स्टेट ने देखा कि भारत में आंदोलन, प्रदर्शन, दंगा, हिंसा एवं जातीय द्वेष से काम नहीं चल रहा, तब उसने भारत के आर्थिक ढांचे पर वार करने की साजिश रची। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट हो या OCCRP की रिपोर्ट, इन सभी का उद्देश्य भारत को आर्थिक मोर्चे पर नुकसान पहुंचाना था।
दरअसल इस डीप स्टेट के द्वारा भारत में एनजीओ के मकड़जाल से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा था। ऐसी परिस्थिति में भारत सरकार ने कड़ा एक्शन लेते हुए डीप स्टेट की विदेशी फंडिंग पर लगाम लगाने हेतु नए निर्देश जारी किए।
जॉर्ज सोरोस के एनजीओ पर ऐसे नियम लगाए गए, जिससे उन्हें भारत में किसी एनजीओ को फंडिंग करने के लिए केंद्रीय गृहमंत्रालय की अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया।
डीप स्टेट का एक और समूह 'फोर्ड फाउंडेशन' भी सरकार की नजर में आया, जिसने कुख्यात कम्युनिस्ट कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ को वर्ष 2004-06 के बीच 2,90,000 डॉलर की राशि दी थी। गृहमंत्रालय द्वारा शिकंजा वर्ष 2022 आते तक और कड़ा होता गया, जिससे डीप स्टेट के पूरे नेटवर्क में तिलमिलाहट हो गई।
इस बीच एक संस्था पर भी विशेष नजर पड़ी, जिसका नाम है कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव (CHRI), जिसे सोरोस के ओपन सोसायटी फाउंडेशन द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा था। 2006 से 2018 के बीच 50 करोड़ से अधिक की राशि इसमें भेजी गई थी। लेकिन वर्ष 2016 में ओपन सोसायटी फाउंडेशन जब केंद्रीय गृहमंत्रालय की निगरानी में आया तब CHRI-UK के माध्यम से पैसे भेजे गए।
यह वो संस्था है जो यूनाइटेड किंगडम में स्थित है, जिसे यूके के विदेश कार्यलय, यूरोपीय कमीशन एवं फोर्ड फाउंडेशन से फंडिंग मिल रही थी। दिलचस्प बात यह है कि वर्ष 2017 तक संस्था की आय में कोई अधिक राशि नहीं थी, लेकिन भारत में नियम कड़े होते ही इस संस्था में सोरोस की संस्था से फंडिंग आनी शुरू हो गई, जिसके बाद इसने भारत के एनजीओ को पैसे दान किए।
दरअसल यह एनजीओ का मकड़जाल ऐसा है, जिसके माध्यम से ही डीप स्टेट भारत में अनेकों गतिविधियों का संचालन करता है। विकास की परियोजनाओं पर क्लाइमेट चेंज के नाम पर रोक लगवाना हो या खनिज भंडार वाले क्षेत्रों में उत्खनन का विरोध करना हो, इन सभी के लिए कोई ना कोई एनजीओ सामने आकर विरोध करने को उतारू रहता है, जिसके सम्बंध बाद में हमें डीप स्टेट से दिखाई देते हैं।
भारत में अस्थिरता लाने की तमाम कोशिशों के बीच डीप स्टेट ने भारत के आसपास के क्षेत्रों में भी ऐसी परिस्थितियों को निर्मित किया है, जो भारत के लिए चिंताजनक है।
बांग्लादेश में जिस तरह से चुनी हुई सरकार को प्रदर्शन एवं आंदोलन के माध्यम से हटाकर 'डीप स्टेट' के एक 'सिपहसालार' को नेतृत्व दिया गया, वह भी एक बड़ा उदाहरण है कि कैसे अमेरिकी डीप स्टेट भारत के पड़ोस में उथल-पुथल मचा रहा है, साथ ही ऐसी ही स्थिति भारत में भी लाना चाह रहा है।