एक दस वर्ष की जनजाति बच्ची सोढ़ी मल्ले, अपने घर के बाहर सामान्य बच्चों की तरह खेल रही थी। लेकिन उसका दुर्भाग्य यह है कि वह उस दौर के बस्तर में है, जब कम्युनिस्ट आतंकियों ने बस्तर की जमीनों पर अपने नापाक विचारों के तहत बारूदों के जाल बिछा रखे हैं। इसीलिए सामान्य बच्चों की तरह अपने ही घर के बाहर खेलना उसके लिए एक ऐसी घटना को बुलावा दे गया, जिससे वो जीवन भर उबर नहीं पाएगी।
सोढ़ी को घर के बाहर खेलते हुए एक अनोखी चीज दिखी, जो उसने पहले कभी नहीं देखा था। बालमन की भांति उसे लगा कि वह चीज कोई 'खिलौना' है, लेकिन वह खिलौना नहीं था। वह था एक आईईडी बम। कम्युनिस्ट आतंकियों का बिछाया हुआ बारूद। उस आईईडी बम को खिलौना समझ सोढ़ी ने उसे उठाया, लेकिन उसी समय वह बम फट पड़ा।
बम के विस्फोट की आवाज़ के बीच जैसे सोढ़ी की मासूम चीख दब गई, लेकिन जैसे ही धमाके की गूंज के बाद सन्नाटा पसरा, उस जगह पर बस्तर की इस जनजाति बेटी के खून से धरती लाल होती गई।
सोढ़ी मल्ले का कोमल शरीर माओवादियों के आतंकी बम के चलते कई स्थानों से चोटिल हो गया। इसके बाद परिजनों की चीखें, चीत्कार और हताशा की आवाजें गांव में गूंजने लगी।
यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है, यह बस्तर में तीन दिन पहले हुई घटना की वास्तविकता है। सुकमा के चिंतलनार थाना क्षेत्र के अंतर्गत माओवाद से प्रभावित क्षेत्र तिम्मापुर में यह घटना घटित हुई है। माओवादियों के आतंक का शिकार बस्तर की एक और बेटी बनी है।
जगदलपुर के पास डिमरापाल में अवस्थित मेडिकल कॉलेज में सोढ़ी का उपचार चल रहा है। कम्युनिस्ट आतंक का शिकार बनी मल्ले की आंखें और चेहरा इस विस्फोट में बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हुआ है। अस्पताल में उसके साथ उसके परिजन भी मौजूद हैं, लेकिन कम्युनिस्ट आतंक का भय ऐसा है कि कोई माओवादियों के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोलना चाहता।
माओवादी हिंसा से पीड़ित इस दस वर्षीय इस जनजातीय बच्ची के समीप उसकी एक बूढ़ी दादी भी है। उस बुजुर्ग महिला चाहती है कि किसी तरह मल्ले की तकलीफ कम हो जाये, किसी तरह उसका दर्द कम हो जाये। वह कोशिश भी करती है।
मल्ले का ध्यान भटकाने के लिए वह पास के एक दुकान से मुट्ठी भर बूंदी लेकर आई है, और उस मीठी बूंदी को बीच-बीच मे मल्ले को खिलाती है। वह कोशिश करती है कि किसी तरह छोटी बच्ची अपने दर्द को भूलकर मिठाई खाने में लग जाए।
मल्ले के पिता केसा भी इस घटना पर कुछ नहीं कहना चाहते, क्योंकि उन्हें पता है कि उनका परिवार उसी गांव में रहता है जहां माओवादियों का प्रभाव है। केसा के दो और बच्चे हैं, पत्नी है, बूढ़ी माँ है, घर है, वह जानता है कि यदि उसने माओवादियों के लिए कुछ भी कहा तो वो कम्युनिस्ट आतंकी अपने कम्युनिस्ट विचारधारा के तहत उसके पूरे परिवार को मार डालेंगे।
वह घटना के बारे में बताते हुए कहता है कि सीआरपीएफ के नये सुरक्षा कैम्प में उसकी बेटी का प्राथमिक उपचार हुआ, जिसके बाद देर रात जगदलपुर स्थित मेडिकल कॉलेज में इलाज के लिए लाया गया।
और यह भी जानना जरूरी है कि कम्युनिस्ट आतंकियों की इस हैवानियत और क्रूरता का शिकार बनने वाली सोढ़ी मल्ले एकमात्र बच्ची नहीं है, बस्तर में ऐसे सैकड़ों लोग हैं जो इस आतंक का शिकार बने हैं, जिनके कारण आज उनका जीवन भी बमुश्किल कट रहा है।
बस्तर की ही राधा सलाम हो या उसका भाई रामू सलाम हो, जो नारायणपुर में माओवादियों के इस आतंक का शिकार बने, जिसके बाद उनकी आंखों की रोशनी प्रभावित हुई। हाथ आज भी पूरी तरह से काम नहीं करते। यह बच्ची राधा सलाम मात्र 3 वर्ष की आयु में कम्युनिस्ट आतंक का शिकार हुई थी।
वहीं माड़वी नंदा जैसे बुजुर्ग भी इस आतंक से अछूते नहीं रहे। जो माओवादियों के आईईडी की चपेट में आने के कारण आज पूरी तरह से नेत्रहीन हो चुके हैं।
ऐसे ढेरों नाम हैं जो बस्तर के विभिन्न क्षेत्रों में अपने जीवन को सामान्य तरह से जी रहे थे, लेकिन कम्युनिस्ट आतंकियों के कारण आज उनका जीवन नर्क की तरह हो चुका है, जहां कोई देख नहीं सकता, तो कोई चल नहीं सकता, कोई सुन नहीं सकता तो किसी के हाथ काम नहीं करते। यही कारण है कि बस्तर दबी आवाज में चीख रहा है कि उसे माओवाद से आजादी चाहिए।