चीन में जब से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता आई है, तब से यह स्पष्ट था कि वह भारत के लिए कभी 'मित्र राष्ट्र' नहीं हो सकता है। हालांकि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अदूरदर्शिता के कारण हमने वर्ष 1962 का युद्ध देखा और उसमें भारत की हार भी देखी।
एक ओर जहां नेहरू 'हिंदी-चीनी भाई भाई' और पंचशील समझौते की बात करते रह गए, वहीं दूसरी ओर चीन अपनी कम्युनिस्ट नीतियों को आगे बढ़ाते हुए भारत पर हमला करने की रणनीति बनाते गया। अंततः युद्ध में भारत की हार हुई।
इसी नई रणनीति के तहत भारत ने अब दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों को ब्रह्मोस मिसाइल भी देना शुरू किया है, जिसकी शुरुआत फिलीपींस से हुई है। गौरतलब है कि फिलीपींस और चीन के बीच दक्षिण चीन सागर में विवाद की स्थिति है, ऐसे में फिलीपींस के पास भारतीय ब्रह्मोस आने के कारण चीन पर भी दबाव बढ़ा है। वहीं फिलीपींस के बाद अब इंडोनेशिया ने भी ब्रह्मोस मिसाइल लेने के लिए भारत की ओर हाथ बढ़ाया है, जिसे लेकर जल्द ही समझौता होने वाला है।
दरअसल ब्रह्मोस एक ऐसा मिसाइल है जिसे भारतीय सुरक्षा तंत्र का 'क्राउन ज्वेल' माना जाता है। इसकी क्षमता और तकनीक उच्च मापदंडों की है। यही कारण है कि अब दक्षिण पूर्व एशियाई बाजार में इसकी मांग भी बढ़ रही है। ब्रह्मोस मिसाइल को भारत एवं रूस ने संयुक्त रूप से निर्मित किया है, जिसका नाम भी भारत के ब्रह्मपुत्र नदी एवं रूस की मस्कवा नदी के नाम पर रख गया है।
हालांकि भारत ने कभी यह नहीं कहा कि वह ब्रह्मोस का उपयोग चीन को घेरने के लिए कर रहा है, लेकिन भारत-चीन के संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि जिस तरह से भारत और फिलीपींस के बीच ब्रह्मोस को लेकर समझौते हुए हैं, उसने चीन पर दबाव बढ़ाया है।
गौरतलब है कि वर्ष 2022 में फिलीपींस ने अपनी नौसेना के लिए भारत से 375 मिलियन डॉलर समझौता किया था, जिसके तहत ब्रह्मोस मिसाइल के तट-आधारित, एंटी शिप वेरिएंट की तीन बैटरी भारत द्वारा फिलीपींस को दी जानी है। इसकी पहली खेप वर्ष 2024 में दी गई थी। वहीं फिलीपींस की नौसेना ने इसके लिए वर्ष 2023 में विशेष प्रशिक्षण भी हासिल किया था, जो भारत ने करवाया था।
चीन पर बढ़ते दबाव को देखते हुए फिलीपींस ने अपने रक्षा तंत्र को और अधिक मजबूत करने हेतु अब भारत से 9 अतिरिक्त ब्रह्मोस मिसाइल की बैटरियों को प्राप्त करने की इच्छा जता रहा है। फिलीपींस ने चीन की आक्रामक गतिविधियों को देखते हुए अपने नौसेना के बेड़े में मिसाइल भंडार को बढ़ाने की योजना बनाई है।
दरअसल बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि चीन दक्षिण चीन सागर के क्षेत्र में फिलीपींस के साथ विवाद उत्पन्न करता रहा है, जिसके चलते फिलीपींस को अपनी समुद्री सीमाओं की रक्षा के लिए अतिरिक्त रक्षा उपकरणों की आवश्यकता पड़ रही है, ऐसे में उसने भारत की ब्रह्मोस मिसाइल को इसके लिए उपयुक्त माना है।
दरअसल ब्रह्मोस मिसाइल की क्षमता कुछ ऐसी है कि इसे जमीन, समुद्र एवं हवा, तीनों से लॉन्च किया जा सकता है। बीते कई वर्षों से यह भारतीय सुरक्षा तंत्र का एक महत्वपूर्ण भाग है, जो समुद्री एवं सतही खतरों को सीधा निशाना बना सकता है।
ध्वनि की गति से लगभग तीन गुने रफ्तार से चलने की क्षमता रखने वाली इस मिसाइल की रेंज लगभग 300 से 500 किलोमीटर की है। यही कारण है कि दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में अब इसकी रुचि बढ़ रही है।
इंडोनेशिया अब भारत के साथ लगभग 450 मिलियन डॉलर के सौदे में हस्ताक्षर करने की योजना बना रहा है, जिसे आगामी गणतंत्र दिवस के मौके पर जमीन पर उतारा जा सकता है। वहीं फिलीपींस एवं इंडोनेशिया के साथ-साथ वियतनाम भी भारत से मिसाइल खरीदने की चर्चा कर रहा है, जिसमें 700 मिलियन डॉलर की डील होने की संभावना है।