लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके अपने देश के भीतर भी ऐसे आतंकी हैं, जो इसी बंकरों का उपयोग कर रहे हैं ? क्या आप जानते हैं कि हथियारों को बनाने से लेकर उनका भंडारण करने, साथ ही छिपने-छिपाने से लेकर भारतीय सुरक्षाबलों पर हमला करने में इन बंकरों का उपयोग किया जा रहा है ? यह सबकुछ हो रहा है बस्तर में, और इन बंकरों का उपयोग कर रहे हैं कम्युनिस्ट आतंकी, अर्थात माओवादी।
इन बंकरों के सामने आने की कहानी शुरू होती है 6 जनवरी से, जब कम्युनिस्ट आतंकियों ने फोर्स को निशाना बनाते हुए माओवादी हमला किया, जिसमें 8 जवान और एक वाहन चालक वीरगति को प्राप्त हुए।
माओवादियों ने यह हमला बीजापुर जिले में किया था, जो घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्र माना जाता है। इस हमले के बाद से यह अनुमान था कि सुरक्षा बल के जवान इस हमले का उचित जवाब देंगे, और इसी की योजना बननी शुरू हुई।
बीजापुर, सुकमा और दंतेवाड़ा की सीमा से लगा हुआ क्षेत्र माओवादियों का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है, इस क्षेत्र में खूंखार माओवादी हिड़मा एवं देवा का प्रभाव है। अब फोर्स ने सीधे शीर्ष माओवादियों को ढेर करने के उद्देश्य से अपनी रणनीति बनाई और इसके लिए उन्होंने माओवादियों को ट्रेस करना शुरू किया।
इसी बीच सुरक्षाकर्मियों को एक गुप्त इनपुट मिला कि सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर की सीमा पर माओवादियों की एक बड़ी टीम मौजूद है, जिसमें हिड़मा और देवा भी शामिल हैं। सूचना में यह भी पता चला था कि यहां बटालियन नंबर 1 और सेंट्रल रीजनल कमेटी के माओवादी आतंकी मौजूद हैं।
इन माओवादियों की उपस्थिति का पता चलते ही फोर्स ने उन्हें तीनों ओर से घेरने की योजना बनाई, जिसके बाद 14 जनवरी को 1500 से 2000 की संख्या में जवान बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा की ओर से आगे बढ़े। इसमें डीआरजी, कोबरा, सीआरपीएफ के जवान शामिल थे।
डीआरजी के जवानों ने जब तलपेरु नदी के पास सर्च अभियान के दौरान कुछ संदिग्ध देखा तब उन्हें जमीन के भीतर कुछ होने का अंदेशा दिखाई दिया। लकड़ी और पत्तों से ढंकी एक जमीन दिखाई दी, जिसे देखकर जवान भी हतप्रभ थे। यह कुछ ऐसा था कि इसके ऊपर से कोई गुजर भी जाये तो, उसे कुछ पता न चले।
जवानों ने लकड़ी और पत्तियों को हटाया और उन्हें सामने एक सीढ़ी दिखाई दी, जो सीधे जमीन के भीतर जा रही थी। सीढ़ी जमीन के 10 फीट नीचे जाती थी, जिसके भीतर जवान पहुँचे और वहां उन्होंने जो देखा, वह आश्चर्यजनक था।
12 से 14 फीट चौड़ा बंकर, जिसमें बड़ी मात्रा में हथियार और बम बनाने की मशीन रखी हुई थी, साथ ही बारूद और तार भी पड़े हुए थे। ऐसा लग रहा था कि यह केवल छिपने के लिए बनाया हुआ बंकर नहीं, बल्कि हथियारों और बम के निर्माण के लिए बनाया गई कोई फैक्ट्री थी, जिसका संचालन माओवादी कर रहे थे।
जवानों ने हथियार, बम एवं बारूद समेत सभी सामान बरामद कर बंकर को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। यह एक ऐसा बंकर था जिसमें 15 से 20 माओवादी हथियार, गोला-बारूद के साथ आसानी से छिप सकते थे। यह उनका 'हाईड ऑउट प्लेस' था, जिसे जवानों ने जमींदोज कर दिया।
माओवादी आतंकियों के बटालियन नंबर 1 के प्रभावी क्षेत्र में मिले इस बंकर को लेकर कहा जा रहा है कि इसका निर्माण हिड़मा ने करवाया था, जो छिपने और हथियार रखने के लिए उपयोग में लिया जाता था।
हालांकि यह माओवादियों का पहला बंकर नहीं है, जिसे जवानों ने खोजा और नेस्तनाबूद किया है। इससे पहले पिछले वर्ष ही जवानों ने दंतेवाड़ा जिले में इंद्रावती नदी के समीप सर्च ऑपरेशन के दौरान एक बंकर खोजा था, जो काफी बड़ा था। उस बंकर में एक साथ 80 से 100 माओवादी छिप सकते थे, जिसे जवानों ने खोजने के बाद तोड़ दिया।
वहीं 6 जनवरी को माओवादियों द्वारा किए गए हमले का बदला केवल बंकर तोड़कर ही नहीं किया गया है, बल्कि फोर्स ने 12 माओवादियों को ढेर भी किया है। जिस सर्च ऑपरेशन में फोर्स ने माओवादियों के बंकर को ढूंढा है, उसी दौरान माओवादियों के साथ हुई मुठभेड़ में 12 माओवादी मारे भी गए हैं।
हिड़मा और देवा के गढ़ में ऑपरेशन चलाने के बाद बटालियन नंबर 1 और सेंट्रल रीजनल कमेटी के आतंकियों को ढेर कर फोर्स बीजापुर पहुँची है। करीब 48 घंटे तक चले इस ऑपरेशन में फोर्स को बड़ी सफलता मिली है, जिसकी सराहना बस्तर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक ने भी की है।