महाकुंभ की गरिमा को खंडित करने का कुचक्र और धमकी भी : सनातन विरोधी शक्तियों का मोहरा बने कुछ राजनेता

28 Jan 2025 12:23:45

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विश्व का सबसे बड़ा मेला महाकुंभ प्रयागराज में आरंभ हो चुका है। इसमें दुनियाभर से श्रृद्धालु और शोधकर्ता आ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा प्रतिदिन दिये जाने विवरण और चित्रों में महाकुंभ के विहंगम दृश्य देखे जा सकते हैं, लेकिन सनातन विरोधी शक्तियों इसमें विघ्न डालने के लगातार कुचक्र कर रहीं हैं, और अब तो कुछ राजनेता भी उनका साथ दिखने लगे हैं। सोशल मीडिया पर धमकी, कुछ टिप्पणियाँ, भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और समाजवादी पार्टी नेता अखिलेश यादव समेत कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जन खड़गे का वक्तव्य इसका उदाहरण हैं।


संसार में प्रत्येक धर्म की अपनी परंपराएँ हैं। सबकी अपनी यात्राएँ निकलती हैं और सबके अपने तीर्थ स्थल भी हैं। संसार के करोड़ों लोग अपने अपने श्रृद्धा स्थलों पर जाते हैं। एक तीर्थ स्थल यरुशलम है, जो हजरत अब्राहम की पवित्र भूमि मानी जाती है। लाखों अनुयायी प्रतिवर्ष वहाँ जाते हैं।


मेक्सिको में बेसिलिका ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ ग्वाडालूप, पुर्तगाल में सैंक्चुअरी ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ फ़ातिमा, फ्रांस में सैंक्चुअरी ऑफ़ अवर लेडी ऑफ़ लूर्डेस, रोमन कैथोलिक चर्च वेटिकन के अतिरिक्त हज यात्रा के लिये भी प्रतिवर्ष करोड़ों लोग जाते हैं। लेकिन संसार का कोई राजनैतिक दल इन यात्राओं पर कभी कोई प्रश्न नहीं उठाता।


“सभी यात्राएँ राजनीति से बहुत अलग आस्था की प्रतीक होतीं हैं, इसलिये इन यात्राओं और आयोजनों पर कभी कोई राजनैतिक टिप्पणी नहीं होती। भारत में भी अन्य धर्मों और मतों के अपने आयोजन होते हैं। उनके समागम होते हैं। उन पर भी कभी राजनीति नहीं होती। सभी राजनैतिक दल और सामाजिक कार्यकर्ता उनका सम्मान करते हैं, सहयोग करते हैं। लेकिन भारत में सनातन धर्म का एक भी आयोजन बिना टिप्पणी या विघ्न के संपन्न नहीं हो पाता। उस पर हमले होते हैं और विवादास्पद बनाने का षड्यंत्र होता है।”

 


ये घटनाएँ आज की नहीं हैं। मध्यकाल से आरंभ हुईं थीं। सनातन धर्म और परंपराओं पर हमलों और षड्यंत्र का लंबा इतिहास है। मानविन्दुओं पर तोपों से हमले हुये, विध्वंस किया गया। सनातन सेवियों के सामूहिक नरसंहार हुये हैं। समाज को उनकी परंपराओं से दूर करने केलिये कूटरचित प्रसंगों को उछालकर भ्रम पैदा किये गये हैं। सनातन विरोधियों ने एक कूटनीति भी अपनाई। सनातन धर्म, संस्कृति और परंपराओं को समाप्त करने के लिये उन्होंने हमले तो किये, पर आगे भारत का ही कोई हिन्दू चेहरा सामने रखा।


मध्य एशिया के विध्वंसकारियों की इस रणनीति को अंग्रेजों ने भी अपनाया। सल्तनतकाल बीता, अंग्रेजीकाल भी चला गया। स्वतंत्रता के बाद की अवधि भी सतहत्तर वर्ष बीत गई। लेकिन सनातन धर्म पर हमलों का बीजारोपण जो सल्तनतकाल में आरंभ हुआ था, उस मानसिकता में आज भी कोई परिवर्तन नहीं आया।


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इन दिनों सनातन विरोधी जो घटनाएँ सामने आ रहीं हैं, उनमें कट्टरपंथी, मिशनरीज और वामपंथी शक्तियों का गठजोड़ दिखता है। भारत के कुछ राजनैतिक दल भी उनके स्वर में स्वर मिलाने लगते हैं। प्रयागराज महाकुंभ के बारे में जो भ्रामक टिप्पणियाँ और कूटरचित प्रसंग प्रचारित किये जा रहे हैं उनमें यह गठजोड़ स्पष्ट झलक रहा है।


यह वही गठजोड़ है जिसने कांवड़ यात्राओं, गणेशोत्सव, दुर्गा उत्सव आदि पर हमला करने वालों के वचाव में खुलकर सामने आये थे। अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह की गरिमा कम करने का प्रयास किया था। यह सब किसी से छिपा नहीं है। अब यही सब प्रयागराज महाकुंभ को लेकर हो रहा है।


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पहले महाकुंभ में हमले की धमकी भी दी गई फिर आयोजन की विश्वनीयता पर भी प्रश्न उठाये गये। ये धमकी और अव्यवस्था का भ्रामक संबंधी टिप्पणी ऐसे समय आई जब महाकुंभ की भव्यता का विवरण अंतराष्ट्रीय मीडिया में प्रमुखता से आया और इससे आकर्षित होकर विदेशों से भी हजारों की संख्या में श्रृद्धालु प्रयागराज पहुँचे। जो पन्द्रह लाख श्रृद्धालु एक माह का कल्पवास कर रहे हैं, उनमें बड़ी संख्या में विदेशी भी हैं।


इसके साथ ही ये भ्रामक टिप्पणियाँ आरंभ हुईं ताकि महाकुंभ जाने वालों के मन में भय पैदा हो, आशंका उत्पन्न हो और मन में संकोच भी। बात नहीं रुकी। महाकुंभ में सनातन समाज के दिख रहे समरस स्वरूप पर भी छींटे डालने का कुचक्र और व्यवस्थाओं की कमी का दुष्प्रचार भी आरंभ हुआ। इस काम में मीडिया को भी माध्यम बनाया गया और सोशल मीडिया को भी।


महाकुंभ जाने वाले श्रृद्धालुओं में भय पैदा करने के लिये इंटरनेट मीडिया पर एक स्क्रीनशाट प्रसारित हुआ। यह स्क्रीनशाॅट इंस्टाग्राम से लिया गया था। इसमें सीधी सीधी धमकी दी गई थी। इस धमकी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का सिर कलम करने की धमकी देते हुये लिखा गया था कि - "हम चैलेंज करते हैं कि महाकुंभ नहीं होने देंगे। चाहे कितने भी सिर कलम करने पड़ें"।


एक्स पर यह धमकी देखकर और शिकायत के बाद बरेली पुलिस सक्रिय हुई। प्रेमनगर थाना पुलिस ने 30 वर्षीय मेहनाज नामक युवक को गिरफ्तार किया है। इंस्टाग्राम के एकाउंट में दो और नाम सामने आये हैं। एक नसर पठान और दूसरा फैज। साइबर पुलिस इस एकाउंट की भी जांच कर रही है। प्रारंभिक जांच में ये दोनों नाम फर्जी अनुमानित हैं। साइबर पुलिस इसकी तह तक जाने का प्रयास कर रही है ।


इस धमकी के बाद भी बावजूद महाकुंभ जाने वाले श्रृद्धालुओ की संख्या में कोई कमी नही॔ आई। आरंभिक दो दिनों में श्रद्धालुओं की संख्या का नया कीर्तिमान बना। इसके बाद दो राजनैतिक वक्तव्य आये। एक भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर का और दूसरा समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव का। भीम आर्मी के चंद्रशेखर ने कहा कि "कुंभ वे जाये जिन्होंने पाप किये हों।"


“स्वाभाविक है यह टिप्पणी महाकुंभ की उस गरिमा पर प्रश्न उठाना है जिसका वर्णन भारतीय वाड्मय में है। उसके अनुसार महाकुंभ धार्मिक, आध्यात्मिक, मानसिक और सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि का कारक होता है। लेकिन चन्द्रशेखर ने इसे केवल पाप धोने से जोड़कर महाकुंभ जाने वाले श्रृद्धालुओँ पर एक प्रकार से व्यंग ही किया है। महाकुंभ आयोजन की अवधि में दिख रही सामाजिक समरसता को तोड़ने के लिये एक कूटरचित प्रसंग प्रचारित किया जा रहा है।”

 


महाकुंभ में सब एक दूसरे का हाथ पकड़कर डुबकी लगाते हैं। कोई किसी से न भाषा पूछता, न क्षेत्र न जाति और न आर्थिक समृद्धि की पूछ परख करते है। इसे खंडित करने वाली एक पोस्ट सोशल मीडिया पर देखी गई है। यह पोस्ट भगवान श्रीराम को लेकर बनाई गई है। इसमें लिखा गया है कि श्रीलंका से लौटकर भगवान श्रीराम अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने प्रयागराज आये तो प्रयागराज के ब्राह्मणों ने यह कहकर पिण्डदान कराने से मना कर दिया था कि रामजी के हाथों एक ब्राह्मण का वध हुआ है। इसके बाद रामजी ने अवध से ब्राह्मण बुलाये।


इस पोस्ट का यह कथानक मन गढ़न्त और समाज में विद्वेष फैलाने का षड्यंत्र है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार श्रीरामजी ने चित्रकूट में भरत जी से पिता के निधन का संवाद सुनकर ही मंदाकिनी में पिंडदान कर दिया था। पूरी वाल्मीकि रामायण में पिंडदान के लिये रामजी के प्रयागराज जाने का कोई वर्णन नहीं है। वनवास से लौटने के बाद रामजी के राज्याभिषेक में संसार भर के साधु, संत, ऋषि और आचार्य उपस्थित थे, लेकिन फिर भी रावण को ब्राह्मण बताकर द्वेष फैलाने का यह कुचक्र पहला नहीं है, समय-समय पर ऐसे षड्यंत्र लगातार होते रहे हैं।


यह ठीक उसी प्रकार है जैसे करपात्री जी महाराज के आव्हान पर हुये गौरक्षा आँदोलन के बाद वैदिक काल में गोमांस के विमर्श खड़े किये गये ठीक वैसे ही कई वर्षों से रामजी को लेकर ऐसे विमर्श खड़े किये जा रहे हैं। प्रयागराज महाकुंभ में एक विशाल जन समूह उमड़ा तो प्रयागराज को दशरथ जी पिंडदान का कल्पित प्रसंग जोड़कर नयी बहस खड़ी करने का कुचक्र किया गया।


सोशल मीडिया पर एक पोस्ट और देखी गई। एक्स पर 16 जनवरी को एक स्क्रीनशॉट शेयर हुआ जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई महाकुंभ की व्यवस्था पर व्यंग किया गया और कहा गया कि 'भारत मूर्खों का देश है जहां सरकार लोगों के पीने के पानी पर नहीं, बल्कि ढोंगी और पाखंडियों के शाही स्नान पर करोड़ों का खर्च करती है।" एक्स पर इसे किन्हीं सुभाष वाधवा ने स्क्रीन किया था। वाधवा ने स्क्रीनशाॅट के साथ ऐसी पोस्ट करने वाले की आलोचना भी की थी, बाद में इसे डिलीट कर दिया गया।

“मीडिया और सोशल मीडिया पर महाकुंभ पर नये-नये विमर्श गढ़ने के बाद भी महाकुंभ जाने वाले श्रृद्धालुओ की संख्या लगातार बढ़ी, तब समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव मैदान में आये। ये वही अखिलेश यादव हैं, जिनके बारे में यह माना जाता है कि वे या तो सनातनी परंपरा पर हमला करने वाले कट्टरपंथियों के बचाव में आते हैं अथवा ऐसी कोई बात कहते हैं जिससे लोगों का ध्यान घटना की ओर से कम हो। अखिलेश यादव द्वारा की गईं टिप्पणियाँ महाकुंभ की गरिमा को खंडित करने वाली हैं, अखिलेश यादव की कुछ टिप्पणियाँ पहले सोशल मीडिया पर दिखीं और बाद में पत्रकारों से चर्चा में भी महाकुंभ की व्यवस्था और स्नान केलिये आये तीर्थ यात्रियों की संख्या पर भी प्रश्न उठाये। अखिलेश यादव ने कहा कि SSP ऑफिस से लेकर पांटून पुल तक कोई काम पूरा नहीं हुआ रहे हैं।”

 


उन्होंने कहा कि "जिन SSP साहब को कुंभ की सुरक्षा देखनी है, उन्हीं का कार्यालय बांस-बल्ली से आगे नहीं बढ़ा और यातायात के लिये 22 में से सिर्फ 9 पांटून पुल ही बन पाए हैं। यानी लगभग 40% काम ही पूरा हो पाया।" उन्होंने यह भी कहा कि "कुंभ स्नान करने वालों की संख्या बढ़ा-चढ़ाकर बताई जा रही है, घाट खाली पड़े हैं, गोरखपुर से आने वाली ट्रेन खाली आई। अपनी बात को बल देते हुये अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि "उनके पास वीडियो भी हैं।"


अखिलेश यादव यहीं तक नहीं रुके, उन्होंने संगम और गंगाजी के जल को भी भारी प्रदूषित बताया तथा स्वरूप में छेड़छाड़ करने का भी आरोप लगाया। हालाँकि उनके आक्षेप के बाद अनेक मीडिया हाउस ने उन स्थानों का विवरण और चित्र दिखाया, लोगों से बातचीत भी दिखाई जिसमें श्रृद्धालु व्यवस्था की प्रशंसा करते दिखे और पानी की स्वच्छता की भी प्रशंसा की।


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मीडिया द्वारा दिखाये गये तथ्यों के प्रमाण में जिस प्रकार अखिलेश यादव द्वारा व्यवस्था पर उठाये गये विषय सभी भ्रामक पाये गये, उसी प्रकार उनके द्वारा श्रद्धालुओं की संख्या पर प्रश्न भी हास्यापद माना गया। यहाँ आये श्रद्धालुओं से भरे घाटों का विहंगम दृश्य भारतीय ही नहीं अंतराष्ट्रीय मीडिया में भी है। कुछ देश और उनका मीडिया तो ऐसा है जो भारत की कमियाँ ही ढूँढता है। इस मीडिया में भी उपस्थिति को विशाल जन समूह ही माना।


विश्व के जिन मीडिया हाउस ने इस महाकुंभ की व्यवस्था और उपस्थिति का विवरण दिया उनमें अंतराष्ट्रीय समाचार एजेन्सी एएफपी, रायटर, ब्रिटेन के "द गार्जियन" अमेरिका के सीएनएनएन, रूस के ब्रॉडकास्टर रसिया, कतर के अलजरीरा, यूएई के खलील टाइम्स ही नहीं पाकिस्तान के डाॅन में भी विवरण आये हैं। हालाँकि पाकिस्तान के समाचार पत्र और एजेन्सियों ने महाकुंभ आयोजन को एक राजनैतिक एजेण्डा भी बताया है, लेकिन व्यवस्था और उपस्थिति को स्वीकारा है।


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समाजवादी नेता अखिलेश यादव ने भी मीडिया से बातचीत और सोशल मीडिया पर अपनी टिप्पणी द्वारा महाकुंभ व्यवस्था को एकराजनैतिक एजेण्डा बताने की ही कोशिश की है और व्यवस्था पर प्रश्न उठाये हैं। जबकि महाकुंभ में व्यवस्थाएँ कितनी चौकस हैं, इसका उदाहरण गीता प्रेस पंडाल के समीप गैस सिलेंडर विस्फोट से लगी आग पर नियंत्रण में देखने को मिलती है। घटना के केवल चार मिनिट के भीतर फाॅयर ब्रिगेड मौके पर पहुँच गई थी और बाइस मिनिट में समूची घटना पर नियंत्रण कर लिया था। सौ लोगों को सुरक्षित निकाला और किसी प्रकार की जनहानि नहीं हुई, जबकि 2013 में आयोजित महाकुंभ में कितनी अव्यवस्था थी इसके दो उदाहरण ही पर्याप्त हैं।


संगम और गंगाजी के जल में इतना प्रदूषण था कि अनेक विदेशी महमानों स्नान ही नहीं किया था। मौनी अमावस स्नान के बाद रेल्वे स्टेशन पर भगदड़ में 36 लोग मारे गये थे। सैकड़ों घायल हुये थे। भगदड़ हालाँकि गाड़ी के पटरी बदल लेने से हुई कितु न घायलों को इलाज मिला और कफन तक नहीं मिला था। तब मीडिया में इस घटना का आँखों देखा हाल प्रकाशित हुआ था। जिसका अब भी सोशल मीडिया पर विवरण उपलब्ध है। उत्तर प्रदेश में तब समाजवादी पार्टी की सरकार थी और स्वयं अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे।


कुल मिलाकर सल्तनतकाल और अंग्रेजीकाल भले चला गया गया हो पर सनातन धर्म पर हमला करने की मानसिकता नहीं गई। ऐसे हमले दोनों प्रकार से हो रहे हैं। धमकियों से भी और कूटरचित कथा प्रसंग जोड़कर भी। सनातन धर्म और संस्कृति से संबंधित कोई आयोजन ऐसा नहीं होता जिस पर हमला न हो अथवा विवादास्पद बनाने का कुचक्र न हो। उसी शैली से महाकुंभ पर वैचारिक हमले हुये हैं। धमकी भी सोशल मीडिया पर देखी गई। लेकिन महाकुंभ अभी वैसे हमलों से सुरक्षित है जैसे कावड़ यात्रा से लेकर दुर्गा उत्सव तक विभिन्न आयोजनों पर हुये थे।

लेख

रमेश शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

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