6 जनवरी, 2024, दोपहर 2 बजे और जगह बीजापुर के कुटरू क्षेत्र का अंबेली गांव, इसी समय और स्थान पर माओवादियों ने सुरक्षाबल के जवानों पर आतंकी हमला किया। इस आतंकी हमले में 8 जवान और एक वाहन चालक बलिदान हो गए। जवान माओवादियों की 3 साल पुरानी साजिश का जवान शिकार बने, जिसके बाद यह चर्चा भी शुरू हुई कि आखिर इतना बड़ा हमला कैसे हुआ ?
दरअसल सुरक्षाबल के जवान दक्षिणी अबूझमाड़ के क्षेत्र में माओवादियों की उपस्थिति की सूचना मिलने के बाद अभियान के लिए निकले थे। इस अभियान में दंतेवाड़ा, कोंडागांव और नारायणपुर जिले से डीआरजी और एसटीएफ के 1200 से अधिक जवानों की 30 टीम अलग-अलग मार्गों से अबूझमाड़ में घुसी थी।
4 जनवरी से फोर्स का यह ऑपरेशन चल रहा था, जिसमें बाद में उन्हें सफलता भी मिली। अबूझमाड़ क्षेत्र में ही माओवादियों के मांद में घुसकर फोर्स ने 5 माओवादियों को ढेर किया। मारे गए माओवादियों के पास से हथियार भी बरामद किए गए।
बड़ी संख्या में फोर्स की गाड़ियों के मूवमेंट को देखने के बाद माओवादियों ने यह अंदाजा लगाया कि फोर्स की टीम इसी मार्ग से वापस लौटेगी, और इसी बीच माओवादियों ने सुरक्षाबलों पर हमले की योजना बनाई।
गौरतलब है कि जिस सड़क से फोर्स लौट रही थी, उसके नीचे 60 किलो विस्फोटक 3 वर्ष पहले ही बिछा दी गई थी। इसका पूरा कंट्रोल माओवादियों के हाथ में था। इसीलिए माओवादियों को यहां विस्फोट करने के लिए कोई बड़ी योजना बनानी नहीं पड़ी।
वहीं दूसरी ओर माओवादी डीआरजी जवानों को ही निशाना बनाना चाहते थे, इसीलिए उन्होंने हमले को भी उसी प्रकार से अंजाम दिया, जिसमें डीआरजी के जवानों को अधिक क्षति पहुँचे।
माओवादियों की 2-3 लोगों की एक छोटी टीम ने अंबेली के पास आईईडी विस्फोट किया, जिसके कारण जवानों की गाड़ी के परखच्चे उड़ गए। इसी हमले में डीआरजी के के 8 जवान और एक चालक बलिदान हुए।
इस घटना को लेकर यह जानकारी भी सामने आई कि हमले वाले दिन नैमेड़ में बाजार था, लेकिन अंबेली से ही लगे उसकापटनम गांव के लोग बाजार में नहीं पहुँचे थे। पुलिस सूत्रों के अनुसार इसी गांव में ही माओवादियों की एक टोली रुकी हुई थी, जो विस्फोटक की जानकर थी।
गांव के ग्रामीणों को माओवादियों ने बाहर नहीं जाने दिया था, जिसके चलते पुलिस को कोई खबर नहीं मिल पाई। वहीं दूसरी ओर माओवादियों ने दंतेवाड़ा डीआरजी पर हमला किया।
माओवादियों ने डीआरजी जवानों को ही निशाना इसलिए भी बनाया क्योंकि यही डीआरजी जवान माओवादियों की एक-एक रणनीति को उजागर कर रहे हैं। डीआरजी में बड़ी संख्या में ऐसे जवान हैं जो माओवादी संगठन को छोड़कर ही पुलिस में भर्ती हुए हैं, ऐसे में इन्हें स्थानीय बोली-भाषा, परिस्थिति एवं माओवादियों की रणनीति के बारे में जानकारी होती है। इसीलिए माओवादी इन्हें अपना निशाना बनाना चाह रहे थे।
वहीं जिस सड़क में माओवादियों ने विस्फोट किया, वह सड़क 10 वर्ष पहले बनी थी, लेकिन 3 वर्ष पहले बारिश में बहने के कारण यहां मरम्मत का किया गया और इसी दौरान आईईडी प्लांट किया गया। स्थानीय ग्रामीणों का भी कहना है कि यहां जगह-जगह आईईडी लगाए गए हैं, जहां-जहां सड़क बनती थी, माओवादी वहां आईईडी लगा देते थे।
माओवादियों ने इस हमले को अंजाम देने के लिए भी ऐसे एक सड़क को चुना था, जिसमें उन्होंने 3 वर्ष पहले विस्फोटक प्लांट किया था। विस्फोट को अंजाम देने के लिए माओवादियों ने रविवार की रात, अर्थात हमले से एक दिन पहले, ही तार को जोड़ा था, ताकि किसी को इसके बारे में खबर ना हो सके।