bsCEM : दिल्ली में मौजूद अर्बन नक्सल संगठन जो नक्सलियों को क्रांतिकारी और इंडियन स्टेट को शोषणकर्ता बता रहा है

13 Feb 2025 15:56:26

Representative Imageहार्डकोर कम्युनिस्ट और नक्सल-माओवादी विचारधारा को बढ़ावा देने वाले एक संगठन भगत सिंह छात्र एकता मंच (bsCEM) ने बीते सप्ताह दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेनएयू) के कैंपस की दीवारों में नक्सलियों के समर्थन में एवं सुरक्षाकर्मियों के विरोध में कुछ स्लोगन लिखे थे, जिसके बाद इस नक्सल विचारों के समर्थक संगठन के 4 हार्डकोर कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया था।


लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि बीएससीईएम जैसे संगठन नक्सलियों के समर्थन में ऐसी बाते लिख रहे हैं, जिसके बाद भी ऐसे संगठनों पर प्रतिबंध नहीं लग रहा है, यह आश्चर्यजनक है। सबसे पहले यह देखते हैं कि इन्होंने जेनएयू की दीवारों पर क्या लिखा है -


"2025 में 47 मारे गए, वहीं 2024 से अभी तक 300 से अधिक मारे गए। आम लोगों पर युद्ध को रोको।"


"ऑपरेशन कगार को रोको। लोगों पर युद्ध को रोको।"


"गणतंत्र या गन तंत्र ?"


"ग्रेहाउंड, सीआरपीएफ, पुलिस और सेना कभी भी लोगों के मूवमेंट को नहीं दबा सकती।"


"ऑपरेशन कगार और सूरजकुंड योजना को खत्म करो।"

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यह सभी स्लोगन जेनएयू की दीवारों पर लिखे गए। एक ऐसे विश्वविद्यालय में, जहाँ पहले भी देशविरोधी गतिविधियों को देखा गया है। इन स्लोगन को देखने के बाद शिकायत दर्ज की गई और पुलिस ने 4 हार्डकोर कम्युनिस्ट छात्रों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद भी जिस तरह के बयान आये वो ना सिर्फ इस संगठन के नक्सली विचार बल्कि माओवाद के प्रति उनकी निष्ठा को उजागर करता है।


bsCEM ने अपने हार्डकोर कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद लिखा कि "4 फरवरी को bsCEM ने जेनएयू में 'स्टेट द्वारा अपने ही लोगों पर छेड़े गए युद्ध' के विषय पर वाल पेंटिंग की थी।"


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अपने इस कृत्य में उन्होंने "बस्तर में युद्ध" और नक्सलियों की हिंसा को उन्होंने "जनसंघर्ष" कहा। इसमें कहा गया कि "भारतीय राज्य ने ऑपरेशन कगार और सूरजकुंड योजना के तहत अपने ही लोगों के विरुद्ध युद्ध छेड़ रखा है, जिसमें वर्ष 2024 से 300 से अधिक और केवल 2025 में ही 47 'क्रांतिकारी' मारे गए हैं।"


बीते वर्ष जिस 6 माह की जनजातीय बच्ची मंगली की हत्या नक्सल आतंकियों ने की थी, उसे लेकर ये संगठन कहता है कि "भारतीय राज्य द्वारा मंगली की हत्या से नरसंहार रूपी ऑपरेशन की शुरुआत की गई।"




हार्डकोर कम्युनिस्ट और नक्सलियों की पैरवी करने वाले इस संगठन का कहना था कि "ऑपरेशन कगार के तहत कई फेक एनकाउंटर किए गए हैं, ग्रामीणों पर बम से हवाई हमले किए गए हैं, यौन शोषण किया गया है।"


नक्सलियों का समर्थन करने वाला यह अर्बन नक्सल संगठन लिखता है कि "स्टेट फोर्स द्वारा यौन हिंसा और प्रताड़ना लगातार की जा रही है, जो केवल बस्तर में नहीं बल्कि मणिपुर और कश्मीर में भी हो रही है।"


वहीं दूसरी ओर यह संगठन यह भी कह रहा है कि "जनजातियों के अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से लोकतांत्रिक प्रदर्शन करने वाले मूलवासी बचाओ मंच को भी छत्तीसगढ़ में प्रतिबंधित कर दिया गया।"


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दरअसल इस हार्डकोर कम्युनिस्ट या हम कहें कि अर्बन नक्सलियों के संगठन ने जिस तरह की बातें कही है, उससे यह तो स्पष्ट होता ही है कि वो नक्सली संगठन के विचारों को बढ़ाने का काम कर रहे हैं, लेकिन इसमें सबसे दिलचस्प बात यह है कि ये समूह बस्तर को लेकर तमाम झूठी बाते कर रहा है, और वो भी देश की राजधानी के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय की दीवारों में लिखकर।


“इनका कहना है कि "ग्रीन हंट तो नहीं चला था, ऑपरेशन कगार भी नहीं चलेगा।"”

 


लेकिन ये समूह इस बात को भूल गया है कि देश की जनता के सामने इन तथाकथित नक्सलियों-अर्बन नक्सलियों-माओवादियों का असली मुखौटा सामने आ चुका है। देश की जनता के सामने नक्सली-माओवादी एक आतंकवादी हैं, कोई क्रांतिकारी नहीं।


आज ये हार्डकोर कम्युनिस्ट अर्बन नक्सल संगठन बस्तर में मौजूद सुरक्षाकर्मियों पर झूठे आरोप लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों को क्रांतिकारी बता रहा है, साथ ही इन कम्युनिस्ट आतंकियों को पीड़ित बता रहा है।


इस संगठन का कहना है कि "बस्तर में युद्ध को रोका जाए", तो इसकी सच्चाई यह है कि बस्तर में युद्ध भारतीय राज्य ने नहीं, बल्कि नक्सलियों-माओवादियों ने छेड़ रखा है, जिसके शिकार स्थानीय जनजाति ग्रामीण हैं।


इसका कहना है कि "मरने वाले लोग स्थानीय ग्रामीण हैं, जनजाति हैं, आम लोग हैं। पुलिस इनके ऊपर बम फोड़ देती है, महिलाओं का यौन शोषण करती है और ग्रामीणों को प्रताड़ित करती है।" बल्कि सच्चाई यह है कि ये सभी कृत्य नक्सली-माओवादियों द्वारा किए जाते हैं, और बस्तर के जनजातीय ग्रामीण हर दिन इस दर्द को झेलते हैं। बस्तर में नक्सलियों के कारण पिछले 20 वर्षों में हजारों लोग मारे जा चुके हैं, यह सच्चाई है।


नक्सलियों के आइईडी की चपेट में आने वाली राधा सलाम की कहानी हो, या आज भी अपनी आंखों को खोने की कहानी सुनाते हुए रो पड़ने वाले सोड़ी राहुल की जिंदगी हो, ऐसे हजारों परिवार हैं जिन पर फोर्स ने नहीं बल्कि 'नक्सलियों' ने बॉम्बिंग की है, अर्थात बम विस्फोट से उड़ाया है, यह सच्चाई है।


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वहीं बस्तर क्षेत्र में अपने ही कैडर के साथ यौन शोषण करना हो या उन्हें नग्न नहाने के लिए मजबूर करना हो, ये सब नक्सली करते हैं। वही नक्सली, जिन्हें अर्बन नक्सली "क्रांतिकारी" कहते हैं। अब आप बताइए, क्या ये आतंकवादी हैं या क्रांतिकारी ?


दरअसल bsCEM द्वारा नक्सल आतंकियों का समर्थन करने का यह पहला मौका नहीं है, इससे पहले भी इस शहरी नक्सलवादी संगठन ने ऐसी गतिविधियों को अंजाम दिया है, जो माओवाद की विचारधारा से प्रेरित है।


इससे पहले नक्सल आतंकी आयनूर वासु के लिए भी इन्होंने मुहिम चलाई थी। आयनूर वह नक्सल आतंकी है जो केरल में लंबे समय तक नक्सल आतंक में शामिल रहा और जिसने सैकड़ों नक्सल घटनाओं को अंजाम दिया।


सबसे बड़ी बात यह है कि इस शहरी नक्सलवादी संगठन ने जंगल में बैठे गुरिल्ला नक्सलियों की रणनीति को अपनाते हुए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी की दीवारों पर कुछ स्लोगन लिखे थे, जिसमें उन्होंने लोकसभा चुनाव का बहिष्कार कर "भारत के विरुद्ध क्रांति" का आह्वान किया था।


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ध्यान रहे, इनकी क्रांति का अर्थ ही यही है कि ये नक्सलियों की तरह भारत के गणतांत्रिक और लोकतांत्रिक मूल्यों को खत्म करना चाहते हैं, जिसके लिए हिंसा का सहारा लेना होगा।


उस समय दीवारों पर लिखे स्लोगन कुछ ऐसे थे -


"नक्सलबाड़ी ना खत्म हुआ और ना कभी खत्म होगा"

"लॉन्ग लिव कॉमरेड चारू"

"चुनाव का बहिष्कार करो और नए डेमोक्रेटिक क्रांति से जुड़ों"

"चुनाव का बहिष्कार करो"

"एक ही रास्ता - नक्सलबाड़ी"

"लॉन्ग लिव नक्सलबाड़ी"

"अमार बारी, तोमार बारी, नक्सलबाड़ी"


इन स्लोगन से भी दिखाई देता है कि यह संगठन खुले रूप से माओवादी-नक्सलवादी विचार का प्रचार-प्रसार कर रहा है, जो इसकी गतिविधियों और सोशल मीडिया पोस्ट में हमारे सामने है।

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