फरवरी 2010 : नक्सलियों ने दिन-दहाड़े सिलदा कैंप में किया जवानों का नरसंहार

14 Feb 2025 11:59:12

Representative Image
देश में सबसे बड़ा नक्सली
-माओवादी आतंकी हमला 6 अप्रैल, 2010 को हुआ था। यह वो दौर था जब नक्सली-माओवादी समूहों ने एक बड़े क्षेत्र में अपना पैर पसार लिया था, और आये दिन पश्चिम बंगाल से लेकर अविभाजित आंध्र प्रदेश तक नक्सल घटनाओं की रिपोर्ट्स सामने आती थी।


लेकिन अप्रैल 2010 में हुए सबसे बड़े हमले से पहले नक्सलियों ने फरवरी 2010 में ही एक ऐसे हमले को अंजाम दिया था, जिसमें उन्होंने 24 सुरक्षाकर्मियों का नरसंहार किया था। यह नरसंहार हुआ था पश्चिम बंगाल के मिदनापुर स्थित सिलदा कैंप में, जहां ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के 24 जवान बलिदान हुए।


Representative Image

मिदनापुर से 60 किलोमीटर की दूरी पर एक स्थान है सिलदा, जहां ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के जवानों का एक कैंप स्थापित था। इस कैंप में हमले की योजना नक्सलियों द्वारा 6 माह पहले से बनाई जा रही थी।


इसके लिए जंगल में बैठे गुरिल्ला नक्सलियों के साथ-साथ सिलदा स्थित चंद्रशेखर कॉलेज से कुछ छात्रों को भी चुना गया। 70 नक्सल आतंकियों का समूह बनाया गया, जो इस हमले को अंजाम देने वाले थे। इन सभी को झारखंड बॉर्डर स्थित बेलपहरी में 45 दिनों तक ट्रेनिंग हुई, और फिर इन्हें फरवरी माह में हमले के लिए भेजा गया।


Representative Image

हमले की योजना के तहत ईस्टर्न फ्रंटियर राइफल्स के कैम्प को उड़ाने के लिए 5 आईईडी विस्फोटक लगाए गए थे, वहीं कैंप में हमला करने के बाद भी कैंप के अंदर आने एवं बाहर जाने के रास्ते में आईईडी प्लांट किए गए, ताकि अन्य कैंप से सुरक्षाबलों के आने पर उनपर हमला किया जा सके। शीर्ष नक्सल आतंकी जागरी बख्शी और कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी ने इस पूरे हमले की योजना बनाई थी।


नक्सलियों ने जब यह हमला किया उससे पहले ही सिलदा के ग्रामीणों ने अपने घर-दुकानों के दरवाजे बंद कर दिए थे। नक्सली चारपहिया वाहनों में आये थे, जिसकी जानकारी भी पुलिस इंटेलिजेंस को नहीं लग पाई।


नक्सलियों ने कैंप में विस्फोट किया और अंधाधुंध फायरिंग शुरू की, जिसका परिणाम यह हुआ कि 24 जवान बिना लड़े ही बलिदान हो गए। कैंप की स्थिति ऐसी थी कि वहां मौजूद जवानों को नक्सलियों को जवाब देने का मौका ही नहीं मिला।


Representative Image

नक्सल आतंकियों के द्वारा किए गए इस नरसंहार की सबसे बड़ी बात यह रही कि देश के तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम से लेकर पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने, नक्सलियों को देश से खत्म करने को लेकर कोई ठोस नीति नहीं बनाई। इन नेताओं के बयान भी वही घिसे-पिटे रहे।


लेकिन एक प्रश्न यह उठता है कि आखिर ऐसी क्या परिस्थिति थी कि सिलदा जैसे स्थान पर सुरक्षाकर्मियों का कैंप तो स्थापित कर दिया गया, लेकिन वहां मौजूद जवान नक्सलियों से बिना लड़े ही बलिदान हो गए ?


दरअसल सिलदा पर जिस स्थान पर कैंप को स्थापित किया गया था, वह तत्कालीन समय में घोर नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में आता था। यहां कैंप स्थापित करने से पहले राज्य की कम्युनिस्ट सरकार और केंद्र की कांग्रेस सरकार ने जवानों को कोई विशेष ट्रेनिंग देने या आधुनिक सुविधाएं देने की कोशिश नहीं की।


Representative Image

स्थिति ऐसी थी कि इस कैंप में न तो कोई 'वाच टॉवर' मौजूद था और ना ही 'रेत की बोरियां' लगाई गई थीं। कैंप पर हमले के बाद जो शुरुआती रिपोर्ट सामने आई, उसमें कहा गया कि जवानों तक पर्याप्त मात्रा में हथियार भी नहीं पहुंचाए गए थे।


एक ओर जहां नक्सल आतंकी आधुनिक हथियारों से लैस मोटरसाइकिल और बोलेरो जैसी कार में पहुंचे थे वहीं दूसरी ओर कैम्प में मौजूद जवान ना ही अपनी पोजिशन में थे और ना ही अपने हथियारों को साथ रखे हुए थे। सुरक्षा के तौर पर केवल एक संतरी मौजूद था। यहां तक कि कैम्प क्षेत्र में नक्सलियों द्वारा पहली बार कार का उपयोग किए जाने के बाद भी कोई इंटेलिजेंस इनपुट प्राप्त नहीं हुए।


Representative Image

पश्चिम बंगाल में उस समय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार थी और तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के पास ही राज्य का गृहमंत्रालय भी था, लेकिन उन्होंने कभी भी नक्सलियों से मुकाबला करने वाले जवानों को आधुनिक हथियार एवं ट्रेनिंग देने की व्यवस्था नहीं बनाई। एक ओर जहां कुख्यात माओवादी आतंकी किशनजी निरंतर फोन से मीडिया से संवाद करता था, वहीं दूसरी ओर राज्य की कम्युनिस्ट सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रही।


Representative Image

जवानों को उचित ट्रेनिंग नहीं दी गई, उन्हें पर्याप्त हथियार नहीं दिए गए, इंटेलिजेंस इनपुट नहीं मिल पाया, पुलिस बैकअप नहीं मिल पाया, सरकार सभी क्षेत्रों में विफल रही, लेकिन इसके बाद भी कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य का कहना था कि यह सरकार की नहीं बल्कि "कैंप स्तर पर गलती हुई है।" उन्होंने इस पूरे हमले के लिए कैंप में मौजूद उन जवानों पर आरोप मढ़ दिया जो बिना ट्रेनिंग और उपयुक्त हथियारों के जंगल के भीतर नक्सलियों का मुकाबला करने पहुँच गए थे।


इतनी बड़ी घटना होने के बाद भी केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम ने कहा था कि "कुछ विफलताओं के संकेत मिल रहे हैं, हम आगे समीक्षा कर इसकी जानकारी लेंगे कि कैसे दिन-दहाड़े कैम्प में हमला किया गया।" उन्होंने केवल इसकी निंदा की, इसे खत्म करने की कोई ठोस नीति नहीं बनाई।


केंद्र की कमजोर कांग्रेस सरकार और राज्य की कम्युनिस्ट सरकार की नाकामी के कारण सिलदा में यह नरसंहार हुआ, जिसे नक्सल आतंकियों ने अंजाम दिया। इस नरसंहार में 24 जवान बलिदान हो गए। 40 से अधिक हथियार लूट लिए गए और दिन-दहाड़े सुरक्षाकर्मियों के कैंप को विस्फोट कर उड़ा दिया गया।

Powered By Sangraha 9.0