द नैरेटिव फैक्ट चेक : बस्तर पर अंतरराष्ट्रीय मीडिया की झूठी रिपोर्ट

दरअसल ऑस्ट्रेलियाई सरकारी मीडिया द्वारा जिस तरह से इस रिपोर्ट को सामने लाया गया है, वह किसी प्रायोजित रणनीति के तहत दिखाई पड़ता है, जिसके तहत बस्तर समेत भारत की छवि खराब करने के साथ-साथ उन सभी नैरेटिव को भी फैलाने का काम किया गया है, जो कम्युनिस्ट-ईसाई और भारत विरोधी समूह दशकों से करते आ रहे हैं।

The Narrative World    18-Feb-2025   
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बीते माह बस्तर के भीतर स्थित एक गांव छिंदावाड़ा का मामला काफी सुर्खियों में था। यहां स्थित एक ईसाई व्यक्ति रमेश बघेल ने अपने पास्टर पिता के शव को गांव के सनातन ग्रामीणों के श्मशान में ईसाई रीति
-रिवाज से दफनाने की मांग की थी, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई थी।


हालांकि पहले हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने यही फैसला सुनाया कि मृतक ईसाई पास्टर को ईसाइयों के लिए निर्दिष्ट कब्रिस्तान में ही दफनाया जाए, ना कि सनातनी ग्रामीणों के श्मशान में।


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इस विषय पर द नैरेटिव ने भी ग्राउंड रिपोर्ट की थी, जिसमें हमने आपको जमीनी सच्चाई बताई कि कैसे एक बड़ा षड्यंत्र बस्तर के अंदरूनी क्षेत्रों में चल रहा है।




अभी तक इस षड्यंत्र का हिस्सा ईसाई मिशनरी समूह और चर्च ही था, जिसमें मीडिया भी अपनी भूमिका निभाता था। बीबीसी से लेकर द वायर और तमाम कम्युनिस्ट मीडिया समूहों ने इस मामले को लेकर अपनी प्रोपेगेंडा मशीनरी जारी रखी, लेकिन इस बीच एक मीडिया समूह ने छिंदावाड़ा गांव जाकर ग्राउंड रिपोर्ट के नाम पर ऐसा "झूठ" परोसा है, जो ना सिर्फ बस्तर की छवि को खराब करता है, बल्कि भारत में "ईसाइयों के साथ अत्याचार" के झूठे प्रोपेगेंडा को बढ़ाने का काम करता है।


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इस रिपोर्ट को ऑस्ट्रेलिया की सरकारी मीडिया एबीसी न्यूज़ (ऑस्ट्रेलिया) ने बनाया है, जिसमें रिपोर्ट के नाम पर केवल तथ्यहीन और आधी जानकारी दी गई। आइए देखते हैं क्या है झूठ और क्या है सच्चाई।


झूठ 01 - सबसे पहले रिपोर्ट की शुरुआत में ही रिपोर्टर द्वारा बैकग्राउंड में कहा जाता है कि "गांव में पीढ़ियों से रह रहे परिवार के व्यक्ति रमेश बघेल को हफ्तों तक उनके पिता के शव को दफनाने से रोका गया।"


फैक्ट चेक - इसकी सच्चाई यह है कि ग्रामीणों ने कभी भी रमेश बघेल को अपने पिता के शव दफन से नहीं रोका। ग्रामीणों का कहना था कि छिंदावाड़ा गांव में जो श्मशान है, वह सनातन समाज के लिए है, जिसमें गांव की परंपरा, रूढ़ि-प्रथा और सनातन संस्कृति को मानने वालों के शव ही दफन किए जाते हैं। ऐसे में यदि रमेश बघेल अपने पिता के शव को रूढ़ि प्रथा के अनुसार दफन करते हैं, तो इसमें उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।


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इसके अलावा यदि रमेश बघेल अपने पिता को ईसाई रीति-रिवाज से दफनाना चाहते हैं, तो निर्दिष्ट ईसाई कब्रिस्तान में ही शव दफनाए। इसकी ग्राउंड रिपोर्ट हमने की है, और ग्रामीणों ने द नैरेटिव के कैमरे पर भी यह बात स्वीकार की है। वहीं एडिशनल एसपी द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए शपथ पत्र में भी यही कहा गया है।


झूठ 02 - विदेशी मीडिया एबीसी न्यूज़ द्वारा प्रोपेगेंडा फैलाते हुए कहा गया कि "इस गांव में दशकों से ईसाई, हिन्दू और इंडिजिनस फेथ के लोग सहअस्तित्व के साथ रह रहे हैं।"


फैक्ट चेक - सबसे पहली बात यह है कि जिस जनजाति समाज के लोगों को यह विदेशी और चर्च समर्थक मीडिया "इंडिजिनस फेथ" का बताकर हिंदुओं से अलग कर रहा है, वो जनजाति समाज विशाल सनातन संस्कृति का ही अभिन्न अंग है।


दूसरी बात यह कि, दशकों से गांव में ईसाइयों के रहने का विषय है, इस पर हमें स्थानीय तहसील की जानकारी को सामने रखना चाहिए। छिंदावाड़ा गांव बस्तर जिले के दरभा तहसील के अंतर्गत आता है। इस दरभा तहसील में लगाई गई आरटीआई याचिका के उत्तर में यह बात पता चली कि तहसील को छिंदावाड़ा गांव में मौजूद ईसाइयों और चर्चों के बारे में कोई जानकारी नहीं है, अर्थात गांव में ईसाई बने लोगों ने या तो नियमानुसार कन्वर्जन नहीं किया या अभी भी शासकीय दस्तावेजों में उन्होंने खुद को ईसाई नहीं बताया है।


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विदेशी पत्रकार ने रमेश बघेल और उसके चाचा से बात करते हुए एक चर्च का भी दौरा किया, जो मृतक पास्टर सुभाष बघेल की निजी जमीन पर बना हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि इस चर्च की भी जानकारी स्थानीय तहसील को नहीं है। क्या उक्त विदेशी संस्था की रिपोर्टर मेघना बाली (एबीसी न्यूज़ की प्रोपेगेंडा रिपोर्टर) ने चर्च की वैधता और ईसाइयों के होने की जानकारी लेना उचित नहीं समझा ?


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झूठ 03 - नकारात्मक तरीके से स्थानीय ग्रामीणों को बदनाम करते हुए विदेशी संस्था की रिपोर्टर ने कहा कि '"हिंदू विजिलेंट' जिन्हें स्थानीय अधिकारियों का समर्थन प्राप्त है, उन्होंने शव दफन को रुकवाया।" इसके बाद रमेश बघेल ने कहा कि "शासन प्रशासन हमारे साथ खड़े होता, तो ऐसा नहीं होता।"


फैक्ट चेक - शव दफन के विषय को पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है कि ग्रामीणों ने किसी के शव दफन को नहीं रुकवाया, उन्होंने केवल रूढ़ि प्रथा के लिए आवंटित श्मशान में रूढ़ि प्रथा के अनुसार शव दफन करने की बात कही।


वहीं ईसाई पास्टर के बेटे रमेश बघेल का जो कहना था, उसे लेकर यही कहा जा सकता है कि शासन हो या प्रशासन हो, वह किसी के पक्ष में नहीं होता, किसी के साथ नहीं खड़े होता, बल्कि उसका काम है न्यायोचित निर्णय लेना और कानून एवं शांति की व्यवस्था बनाये रखना।



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यदि हम छिंदावाड़ा गांव के विषय को देखें तो, यहां शासन-प्रशासन बेहद ही संयमित एवं निष्पक्षता से कार्य किया, यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ईसाई व्यक्ति का न्यायोचित शव दफन हुआ, वहीं क्षेत्र में तनाव की स्थिति बनने के बाद भी किसी तरह की कोई अनुचित घटना नहीं हुई।


झूठ 04 - विदेशी संस्था की रिपोर्टर ने इस बीच ईसाई पास्टर सुभाष बघेल के भाई से बात की, जिसने कहा कि "उनके सभी परिजनों के शव ईसाई रीति रिवाज से दफन किए गए हैं। गांव वाले अब यहां शव को दफनाने नहीं देते हैं। शासन-प्रशासन उनकी तरफ होकर हमें दबाना चाहता है।"


फैक्ट चेक - बस्तर में ईसाइयों का प्रोपेगैंडा करने पहुंची विदेशी संस्था की महिला रिपोर्टर ने इस मामले में ईसाइयों का पक्ष तो सुना, लेकिन उन्होंने स्थानीय ग्रामीणों से या सुप्रीम कोर्ट में दिए गए हलफनामे से इसकी पुष्टि करने की कोई कोशिश भी नहीं की।


ईसाई पास्टर के भाई के कहे गए कथन की सच्चाई बताते हुए गांव वालों ने बताया था कि उनके परिवार के लोगों के शव (रमेश बघेल के दादा और चाची) रूढ़ि प्रथा के अनुसार ही दफनाए गए हैं। ग्रामीणों ने बताया कि उस परिवार ने शव दफन के बाद कब्र में जाकर ईसाई चिन्ह 'क्रॉस' बनाया है, जो गांव के साथ एक धोखा है।


वहीं सुप्रीम कोर्ट में एडिशनल एसपी द्वारा दायर किए गए हलफनामे में भी कहा गया कि रमेश बघेल के दादा और चाची को रूढ़ि प्रथा के अनुसार ही दफनाया गया था। वहीं बात हम शासन-प्रशासन की करें, तो तोंकापाल एसडीएम से हुई चर्चा में उन्होंने बताया कि "माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय के बाद आदेशानुसार शव का दफन किया गया।"


झूठ 05 - रमेश बघेल तीसरी पीढ़ी का ईसाई है, जो न्यू अपोस्टोलिक चर्च से जुड़ा हुआ है।


फैक्ट चेक - ग्रामीणों ने बताया कि रमेश बघेल के दादा गांव में "मौर्या" थे, जो देवी उपासना के समय मोहरी बजाते थे। अर्थात वो सनातनी थे, ना कि ईसाई। वहीं जब हमने अपने ग्राउंड रिपोर्ट के दौरान रमेश बघेल से पूछा कि उनके दादा ने कब ईसाई धर्म अपनाया, तो इसका कोई जवाब वो नहीं दे सके।


झूठ 06 - सर्व आदिवासी समाज के नेता राजाराम तोड़ेम को 'देयर बॉस' अर्थात गांव के सनातनियों का "बॉस" कहा गया।


फैक्ट चेक - राजाराम तोड़ेम सर्व आदिवासी समाज के नेता हैं, और पूर्व में विधायक रह चुके हैं। वो छिंदावाड़ा गांव के ग्रामीणों के "बॉस" नहीं हैं। यदि जनजाति नेता होने के तर्क से बात कही जा रही है, तब तो रमेश बघेल या मृतक ईसाई पास्टर और सभी ईसाइयों के "बॉस" वेटिकन में बैठे "पोप फ्रांसिस" होने चाहिए।


झूठ 07 - विदेशी संस्था की महिला पत्रकार ने बस्तर में रिपोर्टिंग के दौरान कहा कि पुलिस प्रशासन द्वारा हस्तक्षेप किए बिना स्थानीय नियमों को लागू कराया जा रहा है, जो हिंदुओं का साथ देते हैं।


फैक्ट चेक - उक्त प्रोपेगेंडा पत्रकार को यह जानकारी होनी चाहिए कि छिंदावाड़ा गांव बस्तर के अंतर्गत आता है, जो जनजातीय बाहुल्य है। यहाँ ग्राम सभा की महत्ता है, और यह शक्ति ग्राम सभा को भारतीय संविधान ने दिया है।


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पुलिस प्रशासन का कार्य है कि वो संविधान द्वारा ग्राम सभा को प्रदत्त शक्तियों को स्वतंत्रता से इस्तेमाल करने दे, जिसमें कोई बाहरी हस्तक्षेप ना हो। बस्तर के भीतर ईसाइयों का बाइबिल, एबीसी न्यूज़ का ओपिनियन या विदेशी चर्च का नियम नहीं, बल्कि भारतीय संविधान के अनुसार बनाए गए नियम चलते हैं।


झूठ 08 - रिपोर्ट में विदेशी संस्था की प्रोपेगेंडा पत्रकार कहती है कि भाजपा के घोषणापत्र में कहा गया है कि "भारत केवल हिंदुओं के लिए है।"


फैक्ट चेक - भाजपा के घोषणा पत्र में कहीं ऐसा नहीं कहा गया है।


दरअसल ऑस्ट्रेलियाई सरकारी मीडिया द्वारा जिस तरह से इस रिपोर्ट को सामने लाया गया है, वह किसी प्रायोजित रणनीति के तहत दिखाई पड़ता है, जिसके तहत बस्तर समेत भारत की छवि खराब करने के साथ-साथ उन सभी नैरेटिव को भी फैलाने का काम किया गया है, जो कम्युनिस्ट-ईसाई और भारत विरोधी समूह दशकों से करते आ रहे हैं।


अंतरराष्ट्रीय प्रोपेगेंडा समूह का हिस्सा बनकर बस्तर पहुँची मेघना बाली ने इस पूरे प्रकरण पर सच जानने का प्रयास क्यों नहीं किया ? कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो स्पष्ट रूप से पूछे जा सकते थे ? जैसे -


यदि रमेश बघेल तीसरी पीढ़ी के ईसाई हैं, तो उनके दादा कब ईसाई बने और इसका रिकॉर्ड तहसील कार्यालय में क्यों नहीं है?


गांव में 5 चर्च है, एक चर्च तो वही है, जिसमें विदेशी संस्था की पत्रकार मेघना बाली पहुंची थी, तो उसने यह क्यों नहीं पूछा कि चर्च के लिए प्रशासन से अनुमति ली गई है या नहीं ? या यह चेक क्यों नहीं किया गया कि प्रशासन के पास चर्च की कोई जानकारी है या नहीं ?


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एबीसी न्यूज़ ने अपनी रिपोर्ट में बस्तर की एक फोटो डालते हुए लिखा है कि "बस्तर के अधिकारियों ने लोगों को पारंपरिक रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए जोर डाला है।" लेकिन एबीसी न्यूज़ ने ये पड़ताल क्यों नहीं की कि बस्तर पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आता है, जहां स्थानीय जनजातीय ग्रामीणों को अपनी परंपरा, रीति-रिवाज और रूढ़ि परंपरा को मानने का अधिकार है ?


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एबीसी न्यूज़ ने रमेश बघेल के हवाले से लिखा कि "अपनी पीड़ा को व्यक्त करना असंभव है।" लेकिन ग्रामीणों की खोती परंपरा, उसपर होते कुठाराघात और जनजतियो की जमीन पर विदेशी संस्कृति की घुसपैठ पर ग्रामीणों की पीड़ा को क्यों नहीं सुना गया ?


एबीसी न्यूज़ ने अपनी वीडियो रिपोर्ट और वेबसाइट में प्रकाशित रिपोर्ट में हर जगह जनजाति समाज को हिंदुओं से अलग बताने का प्रयास किया है, जो एक सोची समझी साजिश का हिस्सा है। एबीसी न्यूज़ की प्रोपेगेंडा पत्रकार लिखती हैं कि "ईसाई, हिन्दू और माओवादी 'विद्रोहियों' ने क्षेत्र की 'इंडिजिनस ट्राइब' के मन-मस्तिष्क में प्रभाव डाला है।"


जबकि सच्चाई यही है कि जनजाति समाज आदिकाल से ही सनातन संस्कृति का हिस्सा रहा है, और जिस तरह पूरा हिन्दू समाज महादेव और मां आदिशक्ति की उपासना करता है, उसी तरह जनजाति समाज भी महादेव को बूढ़ा देव और आदिशक्ति दंतेश्वरी माई की पूजा करता है, क्योंकि हिन्दू और जनजाति अलग नहीं हैं, एक ही हैं।


एबीसी न्यूज की प्रोपेगेंडा पत्रकार ने बस्तर में रिपोर्टिंग तो की लेकिन ये नहीं बताया कि कैसे नारायणपुर में ईसाइयों ने सनातनी जनजातियों पर जानलेवा हमला किया था।


यह नहीं बताया कि कैसे बस्तर के विभिन्न गांवों में अवैध कन्वर्जन का रैकेट चल रहा है, जो ईसाई मिशनरियों द्वारा चलाया जा रहा है।


विदेशी संस्था की पत्रकार ने छिंदावाड़ा की रिपोर्ट बनाते हुए यह जरूर कहा कि "12 ईसाई परिवार में से 9 परिवार घर वापसी कर चुके हैं, और 3 अब गांव छोड़ के जा चुके हैं।" लेकिन यह नहीं बताया कि यह बस्तर के छिंदावाड़ा गांव की घटना नहीं है।


यूनाइटेड क्रिश्चियन फोरम के डेटा को बिना पुष्टि किए रिपोर्ट में परोसना हो या बस्तर की झूठी रिपोर्ट दिखाना हो, एबीसी न्यूज़ की इस महिला रिपोर्टर मेघना बाली ने एक ऐसा झूठा नैरेटिव गढ़ने का प्रयास किया, जो वास्तविकता से कोसो दूर है।


दरअसल यह पहली बार नहीं है जब एबीसी न्यूज़ की दक्षिण एशिया ब्यूरो चीफ मेघना बाली ने हिंदुओं के विरुद्ध प्रोपेगेंडा फैलाया हो, इससे पहले भी वह एबीसी न्यूज़ में ही इस तरह की गतिविधियां करती रही है।


सितंबर में लिखे अपने एक लेख में मेघना बाली ने भारत के केंद्रशासित प्रदेश एवं अविभाज्य भाग जम्मू-कश्मीर के कश्मीर को "भारत द्वारा नियंत्रित कश्मीर (Indian -controlled Kashmir)" कहा था। यह ना सिर्फ भारत की एकता और अखंडता को चुनौती थी, बल्कि भारत की सीमा के भीतर रहकर, भारत की संप्रभुता पर वैचारिक हमला था।


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मेघना बाली ने दुर्दांत इस्लामिक जिहादी आतंकवादी बुरहान वानी को 'प्रभावशाली युवा अलगाववादी नेता' बताया था, साथ ही इस आतंकी के मरने पर विरोध करने वाले के पक्ष में रिपोर्ट प्रकाशित किया था। अपनी रिपोर्ट में मेघना बाली ने भारत का ऐसा मानचित्र दिखाया था, जिसमें "Indian Administrated Kashmir" लिखा हुआ था।


चाहे कश्मीर का विषय हो या राम मंदिर का, महाकुंभ का विषय हो या ॐ और स्वास्तिक जैसे चिन्हों का, मेघना बाली ने एबीसी न्यूज़ के माध्यम से हर उस प्रतीक पर प्रहार करने का प्रयास किया है, जो हिंदू और सनातन संस्कृति के साथ-साथ भारत की अखंडता से जुड़ा हुआ है।


गौरतलब है कि बस्तर में बनाई हुई रिपोर्ट के साथ-साथ मेघना बाली ने भारत के जिन-जिन विषयों पर ऐसी रिपोर्ट बनाई है, उन सभी में झूठा नैरेटिव और गलत तथ्य स्थापित करने का प्रयास किया गया है।


खैर, यदि बात हम बस्तर में हुई रिपोर्ट पर करें तो एबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट उसी अंतरराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है, जो बस्तर को तोड़ने और बस्तर की संस्कृति को खत्म करने के लिए रची जा रही है, और मेघना बाली जैसे पत्रकार ने प्रोपेगेंडा के माध्यम से उसी को आगे बढ़ाने का काम किया है।