ये साल 1680 था जब औरंगजेब को पता चला कि छत्रपति शिवाजी महाराज का देहांत हो गया है। तो वो दक्षिण जीतने की इच्छा लिए आगरा से उठकर छत्रपति संभाजी नगर (पूर्व में औरंगाबाद) पहुंच गया। औरंगजेब को एक दिन निजामशाही और दो दिन आदिलशाही को खत्म करने में लगे लेकिन सामना होना था 23 साल के नए छत्रपति संभाजी से।
इस समय औरंगजेब दुनिया का सबसे ताकतवर राजा था। वो ना सिर्फ विश्व के सबसे बड़ा भू-भाग पर राज कर रहा था, उसके पास विश्व की सबसे बड़ी पांच लाख की सेना थी।
अगले 9 सालों में संभाजी ने पुर्तगालियों के खिलाफ 15 और मुगलों के खिलाफ 69 छोटे-बड़े युद्ध जीते। मराठा साम्राज्य की जो सीमा उनके पिताजी छोड़ कर गए थे, वो उससे कई गुना बढ़ाकर आगे ले गए। गुजरात से लेकर गोवा तक भगवा फहर रहा था।
साल 1689 में सगे साले की गद्दारी के चलते छत्रपति अपनी पत्नी और बच्चे समेत बंधक बनाए गए। उन्हें जोकर के कपड़े पहनाकर परेड कराते हुए मुगल खेमे में लाया गया। औरंगजेब ने जिंदा रहने का दो रास्ते दिए पहला पूरा मराठा साम्राज्य मुगलों को सौंप दिया जाए या इस्लाम स्वीकार कर लिया जाए। बंधक बने संभाजी का जवाब था "अगर औरंगजेब अपनी बेटी की निकाह भी मुझसे करा दे तो भी इस्लाम स्वीकार नहीं करूंगा।"
इसके बाद शुरू हुई प्रताड़ना। पहले दिन उनकी आंखें फोड़ी गई, इसके बाद उनकी जीभ काटी गई, फिर खाल उतारी गई, अंत में उनके टुकड़े कर दिए गए। औरंगजेब इसके बाद करीब 20 साल मराठों का खत्म करने का सपना लिए छत्रपति संभाजी नगर में पड़ा रहा।
औरंगज़ेब तो हिन्दू पदपादशाही समाप्त नहीं कर पाया, हां उसके मरने के 40 साल बाद पेशवाओं ने जरूर मुगल बादशाहों को पेंशन पर रखा और उनकी रक्षा की। मराठों एवं अंग्रेजों में 1684 में जो समझौता हुआ, उसमें छत्रपति संभाजी महाराज ने एक ऐसी शर्त रखी थी कि अंग्रेजों को मेरे राज्य में दास (ग़ुलाम) बनाने अथवा ईसाई धर्म में दीक्षित करने हेतु लोगों का क्रय करने की अनुज्ञा नहीं मिलेगी।
देश धरम पर मिटने वाला शेर शिवा का छावा था।
महा पराक्रमी परम प्रतापी एक ही शंभू राजा था।।
तेजपुंज तेजस्वी आंखें निकल गयीं पर झुका नहीं।
दृष्टि गयी पर राष्ट्रोन्नति का दिव्य स्वप्न तो मिटा नहीं।।
दोनों पैर कटे शंभू के ध्येय मार्ग से हटा नहीं।
हाथ कटे तो क्या हुआ सत्कर्म कभी तो छूटा नहीं।।
जिह्वा कटी खून बहाया धरम का सौदा किया नहीं।
वर्ष तीन सौ बीत गये अब शंभू के बलिदान को।
कौन जीता कौन हारा पूछ लो संसार को।।
मातृभूमि के चरण कमल परजीवन पुष्प चढ़ाया था।
है राजा दुनिया में कोई जैसा शंभू राजा था।।
संभाजी द्वारा औरंगजेब को लिखा पत्र -
“वो जो सोच कर दक्कन आये थे, वो मकसद पूरा हो गया है, इसी से संतुष्ट होकर उन्हें दिल्ली लौट जाना चाहिए। एक बार हम और हमारे पिता उनके कब्ज़े से छूट कर दिखा चुके हैं। लेकिन अगर वो यूं ही ज़िद पर अड़े रहे, तो हमारे कब्ज़े से छूट कर दिल्ली नहीं जा पाएंगे। अगर उनकी यही इच्छा है तो उन्हें दक्कन में ही अपनी क़बर के लिए जगह ढूंढ लेनी चाहिए।”
आज इन्हीं छत्रपति संभाजी महाराज पर रिलीज़ हुई फ़िल्म की चर्चा चारों ओर दिखाई दे रही है। फ़िल्म का नाम है छावा। फ़िल्म के दृश्य, अभिनय एवं कहानी ने ना सिर्फ़ छत्रपति संभाजी महाराज की वीरता, उनके बलिदान और युद्ध कौशल को दिखाया है, बल्कि इस्लामिक अक्रांता औरंगज़ेब की क्रूरता और उसके पैशाचिक विचार को भी उजागर किया है।
यह एक ऐसी फ़िल्म है जो आक्रांताओं के विरुद्ध एक हिंदु वीर योद्धा के बलिदान, शौर्य और त्याग की महान गाथा को बताती है, जिसे ज़रूर देखा जाना चाहिए। "छावा" मतलब शेर का बच्चा।
लेख
अविनाश त्रिपाठी
स्वतंत्र टिप्पणीकार