दुर्दांत नक्सल आतंकी शंकर राव, जिस पर 25 लाख रुपये का इनाम था, जब फोर्स के साथ मुठभेड़ में बीते वर्ष मारा गया, तब तेलंगाना की कांग्रेस सरकार में मंत्री और पूर्व नक्सल आतंकी अनुसुइया दनसारी उर्फ सीताक्का ने शंकर राव के घर जाकर उस खूंखार आतंकवादी को श्रद्धांजलि दी थी।
इस एनकाउंटर में 29 माओवादी मारे गए थे, जिन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने 'शहीद' बताया था। वहीं वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान छत्तीसगढ़ पहुँचे यूपी कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राज बब्बर ने नक्सलियों को 'क्रांतिकारी' कहा था।
माओवादियों को 'क्रांतिकारी' बताने से लेकर अर्बन नक्सलियों को 'सलाहकार' बनाने समेत तमाम ऐसी गतिविधियों में कांग्रेस पार्टी शामिल रही है, जिसे पूरे देश ने देखा है। लेकिन इससे एक कदम आगे बढ़कर इस बार कांग्रेस ने ऐसा काम किया है जो आम भारतीय की कल्पना से परे है। कांग्रेस पार्टी ने नक्सल आतंकियों का समर्थन इस स्तर पर जाकर किया है, जिससे यह स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस पार्टी को अब कम्युनिस्ट समूहों द्वारा चलाया जा रहा है।
क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि किसी माओवादी आतंकी, जिसने सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया हो, को पद्म भूषण या पद्म विभूषण से सम्मानित किया जाए?
क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं कि कोई माओवादी आतंकी भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान हासिल कर रहा है?
क्या आप यह सोच सकते हैं कि जिस व्यक्ति की भूमिका आम ग्रामीणों और पुलिसकर्मियों की हत्या करने में है, और एनआईए समेत देश की अन्य जांच एजेंसियां उसकी खोजबीन कर रही है, उसे पद्म पुरस्कार दिया जाए?
क्या किसी ऐसे व्यक्ति को भारत का नागरिक सम्मान दिया जा सकता है, जिसने नक्सल आतंकी संगठन के लिए एक फ्रंटल संगठन बनाया हो, और जिसे आतंकी गतिविधियों के कारण प्रतिबंधित किया गया हो?
तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने गुम्मादी विट्ठल राव को पद्म भूषण या पद्म विभूषण देने की सिफारिश की थी, जिसे केंद्र सरकार ने दरकिनार कर दिया। गौरतलब है कि गुम्मादी उर्फ गद्दार एक कुख्यात माओवादी आतंकी था, जिसकी वर्ष 2023 में मौत हो गई थी।
जैसा कि भारतीय मुख्यधारा की मीडिया का चरित्र है, उसी के अनुसार आज भी इस माओवादी आतंकी को मीडिया के द्वारा 'जनकवि', 'क्रांतिकारी कवि', 'क्रांतिकारी विचारक' और 'लेखक' के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन गुम्मादी उर्फ गद्दार की वास्तविकता यह नहीं है।
गुम्मादी उर्फ गद्दार एक हार्डकोर नक्सली था, जिसने 'गीत-संगीत-नृत्य-नाट्य' के माध्यम से नक्सलवाद-माओवाद की विचारधारा को फैलाने का काम किया। वर्ष 1972 में गुम्मादी ने 'जन नाट्य मंडली' नामक एक संगठन का गठन किया, जिसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में कला के माध्यम से माओवादी विचार का प्रचार-प्रसार करना और ग्रामीण युवाओं को नक्सल आतंक के काले साये में धकेलना था।
गुम्मादी द्वारा गठित किए गए इस संगठन 'जन नाट्य मंडली' को नक्सल आतंकियों के लिए काम करने के चलते आतंकी संगठन के रूप में सूचीबद्ध कर प्रतिबंधित किया गया है। यहां तक कि जब वर्ष 2022 में जन नाट्य मंडली का दुर्दांत नक्सली दप्पू रमेश की मौत हुई, तब प्रतिबंधित माओवादी आतंकी संगठन सीपीआई-माओवादी ने उसके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
खूंखार माओवादी आतंकियों के साथ भारत की लोकतांत्रिक गणतांत्रिक व्यवस्था को खंडित कर माओवादी तानाशाही व्यवस्था लागू करने के उद्देश्य से गुम्मादी राव ने 1970 के दशक में युवाओं से नक्सली बनने का आह्वान किया और स्वयं भी 1985 से 1990 तक अंडरग्राउंड होकर नक्सल आतंकवाद के लिए काम करने लगा। इस दौरान गुम्मादी उर्फ गद्दार ने नक्सल संगठन के लिए कैडर भर्ती करने और उन्हें नक्सल आतंक के अंतहीन युद्ध में झोंकने का कार्य किया।
गौरतलब है कि गुम्मादी पर तब भी आपराधिक मामले चल रहे थे, जिसमें आम ग्रामीणों की हत्या से लेकर पुलिसकर्मियों की हत्या तक का मामला था। कर्नाटक में हुए नक्सल हमले में वह सीधा आरोपी भी था।
दरअसल 10 फरवरी, 2005 में नक्सल आतंकियों ने कर्नाटक के तुमकुर जिले के पावगड़ा में आतंकी हमला किया था। इस दौरान 200 माओवादियों ने कर्नाटक स्टेट रिजर्व पुलिस कक नौवीं बटालियन पर हमला किया। माओवादियों के इस हमले में 7 पुलिसकर्मी समेत बलिदान हुए थे, वहीं एक नागरिक की भी मौत हुई थी।
पुलिस ने इस हमले के मामले में 109 आरोपियों को गिरफ्तार किया और 2 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट फ़ाइल की। इसमें गुम्मादी राव को अपराधी नंबर 11 बनाया गया, जो बताता है कि कैसे गुम्मादी स्वयं भी माओवादी आतंकी हमलों की साजिश में शामिल रहता था।
गौरतलब है कि वर्ष 2017 तक गुम्मादी स्वयं माओवादी आतंकियों से संबंध रखते हुए नक्सल आतंक की विचारधारा के साथ देश को तोड़ने के सपने पाले हुए था, जिसने बाद में कांग्रेस के साथ मिलकर उसका समर्थन करना शुरू कर दिया। अक्टूबर 2018 में ही गुम्मादी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मुलाकात की और फिर उसके बाद से ही गुम्मादी कांग्रेस का प्रिय हो गया।
गुम्मादी ने अविभाजित आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जंगलों में घूम-घूमकर स्थानीय ग्रामीणों के बच्चों और युवाओं को तो नक्सलवाद-माओवाद के आतंक में झोंक दिया, लेकिन उसके खुद के बच्चे शिक्षित और अमीर बनते गए।
गुम्मादी की बेटी ओस्मानिया विश्वविद्यालय से पीएचडी कर चुकी, कांग्रेस की नेता है, चुनाव लड़ चुकी है, उसके पास 500 ग्राम सोना (4 करोड़ से अधिक मूल्य का) है, और लाखों रुपये कैश में है, लेकिन उन बच्चों का क्या जो गुम्मादी उर्फ गद्दार की बात में आकर नक्सली बन गए ?
source - https://www.myneta.info/Telangana2023/candidate.php?candidate_id=297
वहीं कांग्रेस पार्टी ऐसे भारत विरोधी, लोकतंत्र विरोधी और आतंक समर्थक व्यक्ति को ना सिर्फ 'महान' बता रही है, बल्कि ऐसे लोगों के लिए "पद्म पुरस्कार" की मांग कर भारत की संप्रभुता पर हमला करने वालों को उपकृत करने का काम कर रही है।
कांग्रेस पार्टी की तेलंगाना सरकार ने गद्दार के लिए ना केवल पद्म पुरस्कारों की मांग की, बल्कि गुम्मादी की एक भव्य प्रतिमा भी बनाने जा रही है। वहीं तेलुगु सिनेमा के पुरस्कार का नया नाम भी गुम्मादी के नाम पर रखने का निर्णय लिया गया है।
गुम्मादी को तेलंगाना का 'लीजेंड ब्रांड एम्बेसडर' बताने वाले कांग्रेस नेता रेवंत रेड्डी नक्सली आतंकियों के विचारों के गिरफ्त में नजर आ रहे हैं। इस मामले को लेकर हैदराबाद स्थित 'एंटी टेररिज्म फोरम' का कहना है कि "जो व्यक्ति माओवादी विचारधारा से जुड़ा रहा है, जो निर्दोष लोगों और पुलिसकर्मियों की मौतों का जिम्मेदार है और जो लोकतंत्र के मूल सिद्धांत का विरोधी है, उसका इस तरह से महिमामंडन करना अनुचित है।"
फोरम का कहना है कि "चुनी हुई सरकार द्वारा इस तरह के लोगों और विचारधारा का महिमामंडन करना ना सिर्फ देश के लोकतांत्रिक धागे को कमजोर करेगा, बल्कि अपनी जान की बाजी लगाकर देश की रक्षा कर रहे सुरक्षाकर्मियों के मनोबल को भी गिराएगा।"
कांग्रेस सरकार ने जिस तरह से एक आतंकवादी संगठन के आतंकी विचारक को पद्म पुरस्कार देने की मांग की है, वह ना सिर्फ इस बात की पुष्टि करता है कि कांग्रेस अब पूरी तरह से माओवादी विचारधारा को अपना चुकी है, बल्कि इस बात की ओर भी इंगित करता है कि कांग्रेस के लिए माओवाद की समस्या अब आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा ना होकर, सत्ता पलटने की क्रांति है, जैसा नक्सली आतंकी कहते हैं।