श्री गुरुजी - शक्तिशाली भारत के कल्पक

19 Feb 2025 11:37:48

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श्री गुरुजी
, माधव सदाशिव राव गोलवलकर, शक्तिशाली भारत की अवधारणा के अद्भुत, उद्भट व अनुपम संवाहक थे। वे भारत की सौम्यता, अनेकता में एकता, समरसता के मर्मज्ञ थे। श्री गुरुजी के संदर्भ मेंथेशब्द कहना सर्वथा अनुचित होगा, वे आज भी हमारे मध्य; पराक्रमी भारत, ओजस्वी भारत, अजेय भारत, निर्भय भारत, संपन्न-समृद्ध-स्वस्थ भारत व राष्ट्रवाद भाव के झर-झर बहते निर्झर झरने बने हुए हैं। वे शक्तिशाली भारत के अग्रदूत, संवाहक, प्रणेता के रूप में आज भी हमारे मध्य हैं, एक वैचारिक मूर्ति के रूप में।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरुजी के संदर्भ में, शक्तिशाली भारत की अवधारणा के संवाहक, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी पुस्तक श्रीगुरूजी एक स्वयंसेवकमें लिखते हैं – “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन 1925 में डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी, लेकिन इसे वैचारिक आधार द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकरश्रीगुरुजीने प्रदान किया था। द्वितीय विश्वयुद्ध, भारत छोड़ो आंदोलन, आजाद हिंद फौज और नेताजी का देश की आजादी में योगदान, भारत विभाजन, देश की आजादी, कश्मीर विलय, गांधी हत्या, देश का पहला आम चुनाव, चीन से भारत की हार, पाकिस्तान के साथ 1965 1971 की लड़ाई; भारत का इतिहास बदलने और बनाने वाली इन घटनाओं के महत्त्वपूर्ण काल में न केवल श्रीगुरुजी संघ के प्रमुख थे, बल्कि अपनी सक्रियता और विचारधारा से उन्होंने इन सबको प्रभावित भी किया था।


शक्तिशाली भारत की श्री गुरुजी की अवधारणा को अटल बिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी हुई कोई आधा दर्जन केंद्रीय सरकारों ने मात्र ही स्वीकार नहीं किया; अपितु, इस अवधारणा को उन्होंने अपना गीता-रामायण माना हुआ है।


शक्तिशाली राष्ट्र की गुरुजी की अवधारणा को स्वतंत्रता संघर्ष के मध्य ही कांग्रेस ने, व स्वतंत्रता के पश्चात बनी हुई नेहरूजी व शास्त्रीजी की सरकारों ने भी स्वीकार किया है। यद्दपि नेहरू ने तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने व श्री गुरुजी को जेल में बंदी बनाने जैसा पाप भी किया था किंतु इसके बाद उन्होंने गोलवलकर गुरुजी का अभिनंदन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को वर्ष 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में भाग लेने हेतु आमंत्रित भी किया था।


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वस्तुतः श्री गुरुजी के नेतृत्व काल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बढ़ती लोकप्रियता, स्वीकार्यता, मान्यता को देखकर नेहरूजी के हृदय में कुटिलता व डाह के भाव आने लगे थे। नेहरू जिस प्रकार की छुद्र, अंग्रेज-मुस्लिम परस्त राजनीति किया करते थे; श्रीगुरुजी उसके विरुद्ध थे।


नेहरू जी ने संघ व श्रीगुरुजी को अपनी सत्ता के प्रति आसन्न असुरक्षा के भाव से ग्रसित होकर ही गांधीजी की हत्या के बाद श्रीगुरुजी को गिरफ़्तार कर संघ को प्रतिबंधित किया था। गांधी जी की हत्या व हत्या के आरोप में संघ पर प्रतिबंध लगाना, आज भी एक उनसुलझा रहस्य ही है।


इस रहस्य का एक सूत्र गांधीजी की हत्या के ठीक एक दिन पूर्व के नेहरू के एक भाषण में भी है, जिसमें नेहरू ने संघ को कुचलने की बात कही थी। नेहरू जी का संघ को कुचलने वाला भाषण देना, चौबीस घंटे के भीतर गांधी जी की हत्या होना और संघ पर प्रतिबंध लगाकर श्रीगुरूजी को गिरफ़्तार कर लेना; एक अनसुलझी गुत्थी ही है।


गांधी जी की हत्या व इस संदर्भ में संघ पर प्रतिबंध, यह पहेली, क़ानूनी दृष्टि से असुलझी लग सकती है किंतु भीतरखाने के सच जानने वाले तत्कालीन राजनीतिज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता इस संदर्भ में दबी जबान बहुत कुछ कहा-सुना करते थे।


विकसित भारत की नेहरू की परिकल्पना पर श्रीगुरूजी काशक्तिशाली भारतकी योजना; कल्पक, अत्यंत भारी, परिणामकारी व युगांतरकारी है। श्री गुरुजी की यह योजना, नेहरू की अंग्रेज व मुस्लिम परस्त नीतियों पर बहुत भारी पड़ती हुई दिखने लगी थी।


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सार्वजनिक चौक-चौराहों, सड़क-संसद, मठ-मंदिर, व्यावसायिक परिसरों आदि सर्वत्र स्थानों पर श्री गुरुजी कीशक्तिशाली भारतकी योजना की चर्चा में भारतीय न केवल रुचि लेने लगे थे, अपितु, श्रीगुरूजी के प्रति भारतीयों में श्रद्धा का वातावरण बनता जा रहा था। यह सब तब था जबकि, श्रीगुरूजी का प्रत्यक्ष राजनीति से कोई सीधा संबंध नहीं था।


नेहरू जी को भय था कि, देश के आगामी प्रथम लोकसभा चुनाव में उनकी सर्वोच्चता को केवल तीन लोग चुनौती दे सकते थे; वे तीन व्यक्ति थेपहले श्री गुरुजी, गांधीजी व बाबासाहेब अंबेडकर जी। इन तीनों के प्रति नेहरूजी ने तरह-तरह की ज्ञात-अज्ञात दुरभिसंधियाँ की थीं।

श्रीगुरूजी के कृतित्व को नेहरू जी व भारत की समूची जनता ने, भारत-कश्मीर विलय में उनकी भूमिका से देख लिया था। प्रसिद्ध लेखक, संदीप बोमजाई, डिसइक्यिलीब्रियम : वेन गोलवलकर रेसक्यूड हरि सिंह में लिखते हैं, सरदार पटेल की पहल पर श्रीगुरूजी ने 18 अक्तूबर, 1947 को महाराजा हरि सिंह से भेंट की और विलय को संभव बनाया।


महाराजा हरिसिंह ने गोलवलकर जी से कहा, मेरा राज्य पूरी तरह से पाकिस्तान पर निर्भर है। कश्मीर से बाहर जाने वाले सभी रास्ते रावलपिंडी और सियालकोट से गुज़रते हैं। मेरा हवाई अड्डा लाहौर है। मैं भारत से किस तरह संबंध रख सकता हूँ।


श्री गुरुजी ने उनसे कहा, आप हिंदू राजा हैं। पाकिस्तान के साथ विलय के बाद आपकी हिंदू प्रजा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा। सही है कि आपका भारत के साथ इंफ़्रा विकसित नहीं है, किंतु इसे बनाया जा सकता है। आपके कश्मीर के हित में अच्छा यही होगा कि आप भारत के साथ अपने राज्य का विलय कर लें।


आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर में जो इंफ़्रास्ट्रक्चर निर्मित कर रहे हैं, वह श्री गुरुजी के इन विचारों का क्रियान्वयन ही है। अरुण भटनागर की पुस्तक, इंडिया: शेडिंग द पास्ट, एम्ब्रेसिंग द फ्यूचर, 1906-2017” में भी श्रीगुरुजी की कश्मीर विलय में भूमिका, का उल्लेख है।

स्वातंत्र्योत्तर भारत में श्रीगुरुजी कीशक्तिशाली भारतकी अवधाणा से लोग ऐसे प्रभावित होने लगे थे कि उनके प्रति श्रद्धा का ज्वार उमड़ने लगा था। 1965 केभारत चीन युद्धमें भी, प्रधानमंत्री शास्त्रीजी ने, श्रीगुरुजी से नीतिगत व सामरिक विषयों पर परामर्श करके निर्णय लिए थे। जनप्रिय प्रधानमंत्री अटलजी तो श्रीगुरूजी के समकक्ष कभी कुर्सी पर नहीं बैठते थे व नीचे ही स्थान ग्रहण करते थे।

गोवा के भारत विलय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका उनकीशक्तिशाली भारत की अवधारणाका ही परिणाम था। गोवा मुक्ति आंदोलन में उस समय कांग्रेस सरकार की भूमिका राष्ट्रहित की पीठ में ही छुरा घोंपने वाली थी।


गुरुजी ने तब कहा था, गोवा में पुलिस कार्रवाई करने और गोवा को मुक्त कराने का इससे ज्यादा अच्छा अवसर कोई नहीं आएगा। भारत सरकार ने गोवा मुक्ति आन्दोलन का साथ न देने की घोषणा करके मुक्ति आन्दोलन की पीठ में छुरा मारा है। भारत सरकार को चाहिए कि भारतीय नागरिकों पर हुए इस अमानुषिक गोलीबारी का प्रत्युत्तर दे और मातृभूमि का जो भाग अभी तक विदेशियों की दासता में सड़ रहा है, उसे अविलम्ब मुक्त करने के उपाय करे।


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व वामपंथियों में मूलतः वैचारिक मतभेद है व कम्युनिस्ट स्वभावतः ही संघ को पानी पी-पी कर कोसते रहे हैं। श्रीगुरूजी अपनीशक्तिशाली भारतकी अवधारणा के प्रति इतने समर्पित थे कि वे कम्युनिस्ट्स के प्रति भी राष्ट्रहित में समन्वय की दृष्टि रखते थे।


श्रीगुरूजी कार्ल मार्क्स के प्रति कहा करते थे कि, भारतीय कम्युनिस्ट्स ने कार्ल मार्क्स के साथ अन्याय किया है। मार्क्स केवल भौतिकतावादी नहीं थे, वे नीतिशास्त्र में भी विश्वास रखते थे। श्रीगुरुजी मानते थे कि, कार्ल मार्क्स कोक्रूड मटेरियलिस्टिकमानना भारतीय कम्यूनिस्टों की बड़ी भारी गलती है।"

श्रीगुरूजीशक्तिशाली भारतके अपने विचार के क्रियान्वयन हेतु सभी वैचारिक पद्धतियों के सत्व-सार को खोजते व उससे समन्वय बनाते दिखते थे।


लेख


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डॉ. प्रवीण गुगनानी

विदेश मंत्रालय, भारत सरकार में सलाहकार, राजभाषा

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