कम्युनिज़्म की विचारधारा हमेशा से लोकतंत्र की विरोधी रही है। यही कारण है कि भारत में जब भी चुनाव आते हैं तो जंगल में बैठे कम्युनिस्ट आतंकी हो या शहरों में 'छात्र संगठन' का मुखौटा लगाए बैठे 'अर्बन नक्सली' हो, वो सभी लोकतांत्रिक चुनाव के बहिष्कार की बात करते हैं।
कुछ यही बस्तर में भी देखा जा रहा है। बस्तर में तो माओवादी पंचायत चुनाव के बीच ग्रामीणों को चुनाव से दूर रखने के लिए आम जनजाति ग्रामीणों हत्याएं भी कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ जिले दंतेवाड़ा और बीजापुर की सीमा से लगे एक गांव में नक्सल आतंकियों ने बुधवार (19 फरवरी, 2025) 2 जनजातीय ग्रामीणों की हत्या कर दी।
मिली जानकारी के अनुसार बारसूर थाना क्षेत्र के भैरमगढ़ ब्लॉक के भीतर स्थित तोड़मा गांव में पंचायत चुनाव के ठीक एक दिन पहले नक्सल आतंकियों ने दो जनजातीय ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया।
स्थानीय ग्रामीणों से मिली जानकारी के अनुसार बुधवार (19 फरवरी, 2025) की देर रात नक्सली दोनों ग्रामीणों के घर पहुँचे थे। घर में घुसते ही नक्सल आतंकियों ने दोनों को अपने कब्जे में लिया और जंगल में ले जाकर उनकी हत्या कर दी। आम जनजाति ग्रामीणों की हत्या के बाद उनके शव को गांव के समीप लाकर फेंक दिया गया।
ऐसा कहा गया कि नक्सलियों ने इन ग्रामीणों को पुलिस मुखबिर बताकर मारा है। लेकिन प्रश्न यह है कि सुदूर जंगलों के भीतर जनजाति बच्चों को शिक्षा देने वाले एक जनजाति शिक्षादूत को केवल इसलिए मार देना उचित है कि उस पर 'पुलिस मुखबिरी' का शक है ?
मुखबिरी का झूठा आरोप लगाकर करते हैं हत्या - शीर्ष नक्सल आतंकी
12 वर्ष पहले ओडिशा के शीर्ष नक्सली सब्यासाची पंडा ने एक पत्र लिखकर यह बताया था कि माओवादी आम ग्रामीणों की बेवजह हत्या करते हैं। उसने खुद कहा था कि वह स्वयं ऐसी हत्याओं का साक्षी रहा है, जो बेवजह की गई है, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी। उसका कहना था कि माओवादी आतंकी संगठन आम ग्रामीणों की हत्या कर उन पर "पुलिस मुखबिरी" का आरोप लगा देता है, जो हर बार सही नहीं होता।
15 दिन पूर्व सरपंच प्रत्याशी समेत 4 ग्रामीणों की हत्या की गई
नक्सली आतंकियों ने दंतेवाड़ा जिले के अंतर्गत आने वाले अरनपुर पंचायत में 15 दिन पूर्व एक जनजाति नेता जोगा बरसे की हत्या कर दी थी, जो गाँव में सरपंच प्रत्याशी था। जोगा बरसे गांव के सरपंच पारा का निवासी था और घटना की रात वह अपने घर पर ही मौजूद था, जब कम्युनिस्ट आतंकियों ने इस घटना को अंजाम दिया। देर रात बड़ी संख्या में नक्सलियों ने देवा के घर में धमक दी, जिसके बाद परिजनों के सामने ही गला रेतकर जोगा की हत्या कर दी।
नक्सलियों ने जोगा बरसे को केवल इसलिए मार दिया क्योंकि वो भारत के लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा ले रहा था, अर्थात चुनाव में प्रत्याशी के रूप में खड़ा था। नक्सलियों ने क्षेत्र में चेतावनी दी थी कि चुनाव का विरोध किया जाएगा, लेकिन जोगा बरसे जैसे जनजाति ग्रामीण भारत की लोकतंत्र में आस्था रखते थे, ना कि कम्युनिस्ट तंत्र पर, इसीलिए उन्होंने चुनाव लड़ने का फैसला किया। इस दौरान 4 दिनों में नक्सल आतंकियों ने दंतेवाड़ा-बीजापुर में 4 जनजातीय ग्रामीणों की हत्या की थी।
24 वर्षों में 1800 से अधिक ग्रामीण मारे गए
छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद से नक्सलियों ने बस्तर क्षेत्र में एक के बाद एक आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया है। एक ओर जहां वो ग्रामीणों के हितों की रक्षा की 'झूठी' बातें करते हैं, वहीं सच्चाई यह है कि इस दौरान उन्होंने 1800 से अधिक बस्तरवासियों की हत्याएं की है, जिसमें अधिकांश जनजाति समाज से ही हैं। इन हत्याओं के दौरान माओवादियों ने किसी को पुलिस मुखबिर तो किसी को गद्दार बताकर जान से मार दिया है।