माओवादियों का आतंक बस्तर क्षेत्र में कैसा है, यदि ये आपको देखना है तो कभी किसी बस्तरवासी से ही कहिएगा कि जगरगुंडा जाना है। इसकी संभावना सबसे अधिक है कि बस्तर के शहरी क्षेत्र में रहने वाला वो व्यक्ति जगरगुंडा जाने के नाम से ही दूरी बना लेगा। कमोबेश यही स्थिति थी आज से 10 वर्ष पहले तक, और हम 10 वर्ष क्यों कहे, केवल 5 वर्ष पहले तक भी इस क्षेत्र के लिए यही स्थिति बनी हुई थी।
दरअसल जगरगुंडा वह क्षेत्र है, जिसे माओवादियों की उप-राजधानी कहा जाता रहा है, जहां पापाराव, हिड़मा, देवा, जगदीश, विनोद जैसे शीर्ष माओवादियों का वर्चस्व रहा। स्थिति ऐसी हो गई कि इस पूरे क्षेत्र में माओवादी आतंकियों का शासन स्थापित हो गया, एक समानांतर शासन। माओवादी आतंकियों का अपना राज, अपना स्कूल, अपनी अदालत और आतंक का साया।
दरअसल सुकमा जिले के अंदर आने वाला जगरगुंडा बीजापुर, दंतेवाड़ा और सुकमा जिले सीमा पर स्थित एक गांव है, जो दो दशकों से 'किलेबंदी' में जी रहा है। इस किलेबंदी के बाहर समीप में एक गांव है करकनगुड़ा, जो सुरपनगुड़ा ग्राम पंचायत के भीतर आता है।
इस गांव में सितंबर 2024 में सुरक्षा बलों और माओवादियों के बीच मुठभेड़ हुई थी। मुठभेड़ में फोर्स को भारी पड़ता देख, माओवादी भाग निकले थे। लेकिन इस मुठभेड़ में दो माओवादी मारे गए थे। माओवादियों के मारे जाने के बाद, उनके ठिकाने से फोर्स ने बड़ी संख्या में हथियार एवं अन्य सामान बरामद किए थे।
फोर्स को ये सफलता इस क्षेत्र में एक के बाद एक नए कैंप स्थापित करने के कारण मिली थी, क्योंकि इस क्षेत्र के आसपास लगभग 8 कैंप स्थापित किए गए हैं, जो जगरगुंडा को माओवादियों के कब्जे से मुक्त कराने का काम कर रहे हैं।
इस बीच सितंबर में हुए मुठभेड़ के बाद जब फोर्स की टीम दोबारा इस क्षेत्र में सर्च अभियान के लिए आई तब उन्हें कुछ ऐसा मिला जो माओवादियों की प्रोपेगेंडा मशीनरी को भी उजागर कर रहा था।
जैसा कि हम इस बात का उल्लेख किया ही कि जगरगुंडा के इस पूरे क्षेत्र से माओवादियों ने शासकीय तंत्र को पीछे धकेल दिया था, तो इसका परिणाम यह हुआ कि यहां माओवादियों का तंत्र चलने लगा।
यहाँ स्कूल भी माओवादियों के लगाए जाते थे, जहां माओवादी विचार की शिक्षा दी जाती थी और फोर्स ने अपने अभियान के दौरान उसी माओवादी स्कूल में पढ़ाए जाने वाली कुछ पुस्तकों को बरामद किया था, जो माओवादी प्रोपेगेंडा मशीनरी का हिस्सा थे।
यहां से बरामद एक पुस्तक पर विषय लिखा हुआ था 'सामाजिक विज्ञान', जो कक्षा 5वीं के लिए लिखी गई थी। वर्ष 2019 का यह अंक माओवादी आतंकी संगठन के 'दंडकारण्य विद्या विभाग' द्वारा प्रकाशित किया गया था।
सामाजिक विज्ञान की इस पुस्तक के पाठ्यक्रम में कई ऐसे अध्याय दिखे जो स्पष्ट रूप से माओवादी आतंकियों के विचारों का प्रचार-प्रसार करने हेतु बनाये गए थे। गोंडी बोली में लिखे गए इस पुस्तक के कुछ अध्यायों का नाम है 'डोंगी आजादी दिवस', 'नक्सलबाड़ी किसान संघर्ष', मनवा क्रांतिकारी जनताना सरकार', 'छत्तीसगढ़ ता वीर सपूत' आदि।
इन शीर्षकों को देखकर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि बस्तर के सघन वन्य क्षेत्रों के भीतर माओवादियों के प्रभावी क्षेत्रों में स्थानीय जनजातीय बच्चों को क्या पढ़ाया जा रहा है।
बच्चों के बालमन में ही 'माओवादी क्रांतिकारी हैं', 'नक्सलवाद क्रांति है', 'शासन-प्रशासन दुश्मन है' और तो और 'पुलिस असली शत्रु है वहीं नक्सली उनकी सुरक्षा करते हैं', जैसे भाव डाले जा रहे हैं।
उपरोक्त अध्याय तो 5वीं कक्षा के सामाजिक विज्ञान की पुस्तक में डाले गए, लेकिन माओवादियों के उस स्कूल से एक पत्रिका भी बरामद हुई, जिसका नाम है 'झंकार'। माओवादियों का फ्रंटल संगठन 'दंडकारण्य चेतना नाट्य मंच' द्वारा प्रकाशित इस पत्रिका में विभिन्न विषय देखें जा सकते हैं, जो माओवादी विचारधारा को प्रचारित करते हैं।
विषय सूची के क्रमांक 2 का शीर्षक है 'सूरता', अर्थात याद करना, स्मरण करना। इस चैप्टर में माओवादियों ने खूंखार माओवादी आतंकी 'विजय' का ज़िक्र किया है, जिसका 'दंडकारण्य संघर्ष' से पुराना नाता भी बताया गया है।
लेकिन अब स्थितियां बदल रही है। जैसे कि हम जानते हैं कि जवानों ने इन क्षेत्रों में 8 कैंप स्थापित किए हैं, जिसके चलते अब यहां तक सड़क, पानी और बिजली पहुंच रही है। कैम्पों के आने से शिक्षा, चिकित्सा और बुनियादी सुविधाएं भी आ रही हैं। शासन के नियद नेल्लानार (आपका अच्छा गांव) योजना के कारण अब गांव के बच्चे माओवादी विचार से मुक्त होने की राह पर हैं।
दरअसल नियद नेल्लानार एक ऐसी योजना है जिसके तहत माओवादी आतंक से प्रभावित सुरक्षा कैंप के 5 किलोमीटर की परिधि के गांवों में 25 से अधिक सुविधाएं दी जा रही हैं। अनाज, चिकित्सा, शिक्षा, सामुदायिक भवन, आंगनबाड़ी भवन, कौशल विकास, वनाधिकार पट्टा, मोबाइल टॉवर, बिजली समेत तमाम ऐसी सुविधाएं दी जा रही हैं, जिनसे स्थानीय जनजातियों का सीधा जुड़ाव मुख्यधारा से हो रहा है।
माओवादियों के पैशाचिक विचार से आतंकित ग्रामीणों ने भी शासन की योजनाओं को दोनों हाथों से स्वीकार किया है, यही कारण है कि अब इन क्षेत्रों में लगे कैम्प को लेकर ग्रामीणों में भी कोई विरोध नहीं है, बल्कि ग्रामीण अब उत्साह के साथ इनका उपयोग कर रहे हैं।
हालांकि यह समझना आवश्यक है कि कम्युनिस्ट आतंकियों के इस माओवादी विचार ने बस्तर के भीतर स्थित एक बड़े व्यापारिक केंद्र को किस तरह से उजाड़ कर रख दिया था। हिंसा और आतंक के साये में ग्रामीणों को जीने के लिए मजबूर होना पड़ा था और तो और बच्चों का भविष्य अंधकार में डालकर उन्हें माओवादी विचार के अनुरूप ढाला जा रहा था, ताकि उनका उपयोग माओवादी संगठन में किया जा सके।
ये सब वही माओवादी कर रहे थे, जो जल, जंगल, जमीन को बचाकर स्थानीय जनजातियों को अधिकार दिलाने की लड़ाई लड़ने का दावा करते हैं।