नक्सलवाद की सच्चाई : नग्न नहाने को मजबूर महिला नक्सली, ग्रामीणों की मुखबिर बताकर हत्या और जनजाति संस्कृति को किया नष्ट

08 Feb 2025 16:27:48

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कम्युनिस्ट आतंकियों अर्थात नक्सलियों
-माओवादियों का वैचारिक पक्ष लेने वाले एवं सामान्य तौर पर इनके लिए आम राय बनाने वाले कुछ चुनिंदा कथन कहते हैं कि -


नक्सली तो जल-जंगल-जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं

नक्सलियों को स्थानीय जनजतियों का समर्थन है

नक्सलियों में समानता का भाव है, वो ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं करते

नक्सली संगठन में महिलाओं के साथ समानता का व्यवहार किया जाता है

नक्सली डेमोक्रेसी को मानते हैं

नक्सली आम जनता को कुछ नहीं करते

नक्सली पुलिस को भी बेवजह नहीं मारते, और

नक्सली क्रांतिकारी हैं, जैसे कई और भी


लेकिन क्या इन दावों को लेकर आपने कभी सच्चाई तलाशने की कोशिश की है ? क्या नक्सली सच में इतने उत्तम विचार के साथ बंदूक लिए हुए हैं ? नक्सली सच में महिला समानता का भाव रखते हैं ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर हमें नक्सली संगठन के शीर्ष माओवादी आतंकी से बेहतर कोई नहीं बता सकता, जिसका नाम है सब्यसाची पंडा।


सब्यसाची पंडा माओवादी आतंकी संगठन की ओडिशा इकाई का शीर्ष माओवादी था, जिसे 12 वर्ष पहले माओवादी आतंकी संगठन से इसलिए निकाल दिया गया क्योंकि उसने दो पत्र लिखकर पूरे नक्सल संगठन का कच्चा-चिट्ठा उजागर किया था। सब्यसाची पंडा इनामी माओवादी था जिसने माओवादी आतंकी संगठन तत्कालीन महासचिव मुप्पला लक्ष्मण राव उर्फ गणपति समेत कुछ पोलित ब्यूरो सदस्यों को पत्र लिखा था। चलिए पढ़ते हैं पत्र में क्या था।


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सब्यसाची पंडा ने लिखा कि "संगठन में (सीपीआई - माओवादी) सामान्यतः कोई लोकतंत्र नहीं है, जिसके तहत हम अपनी राजनीतिक आवाज़ को रख सके या लिख सके। वहीं लंबे समय से चली आ रही समस्याओं पर भी कोई समाधान होने की कोई उम्मीद नहीं है।"


नक्सलियों द्वारा मोबाइल टॉवर जैसे मूलभूत सुविधाओं, ढांचों को तोड़ने, नष्ट करने के मामले पर भी इस पत्र में लिखा गया कि "आज जब सभी के हाथ में मोबाइल फोन है, तब हम रोज मोबाइल टॉवरों को नष्ट कर लोगों का विश्वास नहीं जीत सकते हैं।"


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वहीं लोगों की हत्याओं पर लिखते हुए सब्यसाची ने कहा कि "वर्ष 2000 से अभी तक (2012 तक) मैं स्वयं कई ऐसी हत्याओं का साक्षी रहा हूँ, जिसकी आवश्यकता ही नहीं थी। हम (सीपीआई - माओवादी) किसी को भी 'मुखबिर' बताकर बिना की जवाबदारी के उसकी हत्या कर देते हैं, जैसे यह हमारा क्रांतिकारी जन्मसिद्ध अधिकार हो।"


“यह कथन ही इस बात की पुष्टि करता है कि नक्सली-माओवादी किस तरह आम ग्रामीणों को 'पुलिस मुखबिर' बताकर मार दिया जाता है। इस विषय को लेकर मुख्यधारा की मीडिया हो या तथाकथित बुद्धिजीवी समूह हो, इनमें कभी यह चर्चा नहीं होती कि आम ग्रामीणों को जिस तरह से मुखबिर बताकर माओवादी मार रहे हैं, वह कैसा विचार है ? केवल बस्तर क्षेत्र में ही नक्सलियों ने बीते 24 वर्षों में 1800 लोगों की हत्या की है।”

 


सब्यसाची पंडा के पत्र में बीजू जनता दल के विधायक जगबंधु मांझी की हत्या को लेकर भी कहा गया कि "जगबंधु मांझी को वर्ष 2011 में छत्तीसगढ़ के कॉमरेड्स ने मारा था। वह व्यक्ति विकलांग था और व्हीलचेयर में चलता था। उसे हमारे लोगों (सीपीआई - माओवादी) ने बीते दो वर्षों से धमकी दी थी। भय के कारण उसने मुझसे संपर्क किया और सरेंडर करने की बात भी कही। लेकिन उसे मार दिया गया।"

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आगे लिखा गया है कि "जैसे ही पीपल्स वॉर ग्रुप (PWG) और माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर (MCC) का विलय होकर सीपीआई - माओवादी बना, वैसे ही एमसीसी के नक्सलियों ने ओडिशा के जुजुमारा में 5 से 6 ग्रामीणों की हत्या कर दी। और हत्या के बाद हमेशा की तरह 'मुखबिरी' वाला कारण बताया गया।"

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सब्यासाची पंडा ने आगे अपने पत्र में लिखा कि "वर्ष 2009 में जब पोलित ब्यूरो सदस्य बसवराज ने हमारे क्षेत्र का दौरा किया तब उसने दूसरे पोलित ब्यूरो सदस्य से कहा कि 'वह कुछ नहीं कर रहा है, एक भी पुलिसकर्मी को नहीं मार रहा है, सिर्फ बयानबाजी कर रहा है'"


इस पर सब्यासाची लिखता है कि "क्या हमारे लिए (नक्सलियों के लिए) पुलिस को मारना की एकमात्र काम है ? हाँ, हमें शोषण के विरुद्ध लड़ना है, लेकिन आपकी जनजाति क्षेत्रों में नई लोकतांत्रिक सरकार के तहत क्या नीतियां हैं ? आपकी जनताना सरकार ने ही 'ट्राइबल ऑटोनॉमी' है और ना ही जनजाति परंपराओं द्वारा चलने वाली सरकार है। आप अपने स्वार्थ में जनजाति परंपराओं-संस्कृति को नष्ट कर रहे हो। आपके कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा को लेकर कोई वैकल्पिक नीतियां नहीं हैं।"


नक्सलवादी आतंकी संगठन के भीतर डेमोक्रेसी अर्थात लोकतंत्र की सच्चाई बताते हुए सब्यासाची पंडा ने लिखा कि "संगठन में (सीपीआई - माओवादी) में नीति है कि विरोधी आवाज़ को, चाहे वो संगठन के भीतर हो या बाहर समाज से हो, बलपूर्वक दबा दिया जाए या खत्म कर दिया जाए। एक बैठक में बसधारा और घुमसार डिविजनल कमेटीई की बैठक में सेंट्रल कमेटी सदस्य भास्कर उर्फ बालकृष्ण ने चलपति की मौजूदगी में कहा था कि 'कम्युनिस्ट पार्टी में, पार्टी सदस्य की गलती पर हम उन्हें सस्पेंड कर सकते हैं, बाहर निकाल सकते हैं या मारने की सजा भी दे सकते हैं। इस क्रांति के दौरान कई बार निर्दोष लोग भी मारे जा सकते हैं।'"


आगे जो सब्यासाची पंडा ने लिखा वह नक्सल आतंकी संगठन के भीतर की ऐसी सच्चाई को सामने लाता है, जो ना सिर्फ घिनौनी है, बल्कि कम्युनिस्ट विचार की वास्तविकता भी है। सब्यासाची लिखते हैं कि "यह अब सामान्य नियम हो चुका है कि लड़कियां अपने निजी अंगों को 'शेव' कर रखेंगी और नहाने के स्थान पर सभी (लड़के और लड़कियां) कपड़े उतारकर नग्न अवस्था में सामूहिक नहाएंगे।"


“सब्यासाची पूछते हैं कि "क्रांति का ऐसी चीजों से क्या लेना-देना है ?" सब्यासाची की तरह यह प्रश्न हम सभी के मन में भी आना चाहिए कि आखिर ये कम्युनिस्ट विचारक और आतंकी महिला कैडर के साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं ? क्यों वो चाहते हैं कि महिला कैडर अपने प्राइवेट पार्ट को शेव कर के रखे ? क्यों वो महिला कैडर को नग्न अवस्था में सभी के सामने नहाने के लिए नियम बना रहे हैं ?”

 


सब्यासाची पंडा के लिखे हुए पत्र हमें नक्सली-माओवादी आतंकी संगठन के भीतर होने वाले उन सभी कुकर्मों की सच्चाई बताता है, जो शहरों में बैठे कम्युनिस्ट बुद्धिजीवी कभी आम जनता के सामने आने नहीं देते।


यह पत्र 12 वर्ष पुराना है, लेकिन इसमें लिखी बातें स्वयं एक ऐसी नक्सली ने लिखी है, जो माओवादी आतंकी संगठन के "शीर्ष" नेतृत्व में शामिल रहा है। ऐसे में हम समझ सकते हैं कि वामपंथी विचारधारा के ये पैरोकार ना ही जनजातियों के हितैषी हैं, ना इनमें ग्रामीणों को लेकर कोई संवेदना है, ना ही माओवादी संगठन में लोकतंत्र है और तो और महिलाओं के प्रति इनका रवैया 'तालिबानी आतंकी' की तरह ही है।

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