रायपुर, 12 मार्च 2025 [द नैरेटिव वर्ल्ड]: कल, 11 मार्च 2025 को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में एक भयानक घटना ने दुनिया का ध्यान आकर्षित किया।
बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के सशस्त्र विद्रोहियों ने जफ्फर एक्सप्रेस ट्रेन को अपहृत कर लिया, जिसमें 400 से अधिक यात्री सवार थे।
यह ट्रेन क्वेटा से पेशावर जा रही थी, जब इसे बोलन जिले के पहाड़ी इलाके में सुरंग नंबर 8 के पास रोक दिया गया।
इस हमले में कम से कम 10 लोग मारे गए, जिसमें 9 सुरक्षाकर्मी और ट्रेन का ड्राइवर शामिल थे।
बीएलए ने दावा किया कि उसने 214 लोगों को बंधक बनाया, जिसमें सैन्य कर्मी भी शामिल थे, और 30 से अधिक सैनिकों को मार डाला।
इस घटना ने एक बार फिर बलूचिस्तान में बढ़ते तनाव और अस्थिरता को उजागर किया है, जिसके लिए चीन और पाकिस्तान की नीतियां सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं।
घटना का विवरण
जफ्फर एक्सप्रेस सुबह 9 बजे क्वेटा से रवाना हुई थी और दोपहर करीब 1 बजे बोलन पास के पास हमले का शिकार हुई।
बीएलए ने रेलवे ट्रैक को विस्फोट से उड़ा दिया, जिसके बाद सशस्त्र हमलावरों ने ट्रेन पर गोलीबारी शुरू कर दी। ट्रेन में सवार सैकड़ों यात्रियों में अफरा-तफरी मच गई।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, लोग सीटों के नीचे छिप गए, जबकि हमलावरों ने पुरुषों को महिलाओं और बच्चों से अलग कर दिया।
बीएलए ने दावा किया कि उसने महिलाओं, बच्चों और बलूच यात्रियों को रिहा कर दिया, लेकिन सैन्य कर्मियों को बंधक बनाए रखा।
पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई शुरू की, जिसमें अब तक 155 यात्रियों को बचाया जा चुका है और 27 आतंकवादी मारे गए हैं। हालांकि, ऑपरेशन अभी भी जारी है, और कई बंधक अभी भी खतरे में हैं।
चीन और पाकिस्तान की भूमिका
बलूचिस्तान में यह हिंसा कोई नई बात नहीं है। यह प्रांत, जो प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है, लंबे समय से बलूच अलगाववादियों और पाकिस्तानी सरकार के बीच संघर्ष का केंद्र रहा है।
लेकिन हाल के वर्षों में, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) परियोजना ने इस संघर्ष को और भड़का दिया है।
62 अरब डॉलर की यह परियोजना बलूचिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को केंद्र में रखकर बनाई गई है, जिसे चीन अपने बेल्ट एंड रोड पहल का हिस्सा मानता है।
बलूच लोग इसे अपनी जमीन और संसाधनों का शोषण मानते हैं, जिसमें उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं है।
चीन और पाकिस्तान दोनों ने इस क्षेत्र को अपने आर्थिक हितों के लिए इस्तेमाल किया है, लेकिन स्थानीय लोगों के लिए कुछ नहीं किया।
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, लेकिन यह सबसे गरीब और अविकसित भी है। यहाँ के लोग दशकों से अपने संसाधनों, जैसे तांबा, सोना और गैस के शोषण की शिकायत करते रहे हैं।
बीएलए का कहना है कि ये संसाधन बलूच लोगों के हैं, न कि "पाकिस्तानी सैन्य जनरलों और पंजाबी अभिजात वर्ग" के, जो इनका इस्तेमाल अपनी विलासिता के लिए करते हैं।
चीन की मौजूदगी ने इस आक्रोश को और बढ़ाया है, क्योंकि बलूच विद्रोही सीपीईसी परियोजनाओं और चीनी इंजीनियरों पर बार-बार हमले करते रहे हैं।
गलत नीतियों का परिणाम
पाकिस्तान की सैन्य नीति और चीन की आर्थिक लालच ने बलूचिस्तान को अशांति के भँवर में धकेल दिया है।
पाकिस्तान ने इस क्षेत्र में सैन्य दमन को बढ़ावा दिया है, जिसमें हजारों बलूच लोग लापता हो गए हैं या मारे गए हैं।
दूसरी ओर, चीन ने अपनी परियोजनाओं के लिए सुरक्षा की मांग तो की, लेकिन स्थानीय लोगों के हितों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया।
बीएलए ने विदेशी निवेशकों को चेतावनी दी है कि वे "बलूचिस्तान के संसाधनों के शोषण" में भाग न लें, लेकिन चीन ने इसे अनसुना कर दिया।
नतीजा यह है कि बलूच विद्रोहियों ने अपनी लड़ाई को और तेज कर दिया है।
इस ट्रेन अपहरण ने दिखाया कि बलूच लोग अब और बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं।
“बीएलए ने सरकार को 48 घंटे का अल्टीमेटम दिया है कि वह बलूच राजनीतिक कैदियों को रिहा करे, वरना सभी बंधकों को मार दिया जाएगा।”
यह एक चेतावनी है कि यदि चीन और पाकिस्तान अपनी नीतियों में बदलाव नहीं लाते, तो हिंसा और अस्थिरता बढ़ेगी।
निष्कर्ष
बलूचिस्तान में कल की घटना एक मानवीय त्रासदी से कहीं बढ़कर है! यह चीन और पाकिस्तान की गलत नीतियों का स्पष्ट प्रमाण है।
दोनों देशों ने बलूच लोगों के अधिकारों और उनकी जमीन को नजरअंदाज कर अपने स्वार्थ साधे हैं।
इस हिंसा को रोकने के लिए जरूरी है कि पाकिस्तान सैन्य दमन बंद करे और चीन अपनी शोषणकारी परियोजनाओं पर पुनर्विचार करे।
जब तक बलूच लोगों को उनका हक नहीं मिलेगा, तब तक शांति की उम्मीद करना बेकार है।
यह घटना चीन और पाकिस्तान के लिए एक सबक है कि आर्थिक लाभ के लिए लोगों की भावनाओं को कुचलना कितना खतरनाक हो सकता है।