कम्युनिस्ट चीनी सरकार एक बार फिर अपनी गंदी चालों के लिए चर्चा में है।
हाल ही में अमेरिकी कांग्रेस ने स्टैनफोर्ड और कार्नेगी मेलन जैसे शीर्ष विश्वविद्यालयों को पत्र भेजा।
इसमें आरोप लगाया गया कि चीनी सरकार इन संस्थानों में शोधकर्ताओं को घुसाकर संवेदनशील तकनीकों तक पहुंच बना रही है।
यह कोई नई बात नहीं है, चीन लंबे समय से ऐसी हरकतों में लिप्त है। इसका मकसद साफ है - अमेरिका की उन्नत तकनीक चुराकर अपनी सैन्य और आर्थिक ताकत बढ़ाना।
चीन की यह चालबाजी विश्वासघात का खुला सबूत है। पत्र में कहा गया कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने व्यवस्थित तरीके से जासूस तैयार किए।
ये जासूस अमेरिकी विश्वविद्यालयों में छात्र या शोधकर्ता बनकर घुसते हैं। इनका लक्ष्य दोहरे उपयोग वाली सैन्य तकनीकों को चुराना है।
यह अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है। चीनी सरकार की यह नीति बेहद शर्मनाक और निंदनीय है।
पिछले कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं। 2019 में चीनी हैकर्स ने अमेरिकी विश्वविद्यालयों से समुद्री तकनीक चुराई।यह तकनीक सैन्य उपयोग के लिए थी।
इसी तरह, जनरल इलेक्ट्रिक की जेट इंजन तकनीक भी चीनी हैकर्स ने चुरा ली।
ये घटनाएं दिखाती हैं कि चीन कितना बेशर्मी से बौद्धिक संपदा की चोरी करता है। उसकी नीयत साफ है - दूसरों की मेहनत का फायदा उठाना।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने सफाई देने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि चीनी छात्र अमेरिका की अर्थव्यवस्था और तकनीक में योगदान देते हैं। लेकिन यह दावा हास्यास्पद है।
सच यह है कि ये छात्र अक्सर जासूसी के लिए इस्तेमाल होते हैं। चीनी सरकार उन्हें निर्देश देती है कि संवेदनशील जानकारी कैसे हासिल करनी है।
2021 में चार चीनी नागरिकों पर अमेरिका में हैकिंग का आरोप लगा। इन्होंने विश्वविद्यालयों और कंपनियों से गोपनीय डेटा चुराया।
यह डेटा चीन की सरकार और कंपनियों के लिए था। इसमें स्वायत्त वाहनों और रासायनिक सूत्रों की जानकारी शामिल थी।
चीनी सरकार ने इसे छिपाने के लिए फर्जी कंपनी तक बनाई। यह दिखाता है कि चीन कितना धोखेबाज है।
मिशिगन विश्वविद्यालय का मामला भी चौंकाने वाला है। वहां पांच चीनी छात्रों पर सैन्य ठिकाने के पास संदिग्ध गतिविधियों का आरोप लगा।
इसके बाद विश्वविद्यालय ने शंघाई जिओ तोंग यूनिवर्सिटी से संबंध तोड़ लिया।
यह घटना चीनी छात्रों की जासूसी का जीता-जागता सबूत है। चीनी सरकार की ऐसी हरकतें बेहद खतरनाक हैं।
अमेरिकी सांसद जॉन मूलनार ने चेतावनी दी कि यह रुझान अमेरिकी प्रतिभा को नुकसान पहुंचाएगा।
चीनी सरकार का यह "ट्रोजन हॉर्स" तरीका शर्मनाक है। वह छात्र वीजा का दुरुपयोग कर अमेरिकी संस्थानों में सेंध लगाती है।
इससे अनुसंधान की अखंडता खतरे में पड़ रही है। चीन का यह लालच उसकी नीचता को उजागर करता है।
2018 में शुरू हुई "चाइना इनिशिएटिव" ने कई चीनी जासूसों को बेनकाब किया।
हार्वर्ड के प्रोफेसर चार्ल्स लीबर पर चीनी संबंध छिपाने का आरोप लगा। उन्होंने चीनी विश्वविद्यालयों से फंड लिया और इसे छिपाया।
यह दिखाता है कि चीन कैसे प्रतिष्ठित लोगों को भी अपने जाल में फंसाता है। उसकी यह चालाकी घिनौनी है।
चीनी सरकार की हरकतें सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं हैं। 2019 में उसने इजरायली रक्षा कंपनियों को निशाना बनाया।
ये कंपनियां अमेरिका से जुड़ी थीं। चीनी हैकर्स ने वहां से भी तकनीक चुराई। यह वैश्विक स्तर पर उसकी चोरी की मानसिकता को दर्शाता है।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों से चीनी छात्रों पर डेटा मांगा गया है। इसमें उनकी फंडिंग, शोध और पिछले स्कूलों की जानकारी शामिल है।
“यह कदम जरूरी है क्योंकि चीन की साजिश गहरी है। वह छात्रों को हथियार बनाकर अमेरिका की कमजोरी का फायदा उठाना चाहता है।”
चीनी सरकार का यह रवैया उसकी विस्तारवादी सोच को दिखाता है। वह दूसरों की मेहनत चुराकर खुद को शक्तिशाली बनाना चाहता है।
अमेरिका को सख्त कदम उठाने चाहिए। चीनी छात्रों पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है। नहीं तो यह चोरी और जासूसी का सिलसिला जारी रहेगा।
अंत में, चीनी सरकार की यह नीति उसकी असली मंशा को उजागर करती है। वह सहयोग के नाम पर विश्वासघात करती है।
यह समय है कि चीन की नापाक हरकतों का पर्दाफाश हो। उसकी साजिशें शर्मनाक और खतरनाक हैं।