गुआंग्शी नरसंहार, चीन के इतिहास का एक भयावह और शर्मनाक अध्याय है।
यह 1967-68 में सांस्कृतिक क्रांति के दौरान हुआ, जब हिंसा चरम पर पहुंच गई।
लाखों लोग मारे गए, और कम्युनिस्ट पार्टी की क्रूर नीतियों ने इसे भड़काया।
इस
नरसंहार में नरभक्षण तक की घटनाएं हुईं, जो मानवता को झकझोर देती हैं।
माओ ज़ेडॉन्ग ने 1966 में सांस्कृतिक क्रांति शुरू की, ताकि अपनी सत्ता मजबूत करें।
उन्होंने "बुर्जुआ" तत्वों को खत्म करने का आदेश दिया, जिससे अराजकता फैल गई।
गुआंग्शी प्रांत में दो गुट बने: "यूनाइटेड हेडक्वार्टर" और "4.22"।
इन गुटों के बीच हिंसक संघर्ष ने पूरे क्षेत्र को खून से लाल कर दिया।
आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि 1,00,000 से 1,50,000 लोग मारे गए।
हत्याओं के तरीके भयानक थे—सिर काटना, जिंदा दफनाना, पत्थर मारना और उबालना।
वुशुआन और वुमिंग जैसे क्षेत्रों में नरभक्षण की सैकड़ों घटनाएं हुईं।
यहां तक कि भूख की वजह से नहीं, बल्कि विचारधारा के लिए लोगों को खाया गया।
स्थानीय कम्युनिस्ट अधिकारियों ने इन अत्याचारों को संगठित किया और बढ़ावा दिया।
उन्होंने "क्रांतिकारी जोश" दिखाने के लिए लोगों को मांस खाने के लिए उकसाया।
एक मामले में, शिक्षिका वू शुफांग को छात्रों ने मारकर उसका जिगर खा लिया।
ऐसी घटनाएं दर्ज हैं कि 421 लोगों को खाया गया, हजारों ने इसमें हिस्सा लिया।
चीन की कम्युनिस्ट सरकार इस नरसंहार की मुख्य जिम्मेदार थी।
माओ के आदेशों ने हिंसा को जन्म दिया, जिसे रोकने की कोई कोशिश नहीं की।
हालांकि राष्ट्रीय नेतृत्व ने नरभक्षण को समर्थन नहीं दिया, पर चुप्पी साधे रखी।
वुशुआन ने 1968 में केंद्र को सूचना दी, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई।
हत्याओं में डायनामाइट से उड़ाना और अंगों को काटना आम था।
एक घटना में, सेन गुओरोंग ने मजाक में व्यक्ति को विस्फोट से मार डाला।
गांवों में सामूहिक नरसंहार हुए, जहां पूरा समुदाय हिंसा में शामिल था।
यह सब कम्युनिस्ट पार्टी के "शुद्धिकरण" अभियान का हिस्सा बन गया।
सांस्कृतिक क्रांति के बाद दोषियों को हल्की सजा दी गई।
वुशुआन में, जहां 38 लोग खाए गए, सिर्फ 15 को 14 साल की सजा मिली।
91 पार्टी सदस्यों को निष्कासित किया गया, पर कोई बड़ा दंड नहीं हुआ।
कम्युनिस्ट सरकार ने इन अपराधों को दबाने की पूरी कोशिश की।
यह नरसंहार कम्युनिस्ट विचारधारा की क्रूरता का जीता-जागता सबूत है।
माओ की नीतियों ने समाज को हिंसा और नफरत की आग में झोंक दिया।
गुआंग्शी में हुए अत्याचारों ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया।
चीन की सरकार ने इसे इतिहास से मिटाने की कोशिश की, पर सच छुप नहीं सका।
आज भी गुआंग्शी नरसंहार की यादें लोगों को डराती हैं।
यह बताता है कि अनियंत्रित सत्ता कितनी खतरनाक हो सकती है।
“कम्युनिस्ट शासन ने लाखों जिंदगियां बर्बाद कीं, और यह उसका एक खौफनाक उदाहरण है।”
इस घटना से सबक लेना जरूरी है, ताकि भविष्य में ऐसा न हो।
इस नरसंहार की सच्चाई को दबाना कम्युनिस्ट सरकार की नीति रही।
लेकिन पीड़ितों की चीखें आज भी इतिहास में गूंजती हैं।
गुआंग्शी नरसंहार सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि कम्युनिज्म का काला चेहरा है।