बस्तर, छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में कभी गोलियों की गूंज सुनाई देती थी, लेकिन अब वहां ईंट-गारा की खनक सुनाई दे रही है।
माओवादी हिंसा का केंद्र रहे बीजापुर जिले में अब एक नई शुरुआत हो रही है।
जो हाथ कभी बंदूक थामते थे, अब वे ईंटें जोड़ रहे हैं, और जो आंखें एके-47 की नली से झांकती थीं, वे अब प्लम्ब लाइन से दीवार की सीधाई नाप रही हैं।
दिसंबर 2023 के बाद से चल रहे बड़े पैमाने पर सुरक्षाबलों के ऑपरेशनों से माओवादी संगठन हिल गए हैं।
लगातार एनकाउंटर, धरपकड़ और रणनीतिक घेराबंदी से घबराकर कई माओवादी आत्मसमर्पण कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे अवसर में बदलते हुए पहली बार बीजापुर में आत्मसमर्पित माओवादियों के लिए स्किल ट्रेनिंग सेंटर शुरू किया है।
यहां पहले बैच के 58 युवक-युवतियां हैं, जिनकी उम्र 19 से 25 साल के बीच है। अधिकतर कभी नक्सली संगठन में सक्रिय थे।
सुबह 5:30 बजे दिन की शुरुआत होती है, शारीरिक व्यायाम के बाद कक्षा लगती है।
खेलकूद के बाद खाना बनाने की जिम्मेदारी भी वे खुद निभाते हैं।
जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते, उन्हें साक्षर बनाया जा रहा है।
बाकी को कंप्यूटर, कंस्ट्रक्शन और अन्य कामों की थ्योरी और प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जा रही है।
एक पूर्व नक्सली ने बताया, “हम गांव से जबरन ले जाए गए थे। माओवादियों की धमकी होती थी कि अगर 10 लड़के-लड़कियां नहीं दिए तो गांव का हुक्का-पानी बंद कर देंगे।”
आठ साल जंगल में रहने के बाद वह अब सामान्य जीवन चाहता है।
एक 19 वर्षीय युवक ने कहा, “जंगल की जिंदगी बहुत कठिन होती है। बारिश में भीगकर सोना पड़ता था, हर वक्त गोली चलने का डर बना रहता था। आखिरकार हम थक गए और लौट आए।”
बस्तर के पुलिस अधिकारियों का कहना है कि अब माओवादी विचारधारा युवाओं को आकर्षित नहीं कर पा रही है।
मोबाइल, इंटरनेट और बेहतर जीवन की चाह ने उन्हें बदल दिया है।
एक ट्रेनर ने बताया, “ये युवा तेजी से हुनर सीख रहे हैं। पहले हमें भी संदेह था कि यह कार्यक्रम कितना सफल होगा, लेकिन अब इनका आत्मविश्वास देखकर लगता है कि यह प्रयास सही दिशा में है।”
जो माओवादी अन्य क्षेत्रों में रुचि रखते हैं, उन्हें राज्य सरकार फैक्ट्रियों और अन्य प्रशिक्षण केंद्रों में भेज रही है।
कई पढ़ाई करना चाहते हैं, उन्हें शिक्षा दी जा रही है। सरकार अब बस्तर के हर जिले में ऐसे पुनर्वास केंद्र खोलने जा रही है।
छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने हाल ही में नक्सल आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति-2025 लागू की है।
इसके तहत जो पंचायतें खुद को माओवादी मुक्त घोषित करेंगी, उन्हें ₹1 करोड़ तक के विकास कार्य स्वीकृत किए जाएंगे।
यदि किसी माओवादी यूनिट के 80% सदस्य एक साथ आत्मसमर्पण करते हैं, तो उन्हें उन पर घोषित इनाम की दो गुना राशि मिलेगी।
साथ ही, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत 15,000 घर आत्मसमर्पित माओवादियों और हिंसा से प्रभावित परिवारों को दिए जाएंगे।
हालांकि, पूरी तरह से बदलाव आसान नहीं है। कुछ कुख्यात माओवादी, जिन पर सौ से ज्यादा हत्याओं का आरोप है, अब आत्मसमर्पण के बाद सरकार की पुनर्वास नीति के तहत सामान्य जीवन में लौट रहे हैं।
यह बात कुछ लोगों को चुभती है, लेकिन अधिकारियों का मानना है कि यदि बड़े माओवादी कमांडर आत्मसमर्पण करेंगे तभी हिंसा की जड़ें कमजोर होंगी।
जो जूनियर कैडर हैं, उन्हें कौशल प्रशिक्षण देकर स्वतंत्र जीवन जीने की छूट दी जाती है।
सीनियर कैडर को सुरक्षा कारणों से कैंप में ही रखा जाता है और उन्हें जिला रिजर्व गार्ड्स में शामिल किया जा रहा है।
इन युवाओं के लिए आजादी एक नया अनुभव है।
एक युवक ने कहा, “शुरू में डर लगता था। अब जब गांव लौटूंगा, तो राजमिस्त्री का काम करूंगा।”
एक और ने कहा, “गांव वाले हमें अपनाएंगे क्योंकि अब हमारा और उनका जीवन दोनों सुरक्षित हैं।”
बस्तर बदल रहा है, और यह बदलाव उसी धरती से आ रहा है जहां कभी खून बहता था। अब वहां हुनर की नई बुनियाद रखी जा रही है।