दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं, अमेरिका और चीन, के बीच व्यापार युद्ध (ट्रेड वॉर) ने वैश्विक बाजारों में हलचल मचा रखी है।
खासकर, जब से डोनाल्ड ट्रम्प ने जनवरी 2025 में दोबारा अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभाला, तब से उन्होंने चीन की आर्थिक दादागिरी को कुचलने के लिए कड़े कदम उठाए हैं।
ट्रम्प की टैरिफ नीतियां और अमेरिका की ‘अमेरिका फर्स्ट’ रणनीति ने चीन को बैकफुट पर ला दिया है।
यह लेख बताता है कि ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका ने कैसे चीन के अनुचित व्यापार तौर-तरीकों का जवाब दिया और क्यों यह कदम सही दिशा में है।
ट्रम्प का टैरिफ हमला: चीन पर क्रैकडाउन
ट्रम्प ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में ही चीन से आयात होने वाले सामानों पर 34% टैरिफ लगाकर साफ कर दिया कि वह चीन की मनमानी नहीं सहेंगे।
इसके बाद, 2 अप्रैल 2025 को टैरिफ को बढ़ाकर 54% और फिर 104% तक कर दिया गया।
हाल ही में, ट्रम्प ने इसे और सख्त करते हुए 245% तक टैरिफ लगा दिया।
यह टैरिफ सिर्फ सामान पर ही नहीं, बल्कि महत्वपूर्ण खनिजों, सेमीकंडक्टर्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों पर भी लागू है।
इसका मकसद अमेरिकी निर्माताओं को बढ़ावा देना और चीन पर निर्भरता कम करना है।
चीन ने जवाब में अमेरिकी सामानों पर 125% तक टैरिफ लगाए, लेकिन यह उसकी मजबूरी दिखाता है।
चीन की अर्थव्यवस्था, जो पहले से ही निर्यात पर निर्भर है, इन टैरिफ्स से बुरी तरह प्रभावित हो रही है।
बीजिंग ने अमेरिकी कंपनियों, जैसे बोइंग, पर प्रतिबंध लगाए और महत्वपूर्ण खनिजों के निर्यात पर रोक लगाई, लेकिन यह उसकी हताशा का सबूत है।
ट्रम्प की नीतियां सुनियोजित हैं, जो अमेरिकी नौकरियों और उद्योगों को बचाने के लिए जरूरी हैं।
चीन की गंदी चालें: विश्व व्यापार का दुश्मन
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने लंबे समय से अनुचित व्यापार नीतियों के जरिए वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाया है।
सस्ते श्रम और सरकारी सब्सिडी के दम पर वह बाजार में कृत्रिम दबदबा बनाता है।
इसके अलावा, बौद्धिक संपदा की चोरी, तकनीकी जासूसी और मानवाधिकारों का उल्लंघन जैसे कृत्य चीन की असलियत दिखाते हैं।
बीजिंग ने हॉन्गकॉन्ग की स्वायत्तता छीनी, ताइवान को धमकाया और उइगर मुसलमानों पर अत्याचार किए।
ऐसे देश के साथ नरमी बरतना अमेरिका के लिए आत्मघाती होता।
ट्रम्प ने सही समय पर सही कदम उठाया। उनकी नीतियां न सिर्फ अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रही हैं, बल्कि दुनिया को चीन की दादागिरी से बचाने का काम भी कर रही हैं।
जहां तक जो बाइडेन की बात है, उनके कार्यकाल में चीन के खिलाफ कड़े कदमों की कमी थी।
बाइडेन ने 50% टैरिफ जरूर लगाए, लेकिन उनकी नीतियां कमजोर और ढुलमुल थीं, जिसने चीन को और बढ़ावा दिया।
अमेरिका की रणनीति: क्यों है यह जरूरी
ट्रम्प की टैरिफ नीति का मकसद सिर्फ चीन को दंड देना नहीं, बल्कि अमेरिकी आत्मनिर्भरता को बढ़ाना है।
आज अमेरिकी कंपनियां, जैसे ऐपल, भारत जैसे देशों में उत्पादन बढ़ा रही हैं।
ट्रम्प ने 90 दिनों के लिए अन्य देशों पर टैरिफ को रोककर दुनिया को दिखाया कि वह बातचीत के लिए तैयार हैं, लेकिन चीन की हठधर्मिता के सामने वह झुकने वाले नहीं।
चीन ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) में शिकायत की, लेकिन उसका रिकॉर्ड इतना खराब है कि उसकी बातों पर कोई भरोसा नहीं करता। ट्रम्प ने सही कहा, “चीन को हमारे साथ डील करनी होगी, हमें उनकी जरूरत नहीं।” यह आत्मविश्वास अमेरिका की ताकत दिखाता है।
आर्थिक प्रभाव: चीन की कमजोरी उजागर
चीन की अर्थव्यवस्था पर ट्रम्प के टैरिफ का गहरा असर पड़ रहा है।
उसकी फैक्ट्रियां बंद हो रही हैं, निर्यात रुक रहा है और बेरोजगारी बढ़ रही है।
दूसरी ओर, अमेरिकी उपभोक्ता भले ही शुरुआत में कीमतों में उछाल महसूस करें, लेकिन लंबे समय में यह नीति अमेरिकी उद्योगों को पुनर्जनन देगी।
बाइडेन की कमजोर नीतियों ने अमेरिकी उपभोक्ताओं को पहले ही नुकसान पहुंचाया था, लेकिन ट्रम्प का दृष्टिकोण स्पष्ट है - "अमेरिका पहले!"
निष्कर्ष: ट्रम्प का विजन सही
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने अपनी हरकतों से साबित कर दिया कि वह विश्व शांति और व्यापार के लिए खतरा है।
ट्रम्प की टैरिफ नीतियां न सिर्फ अमेरिका के हित में हैं, बल्कि दुनिया को चीन की गलत नीतियों से बचाने का जरिया भी हैं।
जहां बाइडेन ने ढील दी, वहीं ट्रम्प ने सख्ती दिखाई। यह सख्ती जरूरी थी, क्योंकि चीन जैसे देश को उसी की भाषा में जवाब देना पड़ता है।
ट्रम्प का यह कदम न सिर्फ अमेरिका को मजबूत करेगा, बल्कि दुनिया को एक नई दिशा देगा।