भारत के मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के पलायन की घटना से सभी हिंदुओं को सजग होने की आवश्यकता है।
यह डेमोग्राफी चेंज होने के साथ-साथ भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परिवर्तनों का एक चिंताजनक उदाहरण है।
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले के हिंदू समुदाय के लोगों के पलायन की घटनाएँ हिंदुओं के साथ हो रही षड्यंत्रकारी राजनीति का विषय बनती जा रही हैं।
यह न केवल एक स्थानीय समस्या है, बल्कि भारत में जनसांख्यिकीय असंतुलन और सांप्रदायिक दुर्भावना का जीता-जागता उदाहरण है।
अधीर रंजन चौधरी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं जो 2024 के आम चुनाव में कांग्रेस की टिकट पर बहरामपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े, जिसके अंतर्गत मुर्शिदाबाद जिला आता है। वे तृणमूल कांग्रेस के युसुफ पठान से 85,022 मतों के अंतर से हारे।
विचारणीय प्रश्न यह है कि वे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे, बंगाली थे, मातृभाषा बंगाली थी, पिछले सदन में कांग्रेस के लोकसभा में नेता रहे, किंतु फिर भी इस वर्ष के चुनाव में उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा, क्योंकि वे मुस्लिम नहीं थे।
यूसुफ पठान, जो न तो बंगाल का रहने वाला है और न ही उसे बंगाली आती है, उसे आज वहाँ के लोगों ने इसलिए जिता दिया क्योंकि वह मुस्लिम था।
आश्चर्य की बात तो यह है कि जिसे एक खिलाड़ी के रूप में संपूर्ण भारत के लोगों ने बहुत प्रेम किया, उसने मुर्शिदाबाद में हिंदुओं के साथ हो रहे अत्याचार के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं कहा, न ही उनकी सुरक्षा की अपील की।
प्राचीन पश्चिम बंगाल में आज का बिहार, झारखंड, उड़ीसा और बांग्लादेश शामिल था।
1745 के पूर्व तक मुर्शिदाबाद एक समय बंगाल की सांस्कृतिक, राजनीतिक और व्यापारिक राजधानी रहा है। यह नवाबों की ऐतिहासिक राजधानी भी रहा।
इस समय यहाँ पर भाषा संबंधी समस्या जन्मी क्योंकि सुल्तानों ने बंगाली को राज्य की भाषा बना दिया।
इस तरह यह क्षेत्र तुर्की के मुसलमानों के हाथों से निकालकर बंगाल के मुसलमानों के हाथों में आ गया, किंतु 1742 के आसपास यहाँ मराठा साम्राज्य का उदय हुआ जब एक हिंदू मराठा साम्राज्य के महाराजा "रघुजी भोंसले" ने यहाँ हिंदवी साम्राज्य स्थापित करने का प्रयास किया। उस समय बंगाल के किसी भी हिंदू राजा ने इन्हें सहयोग नहीं दिया।
रघुजी भोंसले चाहते थे कि वहाँ के हिंदू उन्हें सहयोग करें किंतु हिंदुओं का मुस्लिम नवाबों से बहुत अधिक अपनापन था। हिंदू वहाँ के उच्च पदों पर बैठे हुए थे।
तब 1745 में भोंसले राजा ने बंगाल की राजधानी मुर्शिदाबाद में घुसकर आक्रमण किया।
इस भीषण आक्रमण से मुस्लिम नवाबों ने पैसे देकर अपने आप को सुरक्षित कर लिया किंतु हिंदुओं का जीवन संकट में पड़ गया।
तब हिंदू राजाओं और सामान्य हिंदुओं को ज्ञात हुआ कि वे कैसे स्वार्थी और भीरु लोगों का साथ दे रहे थे।
स्वतंत्रता के बाद विशेषतः विभाजन (1947) के पश्चात इस क्षेत्र में जनसांख्यिकीय संतुलन में क्रमिक परिवर्तन आने लगे।
सांख्यिकीय आँकड़ों के अनुसार, मुर्शिदाबाद जिले में मुस्लिम जनसंख्या 70-80% तक पहुँच चुकी है, मतलब मुस्लिम बहुसंख्यक हो चुके हैं।
परिणामस्वरूप हिंदू समुदाय, जो कभी सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टि से इस क्षेत्र का अभिन्न अंग था, अब अल्पसंख्यक की भूमिका में आ गया है।
कई स्थानों पर हिंदू परिवारों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धार्मिक आयोजनों को लेकर धमकियाँ दी गईं, हिंदू परिवारों की माताओं, बहनों और बेटियों का दैहिक शोषण करने की धमकियाँ भी दी गईं।
हिंदुओं को धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा।
पर्व-त्योहारों में बाधाएँ और धार्मिक प्रतीकों के अपमान की घटनाएँ बढ़ने से लोगों में असुरक्षा की भावना गहरी हो गई।
क्षेत्रीय राजनीति में बहुसंख्यक तुष्टीकरण की रणनीति के कारण हिंदू समुदाय को प्रायः उपेक्षा का अनुभव हुआ है।
यहाँ तक कि कुछ स्थानों पर व्यापार या कृषि से जुड़े हिंदू परिवारों को धीरे-धीरे आर्थिक रूप से हाशिए पर लाया गया, जिससे वे अन्य स्थानों पर जाने को विवश हुए।
इस प्रकार का बदलाव केवल सांख्यिकीय आंकड़ों का खेल नहीं है।
यह क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता, सामाजिक समरसता (भाईचारा) और राष्ट्रीय एकता को प्रभावित करता है।
जब कोई समुदाय पलायन करता है, तो वहाँ से केवल लोग नहीं जाते – उनकी भाषा, परंपरा, रीति-रिवाज, आस्थाएँ और पीढ़ियों की स्मृतियाँ भी लुप्त हो जाती हैं।
यह केवल मुर्शिदाबाद की समस्या नहीं है... यह घटना भारत के अन्य सीमावर्ती या धार्मिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में भी जुड़ी है।
इसी प्रकार के जनसांख्यिकीय परिवर्तन असम, पश्चिम उत्तर प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के कुछ भागों में तथा सीमावर्ती बिहार में भी देखने को मिल रहे हैं।
काश्मीर, उत्तर प्रदेश का कैराना क्षेत्र ऐसे ही दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं।
मुर्शिदाबाद में हिंदुओं का पलायन करने की घटना राष्ट्रीय चेतना को झकझोरने वाला उदाहरण है।
राज्य और केंद्र सरकारों के साथ ही हिंदू समाज, पंथ, समुदायों सभी को इस विषय पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है, जिससे भारत की विविधता विवाद में न बदले और कोई भी हिंदू अपने ही देश में शोषित, पीड़ित होकर पलायन न करें।
लेख
डॉ. नुपूर निखिल देशकर