22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर की वादियों में केवल बर्फ़ नहीं गिरी, बल्कि आतंक की काली छाया भी टूटी। पहलगाम के बैसरन घाटी में जो हुआ, वह सिर्फ एक आतंकी हमला नहीं था — यह हिंदुओं के खिलाफ किया गया सुनियोजित इस्लामिक नरसंहार था। 27 निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया गया और 17 से अधिक लोग घायल हो गए, लेकिन ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। ये वे लोग हैं जिन्हें इसलिए मारा गया क्योंकि वे हिंदू थे।
हमले की भयावहता इतनी थी कि आतंकियों ने पहले यात्रियों से उनका नाम पूछा, फिर धर्म पूछा, और कई मामलों में उनके कपड़े तक उतरवाए गए। कुछ पुरुषों की पैंट उतारकर यह जांचा गया कि वे मुसलमान हैं या नहीं, और जब यह निश्चित हो गया कि वे हिंदू हैं — तो उन्हें बर्बरता से गोलियों से भून दिया गया। क्या यह सिर्फ एक आतंकवादी हमला था? नहीं, यह इस्लामिक जिहाद था, एक ऐसा जिहाद जो हिंदुओं की आस्था, अस्तित्व और आत्मसम्मान पर सीधा हमला था।
बाइसरण घाटी में न सिर्फ गोलियों की गूंज सुनाई दी, बल्कि भारत के लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और हिंदुओं के अस्तित्व को सीधी चुनौती दी गई है। इस हमले ने न सिर्फ निर्दोषों की जान ली, बल्कि भारत के हज़ारों परिवारों की आत्मा को झकझोर दिया है।
एक चश्मदीद के अनुसार, एक अधेड़ व्यक्ति को गोलियां मारने से पहले आतंकियों ने कलमा पढ़ने के लिए कहा। जब उसने मना किया, तो उसके सिर में गोली मार दी गई। लेफ्टिनेंट विनय नरवाल, जो छुट्टियों में कश्मीर घूमने आए थे, उनकी पहचान जब सामने आई तो आतंकियों ने उन्हें विशेष रूप से निशाना बनाया। क्या यह केवल एक हमले की बात है, या यह संकेत है कि इस्लामिक जिहाद भारत की सेना, उसकी सुरक्षा एजेंसियों और उसके धर्म के खिलाफ एक संगठित युद्ध छेड़े हुए है?
इस नरसंहार में एक इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी की भी हत्या कर दी गई। भारत की खुफिया एजेंसी को इस तरह खुलेआम ललकारा जाना यह दर्शाता है कि दुश्मन अब सिर्फ सीमाओं पर नहीं, भारत के भीतर सक्रिय है। और यह हमला अकेले पाकिस्तान की साजिश नहीं है। इसके पीछे स्थानीय समर्थन, कश्मीर के भीतर सक्रिय स्लीपर सेल्स और उन विचारधाराओं की ताकत है जो भारत को भीतर से तोड़ने में लगी हैं।
द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने हमले की जिम्मेदारी ली है — यह वही TRF है जो लश्कर-ए-तैयबा का ही एक सहायक संगठन है, और जिसे पाकिस्तान की ISI पोषित करती है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस हमले को अंजाम देने वाले कम से कम दो पाकिस्तानी आतंकी थे, जो हाल ही में घुसपैठ करके घाटी में दाखिल हुए थे। लेकिन क्या पाकिस्तानी आतंकी इतनी आसानी से बाइसरण जैसी जगह पर हमला कर सकते हैं बिना किसी लोकल मदद के?
हमले से पहले इलाके की रेकी की गई थी। आतंकियों ने बॉडी कैमरा लगाया हुआ था, जिससे वे पूरी घटना को रिकॉर्ड कर सकें — ठीक उसी तरह जैसे ISIS करता था। यह महज़ डर फैलाने की साजिश नहीं थी, यह भारत को बदनाम करने, डराने और हिंदुओं को नीचा दिखाने की सुनियोजित योजना थी। कश्मीर के पर्यटन को तबाह करने और अमरनाथ यात्रा को असुरक्षित बनाने की चाल थी।
यह सब एक स्पष्ट पैटर्न दिखाता है — भारत में हिंदुओं को चुन-चुन कर मारा जा रहा है और इस्लामी आतंक इसे मजहबी युद्ध के रूप में प्रचारित कर रहा है। विपक्ष की भूमिका भी उतनी ही शर्मनाक है। एक भी नेता ने साफ-साफ यह नहीं कहा कि यह हमला इस्लामिक आतंकियों ने हिंदुओं को धर्म पूछकर मारने के लिए किया है।
कश्मीर में हुए इस हमले से पर्यटन उद्योग को जबरदस्त झटका लगा है। पिछले साल 35 लाख पर्यटक घाटी में आए थे। अब बुकिंग्स कैंसिल हो रही हैं, और अमरनाथ यात्रा को लेकर डर फैल गया है। पाकिस्तान और स्थानीय जिहादियों का मकसद यही था — घाटी को फिर से डर और नफरत की आग में झोंक देना।
भारत सरकार की प्रतिक्रिया तेज थी — गृहमंत्री अमित शाह ने तुरंत उच्च स्तरीय बैठक बुलाई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी विदेश यात्रा बीच में छोड़ी। लेकिन सवाल यह है — कब तक सिर्फ प्रतिक्रिया दी जाएगी? कब होगी निर्णायक कार्यवाही?
भारत अब crossroads पर खड़ा है। पाकिस्तान को आतंकवादी राष्ट्र घोषित करना और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस्लामी आतंकवाद की असलियत को बेनकाब करना अब केवल राजनीतिक निर्णय नहीं, बल्कि राष्ट्र की आवश्यकता है। कश्मीर में आतंकियों के लिए जन्नत बनाने वालों, स्थानीय समर्थन देने वालों, और भारत के खिलाफ दुष्प्रचार फैलाने वालों को अब सिर्फ जेल नहीं, बल्कि देशद्रोह के तहत सजा मिलनी चाहिए।
इस्लामिक आतंकवाद को अब मानवाधिकार या मुस्लिम फोबिया जैसे ढोंगों से ढंका नहीं जा सकता। यह स्पष्ट रूप से इस्लामिक जिहादी आतंकवाद है — जो भारत के हर हिंदू को टारगेट कर रहा है। यह नरसंहार किसी भी धर्म, विचार या आंदोलन का हिस्सा नहीं — यह सीधे-सीधे मजहबी नफरत है।
अब वक्त आ गया है जब भारत को आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध छेड़ना होगा। एक ऐसा युद्ध जो सिर्फ बॉर्डर पार नहीं, देश के भीतर के गद्दारों के खिलाफ भी हो। क्योंकि जब तक देश के भीतर बैठे TRF, ISIS और ISI के मानसिक गुलामों का सफाया नहीं होता — तब तक पहलगाम जैसे नरसंहार दोहराए जाते रहेंगे। और अगली बार शायद वो गोली किसी मंदिर, स्कूल या रेलवे स्टेशन पर गिरे।