पहलगाम में हुए इस्लामिक आतंकी हमले के बाद जहां एक ओर देश भर में इस्लामिक आतंक को लेकर आक्रोश है, वहीं एक समूह ऐसा भी है जो आतंकियों के द्वारा घोषित रूप से किए गए इस्लामिक जिहादी सोच को "वाइटवॉश" करने में लगा है।
देश के कई ऐसे पत्रकार, कॉमेडियन, कथित कार्यकर्ता एवं कांग्रेस-इंडी गठबंधन के सोशल मीडिया समर्थक तो खुलकर कह ही रहे हैं, लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के प्रेस क्लब की पदाधिकारी भी इसी मुहिम में लग गई है।
रायपुर प्रेस क्लब की संयुक्त-सचिव तृप्ति सोनी ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट में एक पोस्ट शेयर करते हुए "मुसलमानों ने हिंदुओं को बचाया" से लेकर "1984 के सिख विरोधी दंगों" तक की बात कर दी, लेकिन कहीं भी अपने इस पोस्ट में उन्होंने इस्लामिक आतंक या पाकिस्तानी आतंक को लेकर कुछ नहीं कहा।
ज़ी न्यूज़ की छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश चैनल की एंकर तृप्ति सोनी ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा है कि "निहत्थे मेजबान-सैलानियों पर कश्मीर के इतिहास का अभूतपूर्व हमला हुआ तब वहां के बहुत से लोगों ने सैलानियों को बचाने का खतरा उठाया। आज आई खबरें बता रही हैं कि कई लोगों ने उन्हें अपना रिश्तेदार बताकर अपने घर के भीतर रखा, और अपनी जान खतरे में डाली।"
लेकिन प्रेस क्लब की पदाधिकारी तृप्ति सोनी ने यह क्यों नहीं बताया कि जिन्होंने "खतरा" उठाकर सैलानियों को बचाया, उन्हें आखिर खतरा किनसे था? क्या वो मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ या महाराष्ट्र से गए कोई दूसरे सैलानी थे, जिनसे खतरा था? या वो इस्लामी आतंकी थे जिनसे खतरा था? आखिर खतरा किससे था?
ज़ी न्यूज़ की एंकर तृप्ति आगे लिखती हैं कि "छत्तीसगढ़ के एक परिवार के मुखिया दिनेश मिरानिया भी वहां आतंकियों की गोली के शिकार हुए, लेकिन दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के ही चिरमिरी के चार परिवारों के 11 लोग पहलगाम में फंसे हुए थे, चारों तरफ फायरिंग चल रही थी, भू-स्खलन के कारण सड़क पर गाड़ियां फंसी हुई थी और लोग इधर-उधर भाग रहे थे। ऐसे में चिरमिरी से गए इन हिंदू सैलानियों और उनके परिवारों को कश्मीर के एक फेरी वाले कारोबारी नजाकत अली ने वहां से सुरक्षित बाहर निकाला। वे सर्दियों के मौसम में छत्तीसगढ़ के चिरमिरी में गर्म कपड़े बेचने आते हैं, और यहां के लोगों के पास उनका फोन नंबर था, पहलगाम जाने पर उनसे बात मुलाकात की थी और वे ही सबके साथ घूमने निकले थे। यह एक घटना बताती है कि किस तरह हिंदुस्तान के अलग-अलग हिस्सों में बसे हुए अलग-अलग धर्म और जाति के लोग किस तरह एक दूसरे के काम आते हैं, एक-दूसरे को बचाते हैं।"
तृप्ति ने अपने पोस्ट में यह तो बताया कि जिन्हें बचाया गया वो "हिंदू सैलानी" थे लेकिन यह क्यों नहीं बताया कि दिनेश मिनारिया को मारने वाले कौन थे? चिरमिरी से गए इन हिंदू सैलानियों और उनके परिवारों को कौन मारना चाहता था? वो किस मज़हब के थे? आखिर इस्लामी आतंक की इस घटना को वाइटवॉश करने की इतनी जल्दी क्या?
प्रेस क्लब की पदाधिकारी तृप्ति आगे लिखती है कि "अभी दो-चार दिन पहले ही एक खबर आई है कि किस तरह एक हिंदू और एक मुस्लिम दोस्त-परिवारों के लड़कों की शादियां एकसाथ एक ही जलसे में हुईं और एकसाथ बारात निकली। जो लोग नफरत खा-पीकर अपना दिन गुजारते हैं, उन्हें भी याद रखना चाहिए कि हत्यारे और आतंकी किसी भी धर्म या मजहब में हो सकते हैं, लेकिन उनके मुकाबले हजारों गुना ऐसे लोग होते हैं जो कि एक-दूसरे को बचाने का काम करते हैं।"
ज़ी न्यूज़ की एंकर तृप्ति सोनी से पूछा जाना चाहिए कि क्या जो पर्यटक पहलगाम के इस्लामी आतंकी हमले मारे गए, वो नफरत खा-पीकर अपना दिन गुजारते थे? क्या वो नफरत फैलाने कश्मीर गए थे, जिसके लिए उन्हें मार दिया गया? क्या तृप्ति सोनी पहलगाम के पाकिस्तानी आतंकियों को केवल "हत्यारा" कहना चाहती है? बाक़ी सच्चाई यह है तृप्ति जी कि नफरत इस्लामी आतंकियों के मन है, और वो नफरत हिंदुओं के लिए है, जो पहलगाम में दिखाई भी दिया, ये अलग बात है कि आपने उसे देखना जरूरी नहीं समझा।
तृप्ति सोनी के इस पोस्ट की दिलचस्प बात यह है कि जहां पूरे देश का सनातनी समाज (हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध) एकजुट होकर इस्लामी जिहाद के इस आतंक का विरोध कर रहा है, वहीं इसके विरुद्ध एकजुट हो रहा है, तो ऐसे समय में हिंदुओं और सिखों के बीच दरार लाने का कुत्सित प्रयास भी इस पोस्ट में किया गया है। तृप्ति लिखती हैं कि "छत्तीसगढ़ में ही सैकड़ों ऐसे परिवार हैं जिन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगों में आसपास के सिक्ख परिवारों को लाकर अपने घरों में रखा था, ताकि उन्हें कोई नुकसान न पहुंचा सके। जब देशभर में आगजनी चल रही थी और कत्ल हो रहे थे, तब इतना हौसला भी कम नहीं था।"
क्या तृप्ति सोनी ने अपने इस पोस्ट में पहलगाम के आतंकी हमले को "हिन्दू विरोधी आतंकी हमला कहा ?" क्या तृप्ति सोनी ने कहीं भी इस पोस्ट में पाकिस्तान या इस्लामी आतंक को दोषी ठहराया ? इसका उत्तर है नहीं! तृप्ति ने ऐसा नहीं किया। तो फिर ऐसी क्या मजबूरी है कि जब छत्तीसगढ़ समेत पूरा देश इस्लामी आतंक का विरोध कर रहा है, तब तृप्ति सोनी "सिख विरोधी दंगों" की बात कर रही है ? इसके पीछे का उद्देश्य क्या छत्तीसगढ़ के सिखों के भीतर दोबारा आक्रोश भरना है या इसकी तुलना पहलगाम के इस्लामी आतंकी हमले से करना है ?
ज़ी न्यूज़ की एंकर और प्रेस क्लब पदाधिकारी तृप्ति सोनी ने अपनी पोस्ट के अंतिम में राहुल गांधी के मोहब्बत की दुकान को भी अपने शब्दों से प्रसारित किया है, जिसके बाद उनकी पूरी मंशा समझ आती है। तृप्ति ने आगे लिखा कि "देश में सभी धर्मों के लोगों ने खतरे की नौबत आने पर दूसरे धर्म के लोगों को बचाया है। इसलिए आज जरूरत इसी बात की है कि इस देश की एकता पर साजिश के तहत यह जो बड़ा हमला कश्मीर में किया गया है, उसके जख्मों के बीच धर्म के नाम को लेकर नफरत और हिंसा फैलाने के बजाए मोहब्बत की मिसालों को याद किया जाए, और उनसे भाई-बहनचारा बढ़ाया जाए।"
तृप्ति से यह पूछना चाहता हूँ कि क्या वो गुजरात के उस छोटे बच्चे नक्श को समझा सकती हैं कि उसके पिता को हिन्दू होने के कारण इस्लामी आतंकियों ने क्यों मारा? या उस महिला को समझा सकती हैं जिसकी एक सप्ताह पहले शादी हुई, और उसके पति को इस्लामी आतंकियों ने सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि वो हिन्दू है?
हालांकि तृप्ति सोनी ने जिस तरह "मोहब्बत की दुकान" को "मोहब्बत की मिसाल" बनाकर पेश किया है, वह कुछ नहीं, केवल और केवल इस्लामी आतंकियों को वैचारिक ढाल देने का प्रोपेगेंडा है, जो कांग्रेस के सोशल मीडिया समर्थक कर रहे हैं। लेकिन इस मामले में दिलचस्प यह है कि तृप्ति ज़ी न्यूज़ जैसे संस्थान में एंकर है और रायपुर प्रेस क्लब की संयुक्त-सचिव भी है।
गौरतलब है कि जिस रायपुर प्रेस क्लब में तृप्ति सोनी पदाधिकारी है, उसी रायपुर प्रेस क्लब में हाल ही में एक ऐसे कार्यक्रम का आयोजन हुआ था जिसमें सिद्धार्थ वरदराजन और अपूर्वानंद जैसे लोगों को अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। कांग्रेस नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सलाहकार के द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में वक़्फ़ कानून के विरोध से लेकर तमाम ऐसे मुद्दों पर बात रखी गई थी, जो मुस्लिम जनमानस के भीतर भय पैदा करे।
इस कार्यक्रम में अतिथि बने सिद्धार्थ वरदराजन उसी कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा वेबसाइट "द वायर" के फाउंडर हैं, जो समय-दर-समय इस्लामी जिहाद का प्रोपेगेंडा समाज तक पहुंचाता है। सिर्फ इतना ही नहीं, "द वायर" जैसी वेबसाइट में संपादक आरफा खानूम ने खुलकर इस्लामी जिहाद का बचाव करते हुए हिंदुओं को निशाना बनाया है। इसके अलावा इसमें हिंदुओं को "आतंकी" और भगवान हनुमानजी को आक्रामक बताने का प्रयास किया जा चुका है।
वहीं रायपुर प्रेस क्लब में हुए कार्यक्रम के दूसरे अतिथि अपूर्वानंद पर दिल्ली हिन्दू विरोधी दंगों में साजिश रचने का आरोप लगा था, जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने उनसे पूछताछ की थी।
क्या ऐसे लोगों का रायपुर प्रेस में आना और तृप्ति जैसे प्रेस क्लब की पदाधिकारी का इस तरह से इस्लामिक आतंक और पाकिस्तानी आतंक को वाइटवॉश करना कोई संयोग है? क्या इसके पीछे कोई एक ऐसी विचारधारा है जो इस्लामिक आतंकियों द्वारा हिंदुओं के नरसंहार पर भी 'मुस्लिमों ने जान बचाई' वाला नैरेटिव गढ़ती है? क्या छत्तीसगढ़ की राजधानी का प्रेस क्लब अब ऐसे वैचारिकी का अड्डा बन गया है? क्या रायपुर का प्रेस क्लब और ज़ी न्यूज़ इस्लामी आतंकियों के दिल दहला देने वाले आतंक को वाइटवॉश करने का समर्थन करता है?
यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो पूछे जाने जाने चाहिए, और तब तक पूछे जाने चाहिए, जब तक रायपुर प्रेस क्लब की पत्रकारिता की शुचिता पुनः स्थापित न हो जाए।