देश के विभिन्न राज्यों में वक्फ बोर्डों के नाम पर जो भ्रष्टाचार और अनियमितताएं वर्षों से चल रही थीं, उनका एक लंबा इतिहास रहा है।
वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग, मनगढ़ंत दस्तावेज, भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत और मुस्लिम नेताओं का स्वार्थ - यह सब कुछ ऐसे चलता रहा मानो इन पर कभी कोई प्रश्न ही नहीं उठाया गया हो।
लेकिन 3 अप्रैल 2025 को लोकसभा में वक्फ (संशोधन) विधेयक पारित होने और तत्पश्चात राज्यसभा की मंज़ूरी मिलने के साथ ही एक बड़े परिवर्तन की नींव रख दी गई है।
इस विधेयक के माध्यम से वक्फ बोर्डों के वे विशेषाधिकार और छूट समाप्त कर दी गई हैं जिनके सहारे वे वर्षों से मनमानी करते आए थे।
कांग्रेस द्वारा 1995 में बनाए गए वक्फ अधिनियम ने इन बोर्डों को इतनी शक्ति दे दी थी कि वे किसी भी भूमि को वक्फ घोषित कर सकते थे, बिना किसी सूचना या अनुमति के।
इसी का परिणाम था कि देश के कोने-कोने से भ्रष्टाचार के मामले सामने आने लगे।
ज़मीन की लूट और भ्रष्टाचार के प्रमुख उदाहरण:
- कर्नाटक के पूर्व वक्फ सीईओ ज़ुल्फिकारुल्ला पर ₹4 करोड़ के दुरुपयोग का आरोप लगा, जिसमें उन्होंने 54 बार बैंक लेनदेन कर धन को दूसरी जगह स्थानांतरित किया।
- मध्य प्रदेश के उज्जैन में कांग्रेस नेता रियाज़ ख़ान ने वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में 26 वर्षों तक पद पर रहकर न केवल धन अर्जित किया, बल्कि 115 दुकानों से किराया वसूलकर ₹7 करोड़ से अधिक की राशि अपने कब्ज़े में ले ली।
- उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने 183 बीघा ज़मीन से ₹7.5 करोड़ की अवैध कमाई की। कानपुर के डालेलपुरवा में मुतवल्ली ने ₹20 करोड़ की वक्फ ज़मीन चुपचाप बेच दी। अमरोहा में 16 दुकानें अवैध रूप से बनाकर बेच दी गईं।
- दिल्ली के अमानतुल्ला ख़ान का मामला तो सार्वजनिक है, वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष रहते हुए ₹100 करोड़ की संपत्ति का दुरुपयोग, भ्रष्ट नियुक्तियां, और दिल्ली दंगों के पीड़ितों के लिए एकत्रित धन को अपनी दूसरी पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदने में लगाया गया।
- असम, पंजाब, हिमाचल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कोई राज्य ऐसा नहीं जो इस भ्रष्टाचार से अछूता रहा हो। असम में 3000 बीघा वक्फ ज़मीन निजी कंपनियों को ट्रांसफर कर दी गई। पुणे में ₹7.7 करोड़ का तबूत इनाम ट्रस्ट घोटाला सामने आया। मदुरै के वक्फ कॉलेज में अयोग्य लोगों की भर्ती के लिए लाखों की रिश्वत ली गई।
इन सभी घटनाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि वक्फ बोर्डों का उद्देश्य जहां धार्मिक और सामाजिक सेवा होना चाहिए था, वहीं इन संस्थाओं ने अपने पद का दुरुपयोग कर इन्हें व्यक्तिगत लाभ का साधन बना लिया।
अब बदलेगी तस्वीर: वक्फ संशोधन विधेयक से सुधरेगी व्यवस्था
वक्फ संशोधन विधेयक का मुख्य उद्देश्य है, देश में वक्फ बोर्डों के अधिकारों को नियंत्रित करना और किसी भी ज़मीन को वक्फ घोषित करने से पूर्व प्रभावित व्यक्ति या समुदाय की सहमति को अनिवार्य बनाना। इससे अब किसी की ज़मीन को जबरन वक्फ घोषित नहीं किया जा सकेगा।
इस विधेयक के माध्यम से केंद्र सरकार ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि धार्मिक संस्थाओं के नाम पर होने वाले भ्रष्टाचार को अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसमें पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा दिया गया है।
अंत में
वक्फ बोर्ड, जो एक समय लूट और स्वार्थ का प्रतीक बन चुका था, अब उस पर नियंत्रण स्थापित होने जा रहा है। मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करने वाले नेता, जैसे असदुद्दीन ओवैसी, जिन्होंने लोकसभा में विधेयक को फाड़ दिया, उनका विरोध इस बात का प्रमाण है कि इस सुधार ने उनके निजी हितों पर चोट की है।
हिंदू समुदाय के लिए यह आशा की किरण है, उनकी ज़मीनें, मंदिरों के आसपास की संपत्तियां और सामुदायिक भूमि अब सुरक्षित रहेंगी, किसी भी ज़बरदस्ती या भय के बिना।
यह देश के लिए एक बड़े सुधार की दिशा में उठाया गया कदम है, जहां धर्म के नाम पर छिपाए जा रहे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा रहा है।
और अब, वक्फ के नाम पर चल रहे इस खेल का अंतिम अध्याय लिख दिया गया है।